परिपक्वता का अर्थ (Meaning of Maturation)
परिपक्वता का तात्पर्य शिशुओं में वृद्धि और विकास की प्रक्रिया के पूरा होने से है। वास्तव में परिपक्वता का अर्थ है किसी व्यक्ति का स्वाभाविक विकास; इसमें किसी प्रयास की आवश्यकता नहीं है. इसके लिए किसी भी प्रकार की शिक्षा नहीं दी जाती है. उदाहरण के लिए, एक नवजात शिशु परिपक्वता की प्रक्रिया के कारण कुछ दिनों के बाद बैठता है, फिर खड़ा होता है और बाद में चलना शुरू कर देता है। इस प्रकार परिपक्वता विकास की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जैसे-जैसे प्राणी की आयु बढ़ती है, विकास अपने आप होता जाता है।
परिपक्वता शरीर के अंगों की प्राकृतिक कार्यप्रणाली है। इसके उदाहरण जानवरों और इंसानों दोनों के संबंध में पाए जा सकते हैं। जन्म के समय कुत्ते के पिल्लों की आंखें बंद होती हैं, धीरे-धीरे जब वे शारीरिक रूप से मजबूत हो जाते हैं तो उनकी आंखें काम करने लगती हैं। यहां तक कि शिशु पक्षियों के पंख और आंखें भी शुरू से काम नहीं करते, शरीर में ताकत बढ़ने पर धीरे-धीरे क्रियाशील हो जाते हैं। मानव शिशु जन्म के समय खड़ा नहीं हो सकता या बोल नहीं सकता। जैसे-जैसे वह मजबूत होता जाता है, वह इन गतिविधियों को करने में सक्षम हो जाता है। इस प्रकार, परिपक्वता एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे ताकत हासिल करता है और बढ़ता है।
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परिपक्वता की परिभाषाएँ (Definitions OF Maturation)
परिपक्वता एक जटिल अवधारणा है जिसकी विभिन्न परिभाषाएँ और व्याख्याएँ हैं। यहाँ कुछ प्रमुख परिभाषाएँ प्रस्तुत हैं:
1. जैविक परिपक्वता:
- यह शारीरिक विकास और परिवर्तन की प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति को जन्म से लेकर वयस्कता तक ले जाती है।
- यह हार्मोन, आनुवंशिकी और पर्यावरणीय कारकों सहित विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है।
- जैविक परिपक्वता के कुछ प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं:
- शरीर का आकार और भार में वृद्धि
- यौन विकास
- मस्तिष्क का विकास
- शारीरिक क्षमताओं में वृद्धि
2. मनोवैज्ञानिक परिपक्वता:
- यह सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने की क्षमता में वृद्धि है।
- यह अनुभव, शिक्षा और सामाजिक संपर्क सहित विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है।
- मनोवैज्ञानिक परिपक्वता के कुछ प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं:
- आत्म-जागरूकता और आत्म-सम्मान का विकास
- स्वतंत्र सोच और निर्णय लेने की क्षमता
- भावनाओं को नियंत्रित करने की क्षमता
- सामाजिक जिम्मेदारी और सहानुभूति का विकास
3. सामाजिक परिपक्वता:
- यह दूसरों के साथ संबंध बनाने और बनाए रखने की क्षमता में वृद्धि है।
- यह सामाजिक मानदंडों और अपेक्षाओं को समझने और उनका पालन करने की क्षमता भी शामिल है।
- सामाजिक परिपक्वता के कुछ प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं:
- दूसरों के साथ प्रभावी ढंग से संवाद करने की क्षमता
- टीमों में काम करने की क्षमता
- संघर्षों को हल करने की क्षमता
- सामाजिक नियमों और कानूनों का पालन करना
4. भावनात्मक परिपक्वता:
- यह अपनी भावनाओं को समझने, व्यक्त करने और प्रबंधित करने की क्षमता में वृद्धि है।
- यह तनाव और चुनौतियों का सामना करने की क्षमता भी शामिल है।
- भावनात्मक परिपक्वता के कुछ प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं:
- अपनी भावनाओं को पहचानने और समझने की क्षमता
- अपनी भावनाओं को स्वस्थ तरीके से व्यक्त करने की क्षमता
- तनाव और चुनौतियों का सामना करने के लिए स्वस्थ तरीके खोजना
5. नैतिक परिपक्वता:
- यह सही और गलत के बीच अंतर करने की क्षमता और नैतिक निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि है।
- यह नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों को समझने और उनका पालन करने की क्षमता भी शामिल है।
- नैतिक परिपक्वता के कुछ प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं:
- सही और गलत के बीच अंतर करने की क्षमता
- नैतिक निर्णय लेने की क्षमता
- अपने कार्यों के लिए जिम्मेदारी लेने की क्षमता
- दूसरों के प्रति दयालु और सम्मानजनक होना
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि परिपक्वता एक रैखिक प्रक्रिया नहीं है। यह विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग दरों पर विकसित हो सकती है।
परिपक्वता की विशेषताएँ (Characteristics of Maturation)
1. यह जीनी प्रभावों का योग है। (Sum of geve effects.)
2. यह स्वचालित प्रक्रिया है। (Automatic Process.)
3. परिपक्वता विकास और वृद्धि है। (Growth and Development.)
4. परिपक्वता वृद्धि की, पूर्णता है। (Completion of Growth.)
5. परिपक्वता अंत करण में यथा आवश्यक परिवर्तन करती है। (Modification from within.)
6. यह अधिगम का आधार है। (Base of Learning.)
7. परिपक्तता सीखने के कौशल हेतु आवश्यक है। (Essential for Learning Skill)
8. परिपक्वता और शारीरिक स्वास्थ्य में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। (Maturity and Physical Fitness are Related.)
9. परिपक्वन से पूर्व प्रशिक्षण दिया जाना व्यर्थ है। (Training before Maturity is useless.)
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शैक्षिक निहितार्थ (Educational Implication)
1. शिक्षकों को बच्चों की आयु, परिपक्वता एवं बुद्धि के अनुरूप ही उनके सामने समस्या प्रस्तुत करनी चाहिये।
2. शिक्षक पढ़ाते समय शिक्षार्थी को सीखने के लिये तत्पर करें और सीखने की प्रक्रिया के दौरान उन्हें समय-समय पर प्रोत्साहित करते रहे।
3. शिक्षण का सम्बन्ध परिपक्वता से होता है। इसलिये पाठ्यचर्या का निर्माण करते समय उनकी आयु एवं परिपक्वता का ध्यान रखना चाहिये।