पाठ्यक्रम का सम्पादन करने में शिक्षक की भूमिका

पाठ्यक्रम एक महत्वपूर्ण और जिम्मेदारीभरा कार्य है और इसमें शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। शिक्षक पाठ्यक्रम का सम्पादन करते समय विभिन्न मामलों का ध्यान रखते हैं ताकि छात्रों को उच्च गुणवत्ता वाला शिक्षा प्राप्त हो सके।

Role of teacher in editing the curriculum
Role of teacher in editing the curriculum

शिक्षक के पास पाठ्यक्रम को तैयार करने के लिए विभिन्न संसाधन और ज्ञान होना चाहिए। उन्हें छात्रों की आवश्यकताओं, रुचियों और योग्यताओं का ध्यान रखना चाहिए ताकि पाठ्यक्रम उनकी समग्र विकास को प्रोत्साहित कर सके।

इसके अलावा, शिक्षक को पाठ्यक्रम के लक्ष्य, उपयोगी संसाधनों का चयन, पाठ्यक्रम के विभाजन और समयानुक्रमणिका का निर्माण करने का भी ध्यान देना चाहिए।

शिक्षक की भूमिका यहां न केवल पाठ्यक्रम के संगठन और विकास में होती है, बल्कि वे छात्रों को पाठ्यक्रम के विषय में रुचि और उत्साह जगाने का भी काम करते हैं। वे छात्रों को प्रेरित करते हैं, उनकी समस्याओं का समाधान करते हैं और उन्हें पाठ्यक्रम में सफलता प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं।

शिक्षक पाठ्यक्रम का सम्पादन करते समय छात्रों के विचारों को महत्वपूर्ण मानते हैं और उन्हें शिक्षा प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार बनाने का प्रयास करते हैं। वे छात्रों की प्रगति को निरंतर मॉनिटर करते हैं और उन्हें आवश्यकतानुसार अपडेट करते हैं।

शिक्षक पाठ्यक्रम के विभिन्न तत्वों को समझते हैं और उन्हें समायोजित करने का काम करते हैं। इसके लिए वे पाठ्यक्रम में उच्चतम गुणवत्ता के लिए नवीनतम और सर्वोत्तम विधियों का उपयोग करते हैं।

इस प्रकार, शिक्षक पाठ्यक्रम का सम्पादन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और छात्रों को उच्च गुणवत्ता वाला शिक्षा प्रदान करने का अद्यतन और संशोधन करते हैं।

अन्य शब्दों में 

शिक्षक की मुख्य भूमिका जो कुछ पाठ्यक्रम में प्रस्तावित है उसे विद्यार्थियों तक पहुंचाना है। उसे उन विषयों और प्रकरणों को पढ़ाना होता है जो कि पाठ्यक्रम में शामिल हैं।

शिक्षक अपने शिक्षण में पाठ्यक्रम का कठोरता से अनुसरण कर सकता है या लचीली नीति अपना सकता है। यदि वह कठोरता से इसका पालन करता है तो वह जो कुछ पाठ्यक्रम में प्रस्तावित है, उससे हटेगा नहीं। अतएव उसका शिक्षण यांत्रिक हो जायेगा। यदि वह लचीली विधि अपनायेगा तो वह अपने शिक्षण में नवीनता ले आयेगा। सख्ती से पाठ्यक्रम का अनुसरण विद्यार्थियों को उँगली पकड़कर सीखना जैसा है। इसमें रटन्त पर बहुत बल दिया जाता है। इस प्रकार के शिक्षण में शिक्षक सीखने में सुविधा प्रदान करने वाला न होकर सूचना से विद्यार्थी के मन को भरने वाला बनकर रह जाता है। यह आधुनिक शिक्षण सीखने के नियमों के विरोधाभास की स्थिति है।

लचीले ढंग से शिक्षण देने में यह भय निहित रहता है कि शिक्षक पाठ्यक्रम को निश्चित अवधि में पूरा न पढ़ा सके अथवा उन प्रकरणों को अधिक महत्त्व दे जो उसे पसन्द है और बहुत से मुख्य तत्त्वों

पर ध्यान ही न दे। यह विद्यार्थियों द्वारा पसन्द नहीं किया जायेगा, क्योंकि उन्हें परीक्षा में बैठना होगा जिसमें पाठ्यक्रम के सब विषयों और प्रकरणों से प्रश्न पूछे जा सकते हैं। यही कारण है कि बहुत-से शिक्षक लकीर के फकीर बने रहते है और प्रस्तावित पाठ्यक्रम के शिक्षण पर कठोरता से बने रहते हैं। यह कठिनाई उस समय ही दूर हो सकती है जबकि शिक्षकों को अपना पाठ्यक्रम बनाने की स्वतन्त्रता हो और वह अपने विद्यार्थियों का स्वयं मूल्यांकन करें।

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