विशेष कक्षाएँ (Special Classes)-
ऐसी कक्षाओं तथा विषयों में जहाँ पिछड़े बालकों की संख्या अधिक होती है उन्हें सामान्य बालकों के साथ पढ़ना लाभप्रद नहीं हो सकता है बल्कि निरन्तर असफलता से ये बालक मनोवैज्ञानिक हीनता का शिकार हो जाता हैं। अतः इससे पहले कि ये लगातार कक्षा में फेल होते रहें उनके लिए पृथक कक्षाओं की व्यवस्था सामान्य विद्यालयों में ही कर दी जानी चाहिए।
पृथक कक्षाओं में इन बालकों के समक्ष समायोजन व कुण्ठा जैसी समस्याएँ उत्पन्न नहीं होतीं। अध्यापक भी अब इनकी शैक्षिक प्रगति, बौद्धिक क्षमता स्तर व उनकी विशिष्ट कमजोरियों को दृष्टिगत रखते हुए शिक्षण सामग्री को विविध एवं सरल तरीकों से उनके समक्ष प्रस्तुत कर सकता है क्योंकि कक्षा में सभी बालकों का शैक्षिक उपलब्धि स्तर लगभग एक-सा होता है।
कुछ शिक्षाविद् पृथक् कक्षाओं की व्यवस्था को उचित नहीं मानते। उनके अनुसार सामान्य बालकों से अलग कर दिये जाने पर उनमें यह भावना घर कर सकती है कि उन्हें पिछड़ा हुआ समझा जाता है तथा सभी बालकों का स्तर निम्न होने के कारण आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन का भी अभाव हो सकता है। इसके अलावा संभव है कि वे समान प्रवृत्ति के बालकों के साथ रहने के कारण समस्यात्मक बालक बन जायें ।
विशेष विद्यालय (Special Schools)-
ऐसे पिछड़े बालकों के संदर्भ में जिनमें पिछड़ेपन का कारण बौद्धिक न्यूनता या मन्दन अथवा कोई अत्यधिक विषम शारीरिक विकलांगता होती है विशेष विद्यालयों की व्यवस्था करना ही न्यायोचित रहता है क्योंकि उनकी अक्षमता इस स्तर की होती है कि वे सामान्य रूप से प्रयोग में आने वाली शिक्षण सामग्री द्वारा शिक्षित नहीं किए जा सकते हैं। उनके लिए विशिष्ट प्रकार के शिक्षण, प्रशिक्षण, पाठ्य सामग्री तथा सहायक उपकरणों की आवश्यकता होती है जिन्हें सामान्य विद्यालयों में उपलब्ध करना संभव नहीं होता है। मानसिक न्यूनता व शारीरिक विकलांगता वाले बालकों के लिए पृथक्-पृथक् विद्यालय होते हैं। मानसिक न्यूनता वाले बालकों को जिन्हें किसी भी प्रकार से शिक्षित नहीं किया जा सकता है कुछ ऐसे व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया जाता है। जिससे वे समाज पर बोझ न बनें व अपना जीवन यापन स्वयं कर सकें। इसके अतिरिक्त उन्हें सामाजिकता के सामान्य नियमों व अपने स्वयं के कार्यों को भली प्रकार कर सकने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
शारीरिक रूप से विकलांग बालकों को उनकी विकलांगता की सीमा व प्रकृति के अनुरूप सहायता उपकरणों के उपयोग से शिक्षित किया जाता है। इन्हें भी व्यावसायिक व सामाजिकता का प्रशिक्षण दिया जाता है। विकलांगता के पूर्ण रूप से दूर हो जाने पर (उपचारात्मक तरीकों से) इन बालकों को सामान्य विद्यालयों में स्थानान्तरित किया जा सकता है।
विशिष्ट पाठ्यक्रम (Specified Curriculum)
सामान्य रूप से पाठ्यक्रम का निर्धारण औसत क्षमता वाले बालकों की आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखते हुए किया जाता है। पिछड़े बालक (विशेष रूप से बौद्धिक न्यूनता वाले बालक) इस पाठ्यक्रम को कुशलता के साथ पूर्ण करने में असफल रहते हैं। अत: उनके लिए सरल एवं छोटे पाठ्यक्रमों का, जो उनकी अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं, क्षमताओं व रुचियों के अनुरूप हो, निर्धारण करना उपयोगी रहता है। इन बालकों को विद्वान बनाने के स्थान पर उपयोगी नागरिक व कुशल कार्यकर्त्ता बनाना इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य होना चाहिए तथा काष्ठ शिल्प, गृह शिल्प, पुस्तक शिल्प आदि को इनके पाठ्यक्रम में समावेशित किया जाना चाहिए।
शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods)
न्यून बौद्धिक क्षमता अथवा विषय इकाई के मूल सिद्धान्तों की अज्ञानता के कारण पिछड़े बालक सामान्य रूप से प्रचलित शिक्षण विधियों जैसे- व्याख्यान, व्याख्यान- प्रदर्शन आदि से सीखने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। अत: इनके शिक्षण के लिए इन विधियों में पर्याप्त परिमार्जन की आवश्यकता होती है। इन्हें स्थूल (concrete) सामग्री और प्रत्यक्ष अनुभवों की सहायता लेकर तथा विषय-वस्तु की छोटी-छोटी इकाइयों में बाँटकर सरल तरीकों से पढ़ाया जाना चाहिए। पढ़ाई गई इकाइयों की बार-बार पुनरावृत्ति (drill) व अभ्यास भी बहुत आवश्यक होता है। दृश्य-श्रव्य (Audio-visual) सामग्री का आवश्यकतानुसार उपयोग करना चाहिए तथा उन्हें सीखने के लिए प्रोत्साहित करते रहना चाहिए। सांगिक अथवा अन्य कारणों से 1 जाने वाले बालकों के लिए अभिनय, प्रोजेक्ट विधि, आदि नवीन शिक्षण विधियों का प्रयोग इस उपचारात्मक शिक्षण में विशेष महत्त्व रखता है।
विशेष अध्यापक (Special Teachers)
पिछड़े बालकों के लिए विशेष कक्षाओं, विशिष्ट पाठ्यक्रम व परिमार्जित शिक्षण विधियों को अपनाने का उद्देश्य तभी पूर्ण हो सकता है जबकि शिक्षक इन सब परिवर्तनों को प्रभावी व सफल रूप दे सके। ऐसा शिक्षक अधिक व्यावहारिक व अनुभवी होना चाहिए। उसे बाल मनोविज्ञान का अच्छा न हो, बालकों की विशिष्ट कमियों व कठिनाइयों को समझने की क्षमता व रुचि रखता हो उसमें पर्याप्त धैर्य हो ताकि व बालकों के लगातार असफल होने पर भी अपने आपको निरन्तर सफलता के प्रयास के काम में लगाये रखे ।
परीक्षा प्रणाली (Examination System)
कभी-कभी दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली भी बालकों के पिछड़ेपन के लिए उत्तरदायी होते है अतः परीक्षकों को चाहिए कि पिछड़े वर्ग की शैक्षिक उपलब्धि परीक्षा लेते समय इन सब बातों का ध्यान रखें, प्रश्न-पत्रों को अधिक वस्तुनिष्ठ (objective) बनायें, सरल भाषा का प्रयोग करें तथा प्रश्न पत्र में उन सभी पाठ्यांशों से प्रश्न पूछें जिनको वह कक्षा में पढ़ा चुके हैं। प्रायः कुछ धीमी गति से सीखने व प्रत्युत्तर देने वाले बालक प्रश्न-पत्र को पूरा करने में सामान्य से अधिक समय लेते हैं। अतः समय का निर्धारण इन बालकों की गति को ध्यान में रखते हुए करें। साथ ही इन बालकों के मूल्यांकन में प्राप्तांकों के अतिरिक्त उनके शैक्षिक व व्यक्तिगत इतिहास, एनेकडोट्ल आलेख, प्रगति आख्या, सामूहिक आलेख आदि का समावेश रहना चाहिए।