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स्वास्थ्य शिक्षा तथा इसके महत्त्व B.Ed Notes

Published by: Ravi Kumar
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स्वास्थ्य शिक्षा का वह खण्ड है जो कि व्यक्ति, समुदाय और जाति की स्वास्थ्य सम्बन्धी आदतों तथा दृष्टिकोणों को अच्छा बनाने में सहायक होता है। विस्तृत अर्थ में स्वास्थ्य शिक्षा का तात्पर्य उन सब बातों से है जो व्यक्ति को स्वास्थ्य के सम्बन्ध में शिक्षा देती हैं। विद्यालयी स्वास्थ्य शिक्षा, स्वास्थ्य शिक्षा का वह अंग है जो शिक्षालयों में उनके सदस्यों के संगठित प्रयत्नों द्वारा संचालित किया जाता है।

विद्यालयी स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य विद्यालय में अध्ययन करने वाले छात्रों को सम्बन्धी अच्छी आदतों का ज्ञान देना तथा उनके स्वास्थ्य को बनाये रखना है।

स्वास्थ्य ग्राउट के अनुसार- “स्वास्थ्य शिक्षा से अभिप्राय है, स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान को किसी प्रकार शिक्षा पद्धति द्वारा उचित व्यक्तिगत एवं सामाजिक व्यवहार के तरीके में बदला जा सकता है।”

स्वास्थ्य शिक्षा को परिभाषित करते हुए डॉ. थॉमस वुड ने लिखा है- स्वास्थ्य शिक्षा अनुभवों का योग है जो व्यक्ति समुदाय व जाति की स्वास्थ्य सम्बन्धी आदतों, वृत्तियों तथा ज्ञान को प्रभावित करता है।

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व्यक्ति के जीवन के आरम्भिक वर्ष हर दृष्टि में महत्त्वपूर्ण होते हैं और स्वास्थ्य की दृष्टि से तो विशेषकर, क्योंकि बचपन में ही यदि स्वास्थ्य उत्तम है तो बड़े होने पर भी उत्तम स्वास्थ्य विकसित होगा । यदि बचपन में ही बच्चा अस्वस्थ और रोगी रहता है तो बड़ा होने पर भी वह एक अस्वस्थ और रोगी व्यक्ति ही बनेगा। चूँकि विद्यालय का जीवन बच्चे के जीवन का महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावशाली अंग होता है और अध्यापक बच्चों के पूर्ण भावी मानव के रूप में विकसित होने हेतु आधार प्रस्तुत करता है, इसलिए विद्यालय स्वास्थ्य विज्ञान के प्रति विचारशील होना उसका कर्तव्य हो जाता है इसीलिए विद्यालय स्वास्थ्य विज्ञान का ज्ञान और उसका सुपरिणामजनक प्रयोग उसके लिए नितान्त आवश्यक है। अतः विद्यार्थियों के सामान्य स्वास्थ्य में किसी प्रकार की कमी, रुकावट या रोग (शारीरिक या मानसिक) को समझकर उसका उपचार बताना और सुधार करना विद्यालय के कार्यक्रम का एक अंग है और अध्यापक का कर्त्तव्य भी । यदि अध्यापक अपना यह कर्तव्य पूरा करता तो बच्चे के स्वास्थ्य में और भी गड़बड़ी हो जाने की सम्भावना है।

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बालक के स्वास्थ्य पर आनुवंशिक गुण और परिवेश का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। शिक्षक का वश वंशानुगत गुणों पर या परिपक्वता पर तो नहीं चल सकता फिर भी स्वास्थ्य के सिद्धान्तों को ध्यान में रखकर विद्यालयी वातावरण से स्वस्थ जीवन का वातावरण उत्पन्न कर इस क्षेत्र में बहुत कुछ योगदान दे सकता है।

अध्यापक को विद्यार्थियों के सामान्य स्वास्थ्य का निरीक्षण करने के अतिरिक्त यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि विद्यार्थियों के विद्याध्ययन का स्थान हवादार और प्रकाशमान है, उनके बैठने के स्थान की स्वच्छता की तथा भोजन की व्यवस्था समुचित है या नहीं। अतः बच्चों को उनके स्वास्थ्य हेतु प्रेरित करने में स्वास्थ्य शिक्षा महत्त्वपूर्ण है।

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Ravi Kumar is a content creator at Sarkari Diary, dedicated to providing clear and helpful study material for B.Ed students across India.

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