मानव जीवन का प्रत्येक कार्य उसकी रुचि एवं ध्यान पर निर्भर करता है। ध्यान और रुचि के बिना शिक्षा कार्यक्रम नहीं चल सकता क्योंकि जब बच्चे की रुचि उसमें नहीं होगी तो वह उस विषय पर ध्यान नहीं देगा और वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाएगा। इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में ध्यान और रुचि की भूमिका महत्वपूर्ण है। इस अध्याय के अंतर्गत हम ध्यान और रुचि के महत्व, उनकी परिभाषाओं, विशेषताओं और प्रकारों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
अवधान क्या है?
चेतना की एकाग्रता और किसी उत्तेजना के प्रति मानसिक दृष्टिकोण को हम ध्यान कह सकते हैं। व्यक्ति के सामने विभिन्न प्रकार की उत्तेजनाएँ निरंतर उपस्थित रहती हैं। वह सबके प्रति समान रूप से जागरूक नहीं है. वह केवल कुछ उत्तेजनाओं या एक वस्तु से संबंधित उत्तेजनाओं को ही ध्यान में लाता है। उत्तेजनाओं का यह चयन उसकी रुचि पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, सड़क पर चलते समय हम सभी वस्तुओं के प्रति समान जागरूकता नहीं दिखाते, हम केवल उन्हीं वस्तुओं पर ध्यान देते हैं जो हमारी रुचि का विषय हैं। इसके अलावा ध्यान की दिशा निर्धारण में ध्यान की स्थितियाँ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
अवधान का अर्थ व परिभाषा (Meaning and Definition of Attention)
हम जीवन में कई तरह की चीजें देखते हैं। आइए कुछ के बारे में सुनें. कुछ चीजों की ओर हम आकर्षित होते हैं और कुछ चीजों की ओर हमारा ध्यान अनायास ही चला जाता है। इन सभी व्यवहारों को ध्यान कहा जाता है।
‘चेतना’ व्यक्ति का स्वाभाविक गुण है। चेतना के कारण ही उसे विभिन्न चीजों का ज्ञान होता है। यदि वह कमरे में बैठकर किताब पढ़ रहा है तो उसे वहां मौजूद सभी चीजों, जैसे मेज, कुर्सी, अलमारी आदि के बारे में कुछ जागरूकता जरूर होती है, लेकिन उसकी चेतना का केंद्र वह किताब होती है जिसे वह पढ़ रहा है। चेतना का इस प्रकार किसी वस्तु पर केन्द्रित होना ‘ध्यान’ कहलाता है। दूसरे शब्दों में। किसी वस्तु पर चेतना को केन्द्रित करने की मानसिक प्रक्रिया को ‘ध्यान’ या ध्यान कहा जाता है।
अवधान के अर्थ को हम निम्नांकित परिभाषाओं से पूर्ण रूप से स्पष्ट कर सकते हैं-
अवधान की विशेषताएँ (Characteristics Of Attention)
(i) मानसिक सक्रियता (Conation)- किसी बात पर ध्यान देने के लिए मानसिक सक्रियता जरूरी है। जब हम गुलाब के फूल पर ध्यान देते हैं तो हमारा दिमाग उसकी विशेषताओं की ओर आकर्षित हो जाता है और सक्रिय हो जाता है। ध्यान मानसिक क्रिया का एक रूप है।
(ii) चंचलता/गतिशीलता (Mobility)- ध्यान की स्थिरता नगण्य है. यह बहुत चंचल है. यह किसी भी वस्तु पर 10-12 सेकंड से ज्यादा नहीं रह सकता। इसी चंचलता के कारण ही व्यक्ति सदैव नई-नई चीजों की खोज में रुचि लेता है।
(iii) चयनात्मकता – जिस वस्तु के प्रति हमारी रुचि अधिक होगी, ध्यान का झुकाव भी वहीं अधिक होगा तथा ध्यान की स्थिरता अन्य वस्तुओं की अपेक्षा उस वस्तु पर अधिक होगी। दिलचस्प चीजों पर हमारा ध्यान जल्दी पहुंचता है.
(iv) संकीर्णता (Narrowness)- ध्यान का दायरा बहुत संकीर्ण है। हम एक ही समय में कई चीज़ों पर ध्यान नहीं दे सकते क्योंकि ध्यान चयनात्मक और संकीर्ण होता है। यह दिलचस्प वस्तुओं की ओर जल्दी आकर्षित हो जाता है।
(v) उद्देश्यपूर्णता (Purposiveness)- जब हम किसी सुन्दर वस्तु को देखते हैं तो हमारा ध्यान आकर्षित हो जाता है। क्योंकि हमें सुंदरता का एक आकर्षक एहसास हुआ और इसलिए हमारा ध्यान उधर चला गया। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि ध्यान किसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर किया जाता है। उद्देश्य प्राप्ति की संभावना जितनी अधिक होगी, ध्यान की स्थिरता भी उतनी ही अधिक होगी।
(vi) तत्परता (Readiness)- वुडवर्थ के शब्दों में, “प्रारंभिक तत्परता या तैयारी ध्यान में एक आवश्यक प्रतिक्रिया है। यानी व्यक्ति को किसी वस्तु पर ध्यान देने के लिए तैयार रहना होगा।
(vii) गतियों का समायोजन (मोटर समायोजन) – किसी विशेष वस्तु पर ध्यान देते समय समायोजन आवश्यक है। उदाहरण के लिए, देखने के लिए आंखों की गतिविधियों को दृश्यों के अनुरूप समायोजित किया जाता है।
(viii) सक्रिय केंद्र- जिन चीज़ों पर हम ध्यान देते हैं वे हमारे दिमाग में सक्रिय रूप से स्पष्ट हो जाती हैं। इसके विपरीत जिन चीजों पर हम ध्यान नहीं देते, उनका हमारे दिमाग पर कोई असर नहीं होता।
(ix) खोजपूर्ण, विश्लेषणात्मक और सिंथेटिक दृष्टिकोण – वुडवर्थ के शब्दों में, “ध्यान चंचल है क्योंकि यह खोजपूर्ण है, यह जांच के लिए लगातार कुछ नया खोजता है। हमारा ध्यान अक्सर नई वस्तुओं की ओर निर्देशित होता है। जब कोई व्यक्ति कोई नई चीज़ पाता है , वह इसकी संरचना और स्वरूप का विश्लेषण और संश्लेषण करना शुरू कर देता है। यही मानवीय प्रवृत्ति है।
(x) अवधान की अवस्थायें (Stages of Attention)- इसकी दो अवस्थायें होती हैं-
- भावात्मक अवस्था
- अभावात्मक अवस्था
जब हमारा अवधान एक पहलू की ओर जाता है तो दूसरे पहलू की ओर से अवधान स्वतः ही हट जाता है। पहली अवस्था भावात्मक तथा दूसरी अवस्था अभावात्मक अवस्था कहलाती है।
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अवधान के प्रकार (Types of Attention)
मनोवैज्ञानिक जे. एस. रॉस ने अवधान को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया है-
अवधान (Attention)
- ऐच्छिक अवधान (Volitional Attention)
- अविचारित (Implicit)
- विचारित (Explicit)
- अनैच्छिक अवधान (Non-Volitional Attention)
- सहज (Spontaneous)
- बाध्य (Enforced)
उपर्युक्त तालिका का हम निम्न प्रकार स्पष्टीकरण कर सकते हैं-
(1) ऐच्छिक अवधान (Volitional Attention)- ऐच्छिक अवधान अर्जित अभिरुचि या रुचि पर आधारित होता है। यह दो प्रकार का होता है-
- अविचारित अवधान (Implicit Attention)- यह अवधान ऐसा होता है जिसमें व्यक्ति को अपनी चेतना केन्द्रित करने के लिये किसी सोच-विचार की आवश्यकता नहीं पड़ती।
- विचारित अवधान (Explicit Attention)- यह उस प्रकार का अवधान है जिसमें चेतना को किसी वस्तु पर खूब सोच-विचारकर केन्द्रित किया जाता है।
(2) अनैच्छिक अवधान (Non-Volitional Attention)- जब व्यक्ति बिना किसी इच्छा के ही किसी वस्तु पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है तो उसे अनैच्छिक अवधान कहा जाता है। यह अग्र दो प्रकार का होता है-
- सहज अवधान (Spontaneous Attention)- इस तरह के अवधान मूल प्रवृत्तियों की प्रेरणा से किसी वस्तु पर स्वाभाविक रूप से केन्द्रित हो जाते हैं।
- बाध्य अवधान (Enforced Attention)- जब हम किसी कारण से बाध्य होकर किसी वस्तु पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं तो वह बाध्य अवधान कहलाता है। यह अवधान किसी उद्दीपन के कारण होता है