चिन्तन, विचारों का क्रम है जो किसी समस्या या विषय के बारे में गहराई से सोचने और समझने की कोशिश करता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें हम अपने ज्ञान, अनुभव और कल्पना का उपयोग करके किसी विषय के बारे में विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार करते हैं, उनका विश्लेषण करते हैं और उनमें से निष्कर्ष निकालते हैं। चिन्तन के प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. अपसरण चिन्तन (Divergent Thinking)-
अपसरण चिन्तन में हम विभिन्न दिशाओं में विचार करते हैं, कभी कुछ खोज करते और कभी विविधता तलाश करते हैं। अपसरण की तीन प्रमुख योग्यताएँ हैं-धाराप्रवाहिता, सभ्यता, तथा मौलिकता।
एक समस्या के हल में अपसरण का प्रयोग करते हैं। हम कह सकते हैं कि चिन्तन की कम से कम दो दिशाएँ होती है। एक है हल को प्राप्त करना या समस्या का अन्त। दूसरी दिशा में एक नये अथवा जो आमतौर से स्वीकृत नहीं है, उस उत्तर को निकालना है। इस दिशा को गिलफोर्ड अपसरण चिन्तन कहते है।
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2. अभिसारी चिन्तन (Convergent Thinking)-
इस प्रकार की चिन्तन को निगमनात्मक सोच भी कहा जाता है। अभिसरण चिंतन में व्यक्ति दिए गए तथ्यों के आधार पर सही निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयास करता है। उदाहरण के लिए, यदि आपसे पूछा जाए कि 5 को 2 से गुणा करने पर क्या आएगा, तो इसका उत्तर देने में शामिल सोच अभिसारी सोच का एक उदाहरण होगी। स्पष्ट है कि इस प्रकार की सोच में व्यक्ति अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त अनुभवों के आधार पर समाधान ढूंढता है।
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3. आलोचनात्मक चिन्तन (Critical Thinking)
इस प्रकार की चिन्तन में व्यक्ति किसी भी वस्तु, घटना या तथ्य को सत्य मानने से पहले उसके गुण-दोषों का परीक्षण करता है। हमारे समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो किसी भी घटना या बात के बारे में कही गई बात को सही मानते हैं। फिर कहा जाता है कि ऐसे व्यक्ति में आलोचनात्मक चिंतन की शक्ति कम होती है। दूसरी ओर, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो किसी घटना या वस्तु के बारे में बताए जाने पर पहले उसके गुण-दोषों को परखते हैं और फिर उसे सही या गलत मानते हैं। किसी व्यक्ति में इस प्रकार की सोच को आलोचनात्मक सोच कहा जाता है।
4. विचारात्मक या तार्किक चिन्तन (Reflective or Logical Thinking)
यह एक उच्च स्तरीय चिन्तन है, जिसका एक लक्ष्य होता है। सरल, सोचपूर्ण और पहला अंतर यह है कि इसका उद्देश्य साधारण समस्याओं के बजाय जटिल समस्याओं को हल करना है। दूसरे, अनुभवों को केवल एक-दूसरे से जोड़ने के बजाय, सभी संबंधित अनुभवों को पुनर्गठित करके, उनसे स्थिति का सामना करने या बाधाओं को दूर करने के नए तरीके खोजे जाते हैं। तीसरा, चिंतनशील सोच में मानसिक गतिविधि में यांत्रिक प्रयास शामिल नहीं होता है। चौथा, चिंतनशील सोच में तर्क को आगे रखा जाता है। सम्बन्धित तथ्यों को तार्किक क्रम में व्यवस्थित करने से प्रस्तुत समस्या का समाधान मिल जायेगा।
5. पाश्र्विक चिन्तन (Lateral Thinking)
पाश्र्विक चिन्तन की वह विधि है. जिसके द्वारा उलझी हुई समस्याओं का हल परम्परावादी या तत्त्वों द्वारा प्राप्त किया जाता है। पाश्र्विक चिन्तन कथन और विचारों के गतिमान मूल्य से चत होता है।