शिक्षण एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से हमें ज्ञान, अनुभव और नैतिक मूल्यों की प्राप्ति होती है। इसके द्वारा हमें समाज में सफलता प्राप्त करने की क्षमता विकसित होती है और हम अपने जीवन में सुख और समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं। शिक्षण की प्रकृति विभिन्न तत्वों से मिलकर बनती है और हमारे जीवन के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
शिक्षण की प्रकृति के तत्व
शिक्षण की प्रकृति के मुख्य तत्व हैं:
- शिक्षक
- छात्र
- अध्ययन सामग्री
- शिक्षा के माध्यम
- शिक्षा के उद्देश्य
शिक्षक शिक्षा की प्रमुख शक्ति होते हैं। वे छात्रों को ज्ञान का स्रोत प्रदान करते हैं और उनकी सोचने और समझने की क्षमता को विकसित करते हैं। छात्र शिक्षा की प्राप्ति के लिए सचेत होना चाहिए और अध्ययन सामग्री उन्हें ज्ञान के आधार पर विकसित करती है।
शिक्षा के माध्यम के रूप में विभिन्न तकनीकों का उपयोग होता है जैसे कि कक्षा में बोर्ड, प्रोजेक्टर, कंप्यूटर आदि। शिक्षा के उद्देश्य छात्रों को ज्ञान, नैतिक मूल्यों, कौशल और समझ के साथ सम्पन्न बनाने का होता है।
शिक्षण की प्रकृति का महत्व
शिक्षण की प्रकृति का महत्व निम्नलिखित है:
- ज्ञान की प्राप्ति
- व्यक्तित्व विकास
- समाज में सफलता
- जीवन में सुख और समृद्धि
शिक्षा के माध्यम से हम ज्ञान की प्राप्ति करते हैं जो हमें अपने जीवन में सफलता के मार्ग पर ले जाता है। यह हमारे व्यक्तित्व का विकास करता है और हमें समाज में स्वीकृति प्राप्त करने की क्षमता देता है। शिक्षा के बिना हम जीवन में सफलता, सुख और समृद्धि की प्राप्ति करने में असमर्थ होते हैं।
शिक्षाशास्त्रियों तथा मनोवैज्ञानिकों ने शिक्षण प्रक्रिया की अनेक परिभाषाएँ दी है, जिनके विश्लेषण से शिक्षण की प्रकृति का बोध होता है। निम्नलिखित कथनों के रूप शिक्षण की प्रकृति की व्याख्या की जा सकती है-
(1) शिक्षण एक अन्तः प्रक्रिया है (Teaching is an Interactive Process) — शिक्षक तथा छात्रों के मध्य विशेष कार्य के लिये संचालित होती है।
(2) शिक्षण एक सामाजिक तथा व्यावसायिक प्रक्रिया है (Teaching is a Social and Professional Activity)— शिक्षण की प्रक्रिया शिक्षक तथा छात्रों के समूह में ही सम्पादित की जाती है। कम से कम एक शिक्षक और एक छात्र होना नितान्त आवश्यक होता है। शिक्षण एक व्यावसायिक क्रिया है जिसे व्यक्ति अपने जीवकोपार्जन का साधन बनाते हैं, जिन्हें शिक्षक कहते हैं।
(3) शिक्षण एक सोद्देश्य प्रक्रिया है (Teaching is a Purposeful or Objective-centred Process) — शिक्षण की क्रियाएँ किन्हीं विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये की जाती हैं।
(4) शिक्षण एक विकासात्मक प्रक्रिया है (Teaching is a Process of Development)- शिक्षण प्रक्रिया के द्वारा बालकों का विकास किया जाता है और उनके व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाया जाता है। ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक पक्षों का विकास किया है।
(5) शिक्षण कला तथा विज्ञान दोनों ही है (Teaching is a Science as well as an Art)- शिक्षण की प्रकृति कलात्मक तथा वैज्ञानिक दोनों ही है। शिक्षण नियोजन तथा मूल्यांकन क्रियाओं की प्रकृति वैज्ञानिक अधिक है, जबकि शिक्षण का प्रक्रिया पक्ष कलात्मक है, जिसमें शिक्षक अपने कौशल का प्रयोग करता है।
(6) शिक्षण में भाषा सम्प्रेषण का कार्य करती है (Teaching is a Linguistic Process)— शिक्षण में तथ्यों, प्रत्ययों, सिद्धान्तों तथा सामान्यीकरण का बोध भाषा के प्रयोग द्वारा शिक्षक कराता है।
(7) शिक्षण एक आमने-सामने होने वाली प्रक्रिया है (Teaching is a face-to-face Activity)— शिक्षण क्रियाओं के समय शिक्षक तथा छात्र आमने-सामने बैठते हैं और स्वोपक्रम तथा अनुक्रियाएँ करते हैं।
(8) शिक्षण एक उपचार प्रक्रिया है (Teaching is Prescription)- शिक्षण में छात्रों की कमजोरियों का निदान करके उन्हें सुधार के लिये उपचार दिया जाता है।
(9) शिक्षण एक तार्किक क्रिया है (Teaching is a Logical Activity)— शिक्षण का नियोजन शिक्षक की तर्कशक्ति पर ही आधारित होता है। पाठ्यवस्तु का विश्लेषण तथा संश्लेषण तर्कशक्ति द्वारा ही किया जाता है।
(10) शिक्षण का मापन किया जाता है (Teaching is Measurable) — शिक्षण का मापन शिक्षक के व्यवहार के रूप में किया जाता है। निरीक्षण विधियों द्वारा शिक्षक व्यवहारों का मापन और व्यवहार के स्वरूप का विश्लेषण भी किया जाता है।
(11) शिक्षण में सुधार तथा विकास भी किया जाता है (Teaching is Modifiable)— पृष्ठपोषण की प्रविधियों द्वारा शिक्षण व्यवहार में अपेक्षित सुधार भी किया जाता है।
(12) शिक्षण प्रशिक्षण से लेकर अनुदेशन तक सतत् प्रक्रिया है (Teaching is a Comtinuum from Training, Conditioning, Instruction to Indoctrination) — शिक्षण प्रक्रिया प्रशिक्षण से आरम्भ होती है और क्रमागत चढ़ाव के रूप में अनुदेशन तक चलती है।
(13) शिक्षण एक त्रिध्रुवीय प्रक्रिया है (Teaching is Tripolar Process) – अधिकांश शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षण को त्रिध्रुवीय प्रक्रिया कहा है। ब्लूम के अनुसार, शिक्षण के तीन पक्ष – (i) शिक्षण उद्देश्य, (ii) सीखने के अनुभव, तथा (iii) व्यवहार परिवर्तन हैं।
(14) शिक्षण एक निर्देशन की प्रक्रिया है (Teaching is a Guidance) – शिक्षण में छात्रों की योग्यताओं के अनुसार उनके विकास का प्रयास किया जाता है। यही लक्ष्य निर्देशन का होता है।
(15) शिक्षण एक औपचारिक तथा अनौपचारिक प्रक्रिया है (Teaching is a Formal and Informal Process)— शिक्षा प्रक्रिया विद्यालय में निश्चित कार्यक्रम के अनुसार सम्पादित की जाती है। और विद्यालय के बाहर भी संचालित की जाती है।
संक्षेप में
शिक्षण की प्रकृति ज्ञान का अनमोल खजाना है जो हमें समाज में सफलता प्राप्त करने की क्षमता देता है। इसके मुख्य तत्व हैं शिक्षक, छात्र, अध्ययन सामग्री, शिक्षा के माध्यम और शिक्षा के उद्देश्य। शिक्षा की प्रकृति का महत्व ज्ञान, व्यक्तित्व विकास, समाज में सफलता और जीवन में सुख और समृद्धि के संदर्भ में है।