Home / B.Ed / M.Ed / DELED Notes / Learning and Teaching B.Ed Notes in Hindi / मैस्लो का आवश्यकता अनुक्रमिकता सिद्धान्त | Maslow’s Theory of Hierarchy of Needs B.Ed Notes

मैस्लो का आवश्यकता अनुक्रमिकता सिद्धान्त | Maslow’s Theory of Hierarchy of Needs B.Ed Notes

Published by: Ravi Kumar
Updated on:
Share via
Updated on:
WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

मस्लो (1943, 1954) ने अभिप्रेरणा सम्बन्धी जो सिद्धान्त प्रतिपादित किया है उसे आवश्यकता अनुक्रमिकता सिद्धान्त कहते हैं। यह एक काफी लोकप्रिय सिद्धान्त रहा है। इसकी मान्यता है कि व्यक्ति का व्यवहार विभिन्न प्रकार के प्रेरकों या आवश्यकताओं द्वारा निर्देशित होता है। मैस्लो के अनुसार आवश्यकताओं का विकास एक निश्चित क्रम में होता है। सर्वप्रथम निम्न क्रम आवश्यकताओं (Lower Order Needs) का और उसके बाद उच्च क्रम आवश्यकताओं (Higher Order Needs) का विकास होता है। इनके विकास का क्रम निम्नवत होता है। विकास का क्रम चित्र में प्रदर्शित किया गया है।

Maslow's Theory of Hierarchy of Needs
Maslow’s Theory of Hierarchy of Needs

मरलो का आवश्यकता अनुक्रमिता मॉडल (Maslow’s Model of Need Hierarchy)

मैस्लो के अनुसार दैहिक एवं सुरक्षात्मक आवश्यकताएँ निम्न (Lower) और शेष उच्च (Higher) आवश्यकताएँ है। सामाजिक जीवन में इन्हीं का महत्त्व अधिक होता है।

मैक्ग्रेगर (1957) के अनुसार मैस्लो के सिद्धान्त के मुख्य अभिग्रह निम्नांकित है-

1. आवश्यकताओं के विकास में एक निश्चित क्रम पाया जाता है। निम्न (Lower) आवश्यकताओं की संतृप्ति के बाद ही उच्च (Higher) आवश्यकताओं का प्रादुर्भाव होता है। अर्थात् जब एक निचली आवश्यकता की पूर्ति तथा विकास नहीं हो जाता है तब तक उच्च आवश्यकताएँ सक्रिय प्रेरक का कार्य नहीं करती है।

2. वयस्क प्रेरक जटिल होते हैं अर्थात् उनमें व्यवहार के निर्धारण में कोई एक अकेला प्रेरक ही कार्य नहीं करता है बल्कि एक समय पर एक से अधिक प्रेरक सक्रिय रहते हैं।

3. जिस आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है वह प्रेरक नहीं रह जाती है। असन्तुष्ट आवश्यकताएँ ही प्रेरक का कार्य करती हैं। किसी निम्न आवश्यकता की पूर्ति हो जाने पर ही उच्च आवश्यकता का विकास होता है।

Also Read:  शिक्षण कार्य की अवस्थाएँ तथा क्रियाएँ | Stages and activities of teaching work B.Ed Notes

4. निम्न आवश्यकताओं की पूर्ति का निश्चित साधन होता है, जैसे-भूख की पूर्ति भोजन से होगी परन्तु उच्च आवश्यकताओं की पूर्ति अनेकानेक रूपों में हो सकती है। जैसे सम्मान पाने के लिये कोई नेता, कोई वैज्ञानिक, कोई अधिकारी तो कोई लेखक बनना पसन्द कर सकता है या एक से अतिरिक्त और भी माध्यमों का सहारा ले सकता है।

5. व्यक्ति विकास या वृद्धि (Growth) चाहता है। कोई भी व्यक्ति केवल दैहिक आवश्यकताओं की पूर्ति तक ही सीमित नहीं रहना चाहता है। सामान्यतः व्यक्ति उच्च स्तरीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना चाहता है।

निम्न क्रम आवश्यकताएँ (Lower Order Needs)

1. दैहिक आवश्यकताएँ (Physiological Needs)- इन्हें भौतिक आवश्यकताएँ भी कहा जाता है। अस्तित्व की रक्षा के लिये ये अत्यावश्यक हैं। भूख, प्यास तथा यौन आवश्यकताएँ इसी वर्ग में आती हैं। इनकी पूर्ति आवश्यक होती है। इनमें अत्यधिक प्रेरक क्षमता होती है। जीवन की रक्षा के लिये इनकी पूर्ति आवश्यक होती है। एक कहावत भी है, यदि पेट ही नहीं भरता तो व्यक्ति आगे की क्या सोच पायेगा (Maslow, 1943)1

2. सुरक्षात्मक आवश्यकताएँ (Safety Needs)- दैहिक आवश्यकताओं की अपेक्षित रूप में पूर्ति होने के पश्चात् व्यक्ति में सुरक्षा आवश्यकताओं का प्रभाव दिखाई पड़ने लगता है। व्यक्ति अपनी तथा अपनी वस्तुओं की सुरक्षा चाहता है, जैसे- आग से सुरक्षा, दुर्घटना से बचना, आर्थिक सुरक्षा, चोरी से बचाव एवं स्वास्थ्य की सुरक्षा इत्यादि।

उच्च क्रम आवश्यकताएँ (Higher Order Needs)

3. सम्बन्धन आवश्यकता (Belongingness Needs)-निम्न क्रम की आवश्यकताओं के विकसित हो जाने के बाद सामाजिक या सम्बन्धन आवश्यकताओं का विकास प्रारम्भ होता है। व्यक्ति स्वभावतः सामाजिक होता है। वह लोगों के साथ सम्बन्धन स्थापित करके उनका स्नेह, प्रेम एवं सहयोग पाना चाहता है। कुछ लोगों में ये आवश्यकताएँ अधिक तो कुछ में कम प्रबल पाई जाती है। इन पर सामाजिक परिवेश का भी प्रभाव पड़ता है।

Also Read:  अभिप्रेरणा का अर्थ, परिभाषाएँ एवं विशेषताएँ | Meaning, Definitions and Characteristics of Motivation B.Ed Notes

4. सम्मान की आवश्यकता (Esteem Needs)- प्रत्येक व्यक्ति जीवन में मान-सम्मान, प्रतिष्ठा तथा सफलता आदि प्राप्त करना चाहता है। उसमें आत्मनिर्भरता एवं स्वतन्त्रता की भावना भी विकसित होने लगती है। इसे आत्मसम्मान (Self-esteem) की इच्छा कहा जाता है। इसी प्रकार व्यक्ति अपने सम्बन्धियों तथा अन्य लोगों के भी सम्मान की इच्छा रखता है। अर्थात् सम्मान की आवश्यकता के दो पक्ष है आत्मसम्मान और अन्य व्यक्तियों का सम्मान।

5. आत्म-सिद्धि की आवश्यकता (Self-actualization Need)- इसे सर्वोच्च आवश्यकता माना जाता है। इसे जीवन का परम ध्येय (Ultimate goal) भी कहा जाता है। जिन लोगों में यह इच्छा प्रबल होती है वे समाज में अति विशिष्ट स्थान प्राप्त करते हैं। इसका आशय व्यक्ति द्वारा अपनी क्षमता का पूरा विकास करना है। व्यक्ति जो बन सकता है वह बनने की इच्चन ही आत्मसिद्धि की इच्छा कही जाती है (Hampton, 1981)। इसी इच्छा की प्रबलता के कारण कोई महान संगीतकार, कोई कवि, कोई कलाकार, कोई नेता और कोई युगपुरुष (जैसे-गाँधीजी) बनता है।

[catlist name=”learning-and-teaching-b-ed-notes-in-hindi”]

मूल्यांकन (Evaluation)

मैस्लो का सिद्धान्त एक लोकप्रिय सिद्धान्त के रूप में जाना जाता है। इसमे आवश्यकताओं का किया गया वर्गीकरण भी काफी आकर्षक लगता है परन्तु इसमें कतिपय दोष भी हैं-

1. यह अभिग्रह उचित नहीं लगता कि एक आवश्यकता की सतृप्ति के बाद ही दूसरी आवश्यकता का विकास होगा। आवश्यकताओं का विकास किसी न किसी सीमा तक साथ-साथ भी होता है।

Also Read:  पाठ्यक्रम का सम्पादन करने में शिक्षक की भूमिका B.Ed Notes

2. विभिन्न आवश्यकताओं के विकास की अवधि के बीच लक्ष्मण रेखा नहीं खींची जा सकती है। उनमें अन्तर्क्रिया होती है (Davis, 1981)। यह निश्चित करना सम्मद नहीं है कि कब एक आवश्यकता का विकास पूरा होता है और दूसरी प्रारम्म होती है।

3. इस सिद्धान्त के पक्ष में आनुभविक (Empirical) साक्ष्यों का अभाव है (Hall and Nou gain, 1968)

4. कुछ विद्वानों का मत है कि मैस्लो का वर्गीकरण उनकी इच्छा पर न कि किसी तर्क या वैज्ञानिक चिन्तन पर आधारित है (Porter etc. 1975)। अर्थात यह वर्गीकरण स्वविवेकाचीन (Arbitrary) एवं कृत्रिम है।

[catlist name=”bed-deled”]

5. ऐसे भी साक्ष्य उपलब्ध नहीं है जिनमें यह प्रमाणित हो सके कि जिस आवश्यकता की संतृप्ति हो चुकी है वह पुनः सक्रिय नहीं होती है और उसकी सतृप्ति के बाद उससे उच्च आवश्यकता का विकास हो ही जायेगा।

6. इस सिद्धान्त की एक सबसे बड़ी कमी यह है कि सभी लोगों तथा सभी परिवेशों में आवश्यकताओं के विकास की कल्पना समान रूप में की गई है। अर्थात् वैज्ञानिक भिन्नताओं एवं परिवेशीय असमानता के महत्त्व को नजरअन्दाज किया गया (Altimus, Jr. and Tirsine, 1973)1

Photo of author
Published by
Ravi Kumar is a content creator at Sarkari Diary, dedicated to providing clear and helpful study material for B.Ed students across India.

Related Posts

Leave a comment