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झारखंड में सन् 1857 का विद्रोह | Revolt of 1857 Notes for JSSC and JPSC

Published by: Ravi Kumar
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History of Jharkhand – Revolt of 1857 ( झारखंड में सन् 1857 का विद्रोह )

सन् 1857 का विद्रोह भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है। झारखंड इससे अछूता नहीं रहा। यद्यपि सन् 1857 से ठीक पहले 1855-56 में हुए संथाल विद्रोह के कारण न सिर्फ सरकार सचेत थी, बल्कि स्थानीय लोग भी काफी हद तक थक हुए और हताश थे। इसी कारण सन् 1857 का विद्रोह झारखंड में व्यापक रूप से असरदार नहीं रहा।

झारखंड में यह विद्रोह देवघर क्षेत्र के रोहणी ग्राम से प्रारंभ हुआ। 12 जून, 1857 को रोहणी गाँव में मेजर मैक्डोनाल्ड के नेतृत्व में पदस्थापित 32 वीं रेजिमेंट के सैनिकों द्वारा लेफ्टिनेंट नार्मन लेस्ली की हत्या के बाद यह विद्रोह प्रारंभ हुआ। फलतः संथालों की एक सैन्य टुकड़ी तैयार कर देवघर में तैनात की गयी।

दूसरी तरफ रामगढ़ बटालियन, जिसका मुख्यालय राँची था, के सैनिक भी विद्रोह के लिए उतारू थे। स्थिति को भाँपते ही कमिश्नर ने डोरंडा स्थित 8वीं नेटिव इनफेंटरी को दानापुर जाने का आदेश दे दिया। दानापुर छावनी में 25 जुलाई, 1857 को विद्रोह कर दिया गया।

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30 जुलाई, 1857 को हजारीबाग के सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया और प्रथम प्रिंसिपल असिस्टेंट तथा अन्य अधिकारियों के बँगलों को आग में झोंक दिया। सरकारी कार्यालयों में आग लगा दी गई। जेल से कैदियों को छुड़ा लिया गया। खजाना लूटने वाले विद्रोहियों के हाथ बहत्तर हजार नगद लगे।

हजारीबाग को नियंत्रित करने के बाद विद्रोही राँची की ओर कूच कर गए, जिसका नेतृत्व सुरेंद्र शाही कर रहा था। कमिश्नर डाल्टन के राँची पहुँचते ही राँची की स्थिति सामान्य हो गई थी। चारों तरफ से घिरे और स्थानीय जमींदारों के विरोध के कारण वे राँची छोड़ने के लिए बाध्य हो गए, परंतु राँची छोड़ने से पूर्व उन्होंने काफी लूटपाट की।

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अब विद्रोही चतरा की ओर बढ़ गए, दूसरी ओर, अंग्रेजों ने पलामू और शेरघाटी के सभी मार्गों की नाकेबंदी कर दी। चतरा की विद्रोहियों का नेतृत्व जयमंगल पांडे और सूबेदार माधव सिंह कर रहे थे।

01 अक्तूबर, 1857 तक अंग्रेज भी चतरा पहुँच चुके थे। अब दोनों के बीच भीषण संघर्ष हुआ। इस दौरान कई अंग्रेज और सिख सैनिक मारे गए लैफ्टिनेंट डॉट ने अंग्रेजी सेना का नेतृत्व किया, 3 अक्तूबर, 1857 को जयमंगल पांडे और नादिर अली को बंदी बनाकर मेजर सिंपसन ने मुकदमा चलाकर मौत की सजा दे दी। विश्वनाथ शाहदेव और गणपत राय भागने में सफल रहे तथा लोहरदगा में छापामार युद्ध प्रारंभ कर दिया।

चतरा शहर में फँसीहारी पोखरा नामक तालाब में कई विद्रोहियों को फाँसी पर चढ़ा दिया गया।

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पलामू में नीलांबर और पीतांबर ने 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किया।

पूरे सिंहभूम क्षेत्र में अर्जुन सिंह ने विद्रोह का नेतृत्व किया, इसके अलावा भगवान् सिंह, रामनाथ सिंह ने भी सिंहभूम में विद्रोहियों का नेतृत्व किया।

सरकारी दमन ने विद्रोहियों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया गया। 10 अगस्त, 1857 को पूरे झारखंड में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया और क्रांतिकारियों को मृत्यु दंड देने का प्रावधान किया गया।

राँची के निकट टैगोर हिल पर उमराव सिंह तथा शेख भिखारी को फाँसी दे दी गई। इसी प्रकार ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव और पांडे गणपत राय को भी फाँसी दे दी गई। पलामू के प्रमुख क्रांतिकारी नेता पीतांबर, नीलांबर को अप्रैल 1859 में लैसलीगंज में फाँसी दे दी गई।

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Ravi Kumar is a content creator at Sarkari Diary, dedicated to providing clear and helpful study material for B.Ed students across India.

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