मापन का सामान्य सिद्धान्त | General Theory of Measurement B.Ed Notes

मापन का सामान्य सिद्धांत (General Principles of Measurement) उन मूलभूत सिद्धांतों का एक समूह है जो किसी भी माप प्रक्रिया के लिए लागू होते हैं, चाहे वह किसी वस्तु की लंबाई मापना हो या किसी छात्र की सीखने की प्रगति का आकलन करना हो। ये सिद्धांत माप प्रक्रिया की सटीकता, विश्वसनीयता और वैधता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं।

1. वैधता (Validity): यह सिद्धांत इस बात को संदर्भित करता है कि मापन उसका वास्तव में आकलन कर रहा है जो वह करने का दावा करता है। उदाहरण के लिए, यदि हम किसी छात्र के गणित कौशल का मापन करना चाहते हैं, तो मापन उपकरण वास्तव में छात्र के गणितीय ज्ञान और कौशल को ही मापना चाहिए, ना कि किसी अन्य चीज को।

2. विश्वसनीयता (Reliability): यह सिद्धांत इस बात को संदर्भित करता है कि मापन उपकरण लगातार और सटीक परिणाम देता है। इसका मतलब है कि यदि हम एक ही छात्र का कई बार मापन करते हैं, तो हमें हर बार लगभग समान परिणाम प्राप्त होने चाहिए।

3. व्यापकता (Comprehensiveness): यह सिद्धांत इस बात को संदर्भित करता है कि मापन छात्रों के ज्ञान, कौशल और क्षमताओं के सभी प्रासंगिक पहलुओं का आकलन करता है। उदाहरण के लिए, किसी छात्र के पढ़ने के कौशल का मापन केवल उनके शब्दावली ज्ञान का आकलन नहीं करना चाहिए, बल्कि उनकी समझ, व्याख्या और विश्लेषण क्षमता का भी आकलन करना चाहिए।

4. निष्पक्षता (Objectivity): यह सिद्धांत इस बात को संदर्भित करता है कि मापन उपकरण शिक्षक के व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों से मुक्त होना चाहिए। इसका मतलब है कि मापन परिणाम छात्र के प्रदर्शन पर आधारित होने चाहिए, ना कि शिक्षक के किसी व्यक्तिगत राय या धारणा पर।

5. दक्षता (Efficiency): यह सिद्धांत इस बात को संदर्भित करता है कि मापन प्रक्रिया समय और संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करती है। इसका मतलब है कि मापन को यथासंभव कम समय और कम लागत में पूरा किया जाना चाहिए।

6. प्रासंगिकता (Relevance): यह सिद्धांत इस बात को संदर्भित करता है कि मापन प्रक्रिया छात्रों और शिक्षकों के लिए उपयोगी और सार्थक होनी चाहिए। इसका मतलब है कि मापन परिणामों का उपयोग छात्रों को उनकी सीखने में प्रगति के बारे में प्रतिक्रिया प्रदान करने और शिक्षकों को उनकी शिक्षण प्रक्रिया में सुधार करने में मदद करने के लिए किया जाना चाहिए।

इन सामान्य सिद्धांतों के अलावा, मापन उपकरणों और प्रक्रियाओं को विकसित करते समय और उनका उपयोग करते समय अन्य महत्वपूर्ण कारकों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए, जैसे कि छात्रों की आयु, क्षमता और सीखने की शैली

आज आम तौर पर लोग कैंपबेल की विचारधारा से सहमत नजर आते हैं, जिन्होंने माप को इस प्रकार परिभाषित किया है – “वस्तुओं और घटनाओं को नियमों के अनुसार प्रतीकों में व्यक्त करना ही माप है।

“नियमों के अनुसार वस्तुओं या घटनाओं को संख्यात्मक रूप से निर्दिष्ट करना माप है,” गिलफोर्ड, जे.पी. भी शब्द प्रतीकों को छोड़कर इस परिभाषा से संतुष्ट प्रतीत होते हैं। कुछ लेखक प्रतीकों के स्थान पर संख्याओं का उपयोग करने का सुझाव देते हैं।

इन दोनों शब्दों के बीच का अंतर हमेशा स्पष्ट नहीं होता है। अंकों का अर्थ प्रतीक माना जाता है।

कुछ लोग कहते हैं कि यह कागज पर बस कुछ खरोंचें हैं। लेकिन ये खरोंचों से कहीं अधिक हैं क्योंकि प्रत्येक प्रतीक (संख्यात्मक) दूसरे से भिन्न है। इस कारण से, इनका उपयोग वस्तुओं या समूहों को इंगित करने के लिए आसानी से किया जा सकता है। संख्याओं में निहित अर्थों के बिना।

यह ध्यान देना जरूरी है कि मापन का कोई “एक आकार सभी के लिए उपयुक्त” (one size fits all) दृष्टिकोण नहीं है। शिक्षकों को विभिन्न प्रकार के मापन उपकरणों और रणनीतियों का उपयोग करना चाहिए और एक दूसरे के साथ मिलकर यह निर्णय लेना चाहिए कि कौन सा मापन उपकरण प्रत्येक स्थिति में सबसे उपयुक्त होगा।

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