एक आदर्श शिक्षक के गुण (QUALITIES OF AN IDEAL TEACHER)
एक आदर्श अध्यापक में अनेक विशेष गुणों का होना आवश्यक है। इन समस्त गुणों को हम दो मांगों में विभक्त कर सकते हैं-
- वैयक्तिक गुण
- व्यावसायिक गुण
वैयक्तिक गुण-
एक आदर्श अध्यापक मे कुछ व्यक्तिगत विशेषताओं का होना बहुत जरूरी है। उसमे निम्नांकित वैयक्तिक गुणों का होना आवश्यक है-
(i) चारित्रिक गुण – एक आदर्श शिक्षक में उच्च चारित्रिक गुणों का होना अत्यन्त आवश्यक है। शिक्षक का उच्च चरित्र ही बालकों में उच्च चरित्र का विकास कर सकता है। उच्च चारित्रिक गुणों के लिए अध्यापक में उदारता, ईमानदारी, निष्पक्षता, नैतिक चरित्र, आत्मविश्वास, न्यायप्रियता आदि मानवीय गुणों का होना आवश्यक है।
(ii) उत्तम शरीर– उत्तम शरीर से तात्पर्य प्रभावशाली शारीरिक व्यक्तित्व, अच्छा स्वास्थ्य तथा शारीरिक शक्ति से है। उनका शरीर उत्तम होना चाहिए जो बालकों के व्यक्तित्व के नीचे न दब सके। उसमें अपने दैनिक कार्यों को सम्पादित करने योग्य आवश्यक स्फूर्ति तथा शारीरिक शक्ति होनी चाहिए। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन निवास करता है, साथ ही शारीरिक दुर्बलताओं के कारण वह शिक्षण कार्य मीसफलतापूर्वक सम्पादित नहीं कर सकता है।
(iii) सन्तुलित व्यक्तित्व- सफल शिक्षक के लिए सन्तुलित व्यक्तित्व भी अत्यन्त आवश्यक है। शिक्षक अपने विषय का कितना ही प्रकाण्ड पण्डित क्यों न हो, यदि उसका व्यक्तित्व प्रभावकारी एवं सन्तुलित नहीं है तो वह कभी भी सही से शिक्षण कार्य नहीं कर सकता है। आदर्श अध्यापक का व्यक्तित्व वास्तव में उसके पहनावे, आकृति, चाल-ढाल, बातचीत करने का ढंग, सामान्य व्यवहार आदि से स्पष्ट होता है। एक अच्छे अध्यापक को इन सब बातों का ध्यान रखना चाहिए।
(iv) संवेगात्मक स्थिरता- अध्यापक मे संवेगात्मक स्थिरता होना अत्यन्त आवश्यक है। संवेगात्मक अस्थिरता की स्थिति में अध्यापक कभी-कभी अपने व्यवहारों को स्थायित्व तथा एकरूपता प्रदान नहीं कर सकता है। इसके अलावा शिक्षक में संवेगात्मक स्थिरता तथा सन्तुलन छात्रों के स्वस्थ भावनात्मकः विकास के लिए भी अत्यन्त आवश्यक है। शिक्षक का अस्थिर व्यवहार अनेक समस्याएँ उत्पन्न कर देता है।
(v) नेतृत्व गुण- कक्षा में शिक्षक एक नेता होता है। उसे कक्षा का सफल नेतृत्व करते हुए उनको उचित मार्गदर्शन तथा प्रेरणा प्रदान करनी होती है। नेतृत्व गुणों के अभाव में वह कक्षा को सफल नेतृत्व नहीं दे सकता है। अतः अध्यापक में सफल नेता के गुण होने चाहिए।
(vi) सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार- शिक्षक को अपने शिष्यों के साथ प्रेम तथा सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। वह इसी प्रकार के व्यवहार द्वारा छात्रों का विश्वास तथा सहयोग प्राप्त कर सकता है। वह कक्षा में स्थायी अनुशासन डण्डे के बल पर नहीं वरन् प्रेम, स्नेह तथा सहयोग के आधार पर स्थापित कर सकता है।
(vii) आशावादी दृष्टिकोण- शिक्षक को आशावादी होना चाहिए। जो आशावादी है वही दूसरों में आशा का संचार कर सकता है। आशावादी शिक्षक ही रचनात्मक कार्यों को प्रारम्भ कर सकता है तथा सफल जीवन व्यतीत कर सकता है। अतः शिक्षक को आशावादी होना चाहिए।
व्यावसायिक गुण
(i) विषय का ज्ञाता- एक अध्यापक को अपने विषय का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। पर्याप्त ज्ञान होने पर ही वह कक्षा में विश्वास के साथ पढ़ा सकता है तथा छात्रों का विश्वास प्राप्त कर सकता है।। विषय-सम्बन्धी कमजोरी या अज्ञानता शिक्षक को छात्रों की दृष्टि से गिरा सकती है। विषय का ज्ञान शिक्षक को सफल शिक्षण के योग्य बनाता है।
(ii) व्यवसाय के प्रति आस्था– शिक्षक में शिक्षण व्यवसाय के प्रति आस्था होनी चाहिए। यदि शिक्षक शिक्षण व्यवसाय में बाध्य होकर आया है, तो वह कभी भी लगन तथा परिश्रम के साथ नहीं पढ़ा सकता है। वह सदैव उदासीनता अनुभव करेगा। बालक उससे कभी भी सन्तुष्ट नहीं रह सकते हैं। शिक्षक में अपने व्यवसाय के प्रति ठोस आस्था अत्यन्त आवश्यक है।
(iii) व्यावसायिक प्रशिक्षण- अध्यापक को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए। शिक्षण-प्रशिक्षण उसे न केवल यह बताएगा कि उसे ‘क्या पढ़ाना है’, वरन् यह भी बता देगा कि ‘अब और कैसे पढ़ाना है। व्यावसायिक प्रशिक्षण असफल अध्यापकों की दुर्बलताओं तथा कमजोरियों को दूर करता है तथा सफल शिक्षकों के शिक्षण का परिमार्जित करता है। अयोग्य अध्यापक छात्रों की कम हानि कर सकते हैं यदि वे प्रशिक्षित हो।
(iv) मनोविज्ञान का ज्ञान- अध्यापक को केवल अपने विषय का ही ज्ञान आवश्यक नहीं है वरन् उसे मनोविज्ञान का व्यावहारिक ज्ञान भी होना चाहिए जिसके द्वारा वह छात्रों की मनोवृत्तियों का अध्ययन कर सके तथा उनकी अनेक समस्याओं का समाधान कर सके। उसे विशेष रूप से बाल मनोविज्ञान का ज्ञान अधिक आवश्यक है, क्योंकि इसकी सहायता से वह बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताएँ, उनकी विशेषताएँ प्रकृति आदत व्यवहार इत्यादि का ज्ञान भली प्रकार कर सकता है।
(v) अच्छी वाक्शक्ति- अध्यापक को एक अच्छा वक्ता होना चाहिए। अपनी उत्तम भाषण शक्ति के द्वारा वह अपने विचारों तथा विषय-वस्तु को छात्रों के सम्मुख अच्छी प्रकार प्रस्तुत कर सकता है। भाषण कला के द्वारा वह छात्रों का ध्यान भली प्रकार आकर्षित कर सकता है।
(vi) पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं में रुचि – आज की शिक्षा का उद्देश्य बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करना है, अतः शिक्षक का कार्य कक्षा कक्ष तक ही सीमित नहीं रह जाता है, उसका यह कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्व हो जाता है कि वह व्यक्तित्व के अन्य पहलुओं का भी विकास करे। इसके लिए पाठ्यक्रम सहगामी क्रियायें बड़ी उपयोगी होती है। शिक्षक को इन क्रियाओं में रुचि लेनी चाहिए।
(vii) अध्ययनशीलता- जो चिराग स्वयं प्रज्जवलित नहीं है, वह दूसरों को क्या प्रकाश दे सकता है? ठीक इसी प्रकार जो अध्यापक स्वयं के अध्ययन की ओर ध्यान नहीं देता वह छात्रों को सफलतापूर्वक एवं पर्याप्त ज्ञान नहीं दे सकता है। अध्यापक को अध्ययन प्रिय होना चाहिए। इससे उसका न केवल ज्ञान भण्डार ही बढ़ता है बल्कि शिक्षण कला में भी सुधार होता है।
उपर्युक्त गुणों के अलावा कुछ अन्य गुण भी आदर्श शिक्षक को लाभ पहुँचाते है जैसे प्रयोग एवं अनुसन्धान में रुचि, सहायक सामग्री के निर्माण तथा प्रयोग में रुचि तथा योग्यता, प्रश्न कला, शिक्षण पद्धतियों का ज्ञान आदि।
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