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जय मायं जननी खोरठा शिष्ट गीत – सोहान लागे रे किताब (शिष्ट गीत संग्रह/गोछ) JSSC Khortha Notes

Published by: Ravi Kumar
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जय मायं जननी खोरठा शिष्ट गीत

गीतकार – शिवनाथ प्रमाणिक (बैदमारा, बोकारो)

हिन्दी भावार्थ –

प्रस्तुत गीत में भारत मां-भारत भूमि के रूप का प्रशस्ति गान किया गया है। भारत के मस्तक में हिमालय रुपी मुकुट सजा है।

सुदूर दक्षिण में कन्याकुमारी में समुद्र मानो माँ के पैर पखार रहा है।

विंध्य पर्वत श्रृंखला भारत मां के कमरबंद-करधनी की तरह शोभायमान है, पश्चिम में कच्छ प्रदेश तो पूर्व में कामरुप ऐसे लगते हैं मानो मां के हाथों में सजे कंगन है।

उत्तर और दक्षिण में गंगा और कावेरी नदियों की धारा मां के लहराते आंचल की तरह है तो कश्मीर मां की नथुनी की तरह दृश्यमान है।

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भारत के जनमानस जनजीवन सीधा-सादा है, लोगों की संस्कृति-परंपरा सीधी-सादी है।

इस सुंदर देहयष्टि वाली माँ का महिमा अपार है । विविध रंगों की पक्षियों के निवास, हरे-भरे आच्छादित वन, ऐसे लगते हैं मानो माँ ने हरा परिधान धारण कर रखा है।

भारत मां की हृदयस्थली में हमारे आन-बान-शान का प्रतीक तिरंगा शान से आसमान में लहरा रहा है। भारत माँ के ऐसे विश्वमोहिनी स्वरूप का वेंदनीय है, अभिनंदनीय है।

गीत- जय मायं जननी
हिमालयेक मुकुट साजे बिस्वमोहिनी
जय जय माँ भारत, जय माँ जननी। रंग ।
 
गोड़-धोवे समुदरें, विंध मेखला कमअरें
कच्छ – कामरुप सोभे माँयेक हाँथेक किंकिनी.
जय जय माँ भारत, जय माँ जननी। रंग ।
 
गंगा काबेरिक धारा, उत्तर-दखिन चहुँ ओरा
कसमीर साजे माँयेक नाकेक नथुनी.
जय जय माँ भारत, जय माँ जननी। रंग ।
 
सीधा-सादा परिपाटी, जन-गनेक मनेक माटी
महिमा अपार माँयेक सुबदनी.
जय जय माँ भारत, जय माँ जननी। रंगा ।
 
बन- परिधन साजे, नाना रंगेक पइंखी राजे
लहर-लहर उड़े तिरंगा निसानी.
जय-जय माँ भारत, जय माँ जननी। रंग।

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