JSSC खोरठा छाँहइर कहानी लेखक चितरंजन महतो चित्रा JSSC CGL khortha Notes

छॉइहर (कहानी संग्रह)
लेखक – चितरंजन महतो ‘चित्रा’
प्रकाशक – खोरठा भाषा साहित्य संस्कृति अकैडमी, रामगढ़
प्रकाशन वर्ष -2007 
कहानी संग्रह – 10

पृथ्वी प्रकाशन में दिया हुआ है 

प्रथम संस्करण 

2000

द्वितीय संस्करण 

2019

  • इस कहानी में पांच पात्र हैं जिनमें मुख्य किरदार रोहन और मोहन का है इसके अलावा सूरज नारायण चौधरी जो कि जमींदार है देव नारायण चौधरी जो कि एक टीचर हैं और तीसरे छगन साव  जो कि एक दुकानदार हैं

रोहन

मजदूर

मोहन

मजदूर

सूरज नारायण चौधरी

जमींदार (बड़े छत्रछाया)

देव नारायण चौधरी

टीचर(छोटा  छत्रछाया)

छगन साव

दुकानदार(तीसरा  छत्रछाया)

  • बैसाख महीने में सूरज नारायण चौधरी द्वारा एक घर बनवाया जा रहा है जहां रोहन और  मोहन मजदूरी कर रहे हैं लेकिन काम एक ही पहर तक होता है 
  • रोहन और मोहन दोनों गोतिआ एवं एक ही परिवार के सदस्य है
  • दोनों बिल्कुल साधारण परिवार से आम आदमी है लेकिन रोहन दिन प्रतिदिन बीमार हो रहा है और मोहन सेहतमंद हो रहा है मोहन अपने बच्चों को पढ़ा भी रहा है लेकिन रोहन के बच्चे अनपढ़ हैं

रोहन

मोहन

  • बीमार
  • बच्चे अनपढ़ हैं
  • रोहन बड़े व्यक्ति के छत्रछाया में हैं
  • रोहन जमींदार सूरज नारायण चौधरी का वफादार है 
  • सूरज नारायण चौधरी के पिता बिरजू चौधरी है 
  • जमींदार के प्रभाव के कारण रोहन शराबी बन गया है
  • सेहतमंद
  • बच्चों को पढ़ा भी रहा है
  • मोहन छोटे व्यक्ति के छत्रछाया में हैं
  • मोहन देव नारायण चौधरी जो कि एक मास्टर है उनके छत्रछाया में है और इसलिए वह शराब पीना नहीं सीखा और मास्टर की छत्रछाया के कारण अपने बच्चों को पढ़ा भी रहा है
  • बड़ा बेटा B.A. में है दूसरा  बेटा मैट्रिक में और छोटा बेटा भी स्कूल जा रहा है
  • एक दिन काम से वापस आते समय मोहन रोहन से पूछता है की एक बात जानना है की तुम बड़े आदमी जमींदार के छत्रछाया में हो जबकि मै एक छोटे मास्टर के छत्रछाया में हैं तो तुम्हें मुझसे जिंदगी में आगे जाना चाहिए और इसी बातचीत के दौरान वह दोनों रास्ते में कई सारे पेड़ों के नीचे विश्राम भी करते हैं
  • तभी एक ताड़ी  बेचने वाला आता है
  • तब ताड़ी वाले से रोहन ने ताड़ी पिया और वहीं पर मोहन ने एक गिलास पानी पिया
  • वहां से भी दोनों फिर आगे बढ़ने लगे आगे उन्हें छगन साव का दुकान मिला
  • इस कहानी में लेखक छगन साव को तीसरा छत्रछाया कहते हैं 
  • छगन साव के बारे में लेखक का कहना है कि इसका छत्रछाया जिस पर पड़ता है उसका तरक्की कभी नहीं होता है क्योंकि यह लोगों को उधार मैं रुपया देता है और सूद के रूप में बहुत ज्यादा वसूलता है 
  • वह पहले दिन ग्राहक को फ्री में समान देता है और ग्राहक बना लेता है
    • छगन साहू की दुकान में पकौड़ी, आलूचॉप ,प्याजी, दारू, बिस्कुट सब मिलता है
    • रोहन ने दारू पिया
    • 1 महीना के बाद मोहन जब शहर से वापस लौट रहा था तभी रोहन की मुलाकात हो से होती है और रोहन, मोहन का सेहतमंद और उसका अमीर होने का गुरु मंत्र पूछता है
    • तब मोहन रोहन को अपने मास्टर गुरुजी के पास ले जाते हैं
    • रोहन ने मोहन का गुरु मंत्र गुरु जी से पूछा लेकिन गुरुजी ने बताने से इनकार कर दिया
    • लेकिन अंत में गुरु जी ने कई शर्तों के साथ रोहन को गुरु मंत्र दिया
      • शराब पीना छोड़ना होगा 
      • खून पसीना एक करके कठिन मेहनत करना होगा 
      • और किसी अन्य के छत्रछाया में सिर्फ बैठकर नहीं रहना होगा
       
 
छॉइहर
 
बारह बजा रउद रहइ। वैशाख महीनाक दिन-दुपहर रउदे बाजले रोहन आर मोहन लाल सूरूज़ नारायण क नावाँ छात घार बनावे खातिर मजौरा में काम कईर के कलवा खायले आपन आपन घार आव हेलथ। जइसन अकबकी रहइन रोहन आर मोहन लाल के ओइसन चमचमी गादर रउद रहइ वैशाख महीनाको।
 
सूरूंज नारायणेक नावाँ छांत घार जाहाँ बने हेलइ हुआँ ले जदियो एक कोसले कमे धूर रहइन रोहन आर मोहन लाल कर घार मगुर डहरे रउद से बचेले छहुँराई खोजे लागलां। डहरे ताड़ आर खिजुर कर बोड़-बोड़, ऊँच-ऊँच कायगो गाछ रहइ ।
 
ओखिन दुइयो हिरायले एगो ताड़ गाछेक हेंठे (छाँहइरे) पोहचला मगुर ओखिनकर ताड़ गाछेक छाँहइरे ना तन जुड़ालइन ना मन। ताड़ गाछेक छाँहइरे जाहाँ-ताहाँ रहइ धूर-धूर। तनी-मनी छाँहइर तो लागलइन मगुरं अगल-बगल कर गरम हवा ओखिन दुइयोक गरमल देही के जुड़ावे नी पारेहेलइ। समय ओखिन ठीन कम रहइन। खाय के फईर पहर ले कामें लागेक रहइन सूरूज़ नारायण चौधरीक नावाँ कामें छात बनवेक कामें। बोड़-बोड़ ऊँच-ऊँच ताडं आर खिजुर गाछेक छाँहइर छोड़ी ओखिन कुदला घार बाठे। थोड़केहें धूरे पतवइर तनी-तनी फरके आम, जामुन, कोरंज आर महुआक छोटे-छोटे मगुर झबरल गाछ रहइ। तनी खुन दुइयो रोहन आर मोहन लाल हआँ ,हिराला। शरीरके थकांनी तनी कम हेलइन मने तनी शांति पावला दुइयो। डीह नझीक पीपरः आर बोर कर गाछ तो रहबे करइन हुआँ किटी खुन (खन) सुस्ताला फईर; खाय पीके उल्टी पहर कर कामें घुरी गेला। एहे लेखे सूरज बाबूक सड़क धाइर नावॉ छात-घार बनवेले आवा जाही को लागला।
 
सूरजू बाबूक काम चलते रहइ पन्दरह-बीस दिन ले छड सिमट तो रहइ मकिन बालू सिराइल रहइ तकर चलते काम एके बेरा चललइन। फरसद्धत रहइन दुइयो के रोहनो के आर मोहन लालो के। दुइयो गते-गते गाछेक छाँहइरे पोहंचला आर बइठी के सुस्ताय लागला ।
 
रोहन आर मोहन दुइयो आपन आपन घारक बात उँचावरला सुस्ताते -सुस्ताते। रोहन पुछल मोहन के – रे भाय मोहन तोंय  हमर संग  माटी काटे हें माटी ढोवें हें, ईंटा उठावे हैं, सींमइठेक बोरा ढोवे हें, गिलवा आर मसाला उठावे हे हामरा. आपने-आपने में बड़ी ताज्जुब लागे हे। मोहन चुप रहल। ऊ रोहन कर सवालेक कोनों उत्तर नी देले रहे काहेकि एखनों रोहन कर सवाल सिरायल (खत्म) नी रहइ । ऊ एकले दू. दू ले तीन सवाल एक बारगी मोहन के पूछले जा हेलइ।
 
रोहन फइर बोले लागल- ‘तोर बेटा सोब पढ़ल लिखल, कोय बीए पढ़े लागल हउ तो कोय मेटरिक आर जे छोट हथु ओखिनो ईस्कूल जावे कर हथु । आखिर तौय एतना कइसे संभारे पारऽहीन ?
 
मोहन कते देरी तइक चुप रहे पारतल । आखिर रोहन कर सोब. सवाल कर जवाब ओकरा देने रहई। रोहन बोलले जा हेल 
‘काहेकि हाम ना तो एकोगों छउआ के बेस लेखे ईस्कुले पढ़ावे पारलीअइन ना खिआवे-पीआवे। बेस लेखे कहियो बेस पिंधनों ओढ़नों नीं दिए पारलीअइन । रोहन बोलते-बोलते चुप हइगेल रहे। ओकर आँइख डबडबाय गेल रहइ ।’ आब तो ओकर आँइखले लोरे चुवेक बाकी रहइ।
 
मोहन कुछो जवाब दिए जा हेलक। ओकर मुँह ले. जवाबकर बकार फुटलहो नी रहइ कि फइर रोहन काँदी-काँदी. बोले लागल ‘हामर किसमइतें एहे लिखल रहे, हामर परिवार के एहे लेखे मेहनइत मजदुरी करी के दिन बितवे हेतक. आर एहेतरी मोरी-मीटी के माटी में मिली जाय हेतक।
 
एतना सुनी के मोहन चुप नी रहे पारल । ऊ बोले लागल – रोहन! तोंय काँदा-कुँदी हइके एतना सवाल हामरा जे पुछलें कि हाम सुनते-सुनते थाइक गेलों। तोर कोन सवालेक जबाब (उत्तर) हाम कइसे दीए पारीअउ एहे सोंचे. लागल हो। तोर पहिल सवालेक जबाब (उत्तर) आगू दीअउ कि सबले पाछूक सवालेक। मोहन लम्बा साँस लइके सोंचे लागल। तनी देरी बाद मोहन बोले लागल – ‘रोहन’ तोंयतो जानेहें कि पन्दरह बीस बछर पहिले हाम तोरो से कतना गरीब रही। तोंय हामर से धन संपइत, बुधि गियाने जबर रहें।’
 
रोहन हामी भोरल। मोहन के कहेले आरो दाब मिललइ.। ऊ आग कहे लागलः – “तोंय बोड़ गाछेक छाँहइंर तरे रहें आर हाम छोट-छोट गाछेक छाँहहरे। मोहनकर बतिया सिराइलो नी रहइ कि रोहन बोली उठल-तोर ई बात (पहेली) हाम बुझे नी पारलीअउ । फूरछाय के कह।
 
फूरछाये के कहहिअउ, – ‘रोहन तोंय जमीनदार बाबू साहेब सरज बाबूक गोड़तरें रहे हैं। सूरज बाबू (सूर्य नारायण चौधरी) ओकर बाप विरजू चौधरी तोरा जलन हँक़उथू तखन तोंय हाजिर रहे हेलें । हाजिर रहे हैं कि नी, बोल!
 
‘हाँ’ तखनो आर एखनो।’ रोहन उत्तर देल । – ‘फईर आइझ काँदे काहे लागल हे दोसर के देखी के, हामरा देखी के? तोय तो जिमीदारेक संग रहवईया जिमीदारी बुधिजानवईया, तोरो तो जिमीदारे लेखे हेवेक रहउ तोंय गरीब हामरोलें गरीब कइसे भइगेले ? मोहन एक साँसे कही के पार हइगेल ।
 
रोहन चुप रहल! ओकर ठीन मोहन कर सवाल कर जबाब जदियों रहइ थेथेरवइल नी करल, काहेकि ऊ संचाई के बेस लेखे जानी गेल रहे। रोहन के चूप देखी के मोहनों आगू बात नी बढ़ावल ।
 
रोहन सोंचे लागल! मोहन तो ठीके कहे हे! हाम, हामर बापो आर हामर जावल जनमल सोब तो आब. बिरजूबाबू आर सूरजूबाबूक वफादारी करते रहली आर एखनो करे लागल हीअइन । ओखिन कर वफादारी करइते हामिन के जिनगी बीते लागल हे। एखनो तो ओहे काम करे लागल ही।
 
‘जउ रे फलना हुआँ, जउ रे चिलना हियाँ, नहायेक पानी भोरी दे, पूजाक फूल लानी दे, ओकरा हंकाय देसी, आइझ तनी ई समानवा रोड पोहचाय देंभी, काइल बेटवा पढ़े जातइ ओकरा टेरेन (ट्रेन) बइठाइ देंभी……. बस ओर्डर उपर ओर्डर । कहियो कहतउ हामर ‘शीशी घटल हे, ले ले आय देवे, ले पच्चास गो रूपया तहूँ पाँच रूपया के पी लेबे।
 
रोहन उबी गेल रहे जिमीदार घारेक वफादारीक़ ईयाइदें। तखन मोहन टोकल :- ‘का करे लागलें रोहन ? कहाँ हेराय गेलें ? का सोचे लागले ?
 
मोहन के टोकल से अच्चके जइसे रोहन कर नींद टूटलइ। हाम तो एखनो ओहे काम करे लागल हो, हामर मेहरारू आर हामर छउआ-पूता ओकरे जोगाडे रह हथी। कखनूं-कखनूं आपन पेटेक जोगाड़ खातिर सूरजू बाबू आर ओकर घारेक लोगेक नजईर बचाइके हिन्दे-हुन्दे मर-मजदुरी करी के घार चलवे लागल हथ आर हाम…? रोहन फइर चुप भईगेल। एखन तइक रोहन पूरे उदासं हइगेल रहे। ओकर भीतर जइसे जागे हेलइ । मगुर दरूपियाक काँदारोवाक का विश्वास ? तनी देरी आगुओं तो काम ले छुट्टी हेल आगू बगल के घरवा ढुकल रहे। गिलास दू गिलास लइये के आइल रहे। मुंह ले गमक आवहे हेलइ मगुर मोहन का कहतलई ?
 
मगुर मोहन के तो कहहे हेतलइ काहेकि रोहन सवाल उपर सवाल लादले रहइ । तोंय लम्बा गाछतरे रहें, बोड गाछकर धूर-धूर ले फइलल-पसरल छाँहईर देखले ओकर सोब रकम कर सवाद चाखले, नजदीको (नइझकोले) ले आर धूरो ले। तोंय ढईर-ढईर बुधि गियान सीखले जाहाँ ठकाहारी, बेईमानी आर शोषण करेक तौर-तरीका देखले सुनले आर सीखले। हालूं एगो गाछतरे रहल सीखल हों। उठन–बइठन; खान-पान, सुतल-जागल हाम्हूँ एगो छोट-मोट फंकरल, डाइर–पात झुकल निहरल गाछ तरे बोड़ हेलं ही, ओकरे दोहाय आर
 
ओकरे किरपा (कृपा) से आइझ हाम शान से चले भूले, आर. रेंगे पारे लागल ही। ओहे हामरा ई बुढ़ारी में एतना मेहनइतवाला काम करेले सिखवला, बुढ़ारी में जवानी कर जोश जगावला आर उनखरे शिक्षा दान से आइझ हाम खुश ही, माटीओ काटे में हामरा लाज नी लागे हे, बाजार सब्जियो लइके जाय में कोनो अपमान नी बुझही, घारकों कोनों कामें ना तो असकईत लागे हे ना अमनख।
 
बड़ी देरी से रोहन मोहन कर पारखी भाषण सुनल। आब ओहो भूखे पियासे अनसाय लागल। आखिर पूछी बइठल कोन गाछेक बात करे हे ? मोहन तनी फुरछाय के कह।’ …
 
मोहन हँसी उठल आर कहल,- ‘का तोय नी जानहीं नीमगाछतरेक देव नारायण चौधरी के।
 
‘हाँ’ ऊ गुरूजी, देवा चौधरी, सीधा साधा मास्टर जी। ‘रोहन उपहास करल।
 
‘हाँ’ ओहे! ओहे गुरूज़ी ओहे मास्टरजी, ओहे मास्टरजी देवा चौधरी आहे हामर गुरू, ओहे हामर गाछ। ओखरे छाँहईरे हाम जनमली, फुनगली, पनपली, जवान हेली, आर बुढ़ो हई गेली। हामर छउआ पुता ओखरे छाँहइरे पढ़ला लिखला एखन आपन आपन कामें लागल हथ। ओखिनो आपन आपन करऽ हथ, हाम्हूँ आपन जे लागल ही से करते हों । मगुर सुखे ही, शांति हे। मोहन सोझवारी बोलते रहल । ‘सुख शांति आर ताकइत उनखरे देल लागे। कतनों काम करले थकानी नी आवे हे। सांइझ, एक गिलास गरम-गरम दूध जे पीलेहीअइ। मोध-दारू, हंडिया असमये खाले-पीले काम नाशे हे, नाम नाशे हे, सुभाव नाशे हे। सेले एकर सेवन हाम नाहींए करहीं। बिहो-शादी, छट्ठी छिलनों में नाहीं। सर शिकार सोब हेतउ मगुर हामर घारे. दारू-मोध नीं चलतउ। अगले बगले पराय एक दूगो के छोड़ी के सोभे पीहीअहथ, चुआबबों करहथ, बेचबो करहथ मकिन माझें माझें झगड़ा झंझट हेले, रहहइन, सर-सिपाही आवते-जाते रह हथीन। ओखिन के सोब. सोभइन सेले ओखिनो तोरे तरी हथ । मोहन आपन घार दूराक हाल सुनावे लागल । बोलते-बोलते मुँह बथ्थे लागलइ तखन तनी देरी खातिर चुप हइ गेल।
 
रोहन उठी के खड़ा हंइ गेल ‘चाल भाय’ बड़ी जोर भूख लागी गेल हे। ‘हाँ चाल’ हामरो पेटे मूसा कूदे लागल हथ, पेट गड़गड़ाय लागल हे।’ मोहन उठी गेल। ऐहे पहर एगो ताड़ी ओला पार हेल जाहेल । ताड़ी ओला के देखी के रोहन पुछल ‘कुछो बचल–खुचल हउ हो?’ :
 
‘बचले हइकि एखन ई गाँवे शुरूए कहाँ करलेहिअइ। ताड़ी ओला बोलल।
 
‘दे एकाध गिलास तनी पियास मेटावब। ‘रोहन ताड़ी ओला के हँकावल ।
 
रोहन सटसटाय के दू गिलास ताड़ी सोंढ़ी लेल तनीके में। ‘मोहनों के पियास लागल रहइ । ओहो मांगलइ- ‘बाबू एकाध गिलास पानी हउ तो हामरो दे, हामरो बड़ी जोर पियास लागलं हे।
 
ताड़ी ओला बोलल–’बाबा, हामर ठीन बेस पानी तो दुइये-चाइरे गिलास हे एक गिलास पानी ले बेसी नी दिए पारबउ, ताड़ी हउ जत्ते पारबे पी, हाथ धोवेक पानी एक बाल्टी हे, बोल का चाही ?’
 
‘बाबू हामरा एके गिलास पानी दें; हामरा मंजूर हउ, बदला में तोंय एकरो दाम लेवे तउओ मंगुर एक दू गिलास पानी पीआव ।’ मोहन परेम से ताड़ी ओला के बोलल, फुसबावल । दूइयो संगी दू-दू गिलास पीके आत्मा जुड़ावला। रोहन ताड़ी आर मोहन पानी पीके।
 
ताड़ी ओला चइल गेल। मोहन से पानीक दाम नी लेल। दूइयो फईर बइठी घुरला। भूख पियास तनी देरी खातिर मेटाय गेलइन। झबरल तेतइर (ईमली) गाछ तरे दूइयो नींदाय गेला. । नींद टूटलइन तखन सांइझेक पाँच बजे हेलइ। मोहन-रोहन के चलावलइ – ‘चाल गोतिया आव तो चाल घार। देरी हेले छउआ पुता अंदेसा में पड़ी जाता। दिनहूँ खायले नी गेल ही, सेले चाल ।
 
‘ठीक कहे हे गोतिया। रोहनों दोहरावल । दुइयो एके खुंटेक जाइते-भायं रहथ मगुर रहे हेला दोसर-दोसर टोला में।
 
मोहन आर रोहन दुइयो उठी के चलला। दुइयोक डिंडा-ढीपा एखन नीं आइल रहइन । डहरे में एगो सावकर दारू दोकान रहइ। मुँहडे माने बाहरे टोलाक छउआके ठके रीझावे खातिर बिस्कुट, दालमोट, लेमनचुस बगेरह रहइ, तनी भीतरे गरम-गरम पकौड़ी आर आलूचाप, धुसका, पियाजी छंकाइत रहतलइ, दारू पीये खातिर।
 
छगन साव कर बाहइरले छोट मगुर भीतर ले बोंड़ कारबार रहइ.। विस्कुट , नेमन चुस, पकौड़ी, आलुचाप, दारू-मोध कर जे कारबार रहइ से तो रहबे करइ महाजनीको कारबार रहई। सूद. बट्टा में, इरबी गिरबी, पैंचा-उधार सोब चले हेलइ। गांवे देखले छोट मगुर कारबार बड़ी बोड़ रहइ। (एकर छाँहुईर जकर ठीन पड़तलइ तकर उवार नी रहइ। )
 
जखन मोहन आर सोहन छगन सावकर दोकान ठीन पोहचला ऊ बाहईरे में रहे। रोहन कर सुभाव तो जानवे करे हेल मगुर मोहन के ओकर संगे देखी के मजाक करी के हँसल – ‘मोहन’ आव हो, बइठीले दारू नी पीवे -नी पीवे, पकौड़ी तो दू-चाईरगो खाइले ।
 
मोहन ना चाहइतहूँ ठिठकी गेलक। रोहनो ठढुआइल। मन ना रहलइहूँ मोहन बांका बेंचे बइठ गेल। रोहनो बइठल। भूखल तो रहबे करथ. सेले पकौड़ी आर आलूचाप खाय लेल मोहन। संगे-संगे रोहनों खायल। खायल पाछू जखन मोहन छगन साव के पैसा दीए लागलइ, छगन साव बोलल ‘आइझ पहिल झीक तोंय हामर दोकाने खायल हें, तोर से पैसा नी लेबउ। आइन्दे कधियो खाबें तकर पइसा लेबउ।।
 
‘ना’ ई तो. नाइ हइ सके हे। हाम तोर दोकाने खाले हीअउ तोरा ओकर दाम दीएक हामर करतप लागे। हाम तोर महिमान लेखे नेखिअउ आइल जेदिना महिमान तरी आबबउ से दिन जे सेघा-सत्कार करबे हारभ माइन  लेवउ, आइझ नाइ आर मोहन पइसा दइके निकलल । रोहनो निकलल ।
 
दुइयो, चलला। रोहनो पुछल मोहन से – पइसा नी मांगे हेलउ आर नी लीए खोजे हेलउ तो काहे देल्ही, हाम अचरज में पड़ी गेली।
 
‘बोका’ एतनो नी बुझे पारले । ऊ हामरा लोभ दइके फंसवे खोजे हे, बझवे खोजहे ‘ बिना कारण हामरा कृलज्ञ बनावे चाहे हे। हिंसकाइल बाद उधरा- पधरा दीएक शुरू करतउ, फईर पीये-पीआवे ले जोर मारतउ । आपन चैगुल में फंसवे खातिर फेके चाहहउ जाल । हाम का एतना बुड़बक लागी कि एतनो नी बुझही। खैर जाय दे ई सोब बात के। चाल आपन आपन घार हामीन कर डीह पोहचीये गेलक आर दुइयो डिहराला।
 
महिना दिन बादे जखन (मोहन शहर ले घुरल आवे हेल डहरे रोहन संग भेंटाइल ) रोहन सूरजू बाबूक बिल्डिंग (छातघर) कर काम करी के घार जाहेल तखन ।
 
मोहन पुछल रोहन के – ‘का हाल चाल हइ गोतिया। काम-धाम तो ठीके चलहइ।’
 
“हाँ गोतिया! पहिल से बहुते आछा ही। आब हुकुमदारी कम हइ गल हे। काम करही ढेढाई के दाम लेहीअइ ठेठाई के । दारूओ मोध कम हेई गल हे, कहियो-कहियो पीअही नी पीअही से नी मगुर पौवे-पइटी में सन्तोक करी लेही। दिन भइर काम करही राइत भईर सुतही, छउआ पुता नीके-सुखे काम-काज करअहथ, खाहथ। बांते चीते मोहन आर रोहन डिंडा धाईर आईला। रोहन के मने आइझ का जे अचच्के हुचुक भेलइ कि ऊ कही उठल मोहन आइझ तोर गुरूजी संग तनी हाम्हूँ भेंट करबइ।
 
‘हाँ’ चाल- कोनो रोकावट, नाइ हउ हुआँ जायले । मोहन जबाब देल । दुइयो देवनारायण चौधरी घार पोहची गेला तनिके में। देवनारायण चौधरी तखन घारक बाहईर बरण्डे (ढावे) में बइठल रहथ । नझीक जायके मोहन गोड लागल, परनाम गुरूजी। रोहनो परनाम करल ।
 
‘आव बइठ, बइट रोहन! आइझ कइसे हिन्दे डहर भुलाय गेले।’ देवनारायण चौधरी रोहन के कहला।
 
 ‘अइसही’ आइझ मन हइ गेलक मोहन संग बोलते बतिआते आय गेली  तोहर ठीन । ढईर दिनले तोहर संग भेटो नी रहे आर कोनो ओइसन कामों नीं। रोहन हँसियारी करी के बोलल ।
 
‘गुरूजी, मोहन कहे लागल ‘आइझ रोहन तोहर से आपन शंका समाधान करे चाहहो। एहे विचार लइके तोहरे ठीन आइलहो।’ तनी ठहरी के फईर मोहन बोलल–’पुछाक एकरा’ ई का जानें खोज हो ? . . … देवनारायण गुरूजी हँसी के बोलला – ‘हाँ रोहन, बोल तोय, तोर का. समसिया हउ।
 
हामर कोनो समसिया नेखे गुरूजी! अइसही कुछो-कुछो गुरूजी ठीन सीखेले आइलही। रोहन कहल। . .
 
‘अरे’ सीखे खातिर गुरू दक्षिणा दीए. हेवे हे, अइसही शिक्छा (शिक्षा) मिले हे का? देवनारायण मजाक करला – ‘एक दू बोतल खर्च नी करबे तो सीखबे कइसे ?’ – कहा हाय तो आनबइ, मगुर…………रोहन आपन बात पुरो नी करे पारल रहे कि देवनारायण चौधरी बोलला – अगर – मगर कुछ नाञ चौधरी घार आइल हैं। कुछो-मुछो कोनों मोनों सीखे ले दान-दक्षिणा तो लागवे करतउ।
 
‘हाँ’ गुरूजी देबोन! का कहा हाय बोला ? ‘रोहन साहस के साथ हिमइत से बोललं।
 
मगर बाला रोहन आपन बात पुराना कर
 
पछुआवे तो नाञ, देख? हामर फीस बड़ा भारी पड़तउ दीए पारबे तो हाँ कर, नी पारबे हामर सीख मइत ले। तोय ना तो, दीए पारबे आर ना करे पारबे।’ गुरूजी देवा चौधरी रोहन के धिराई के कहला। .
 
‘कोसीस करबो गुरूजी। कुछ तो हाम्हूँ दीएहे ले सोंची के आइल ही तोहर ठीन। ऐते दिन नी आवे हेलिओन ।’ रोहन हिमइत धारल।
 
“हामर फीस दारू-मोध साफ़ | बोल तोंय दारू-मोध पीये छोड़े पारबे तो हाम आपन गुन-गियान शिक्षा-दीक्षा देबउ, आर नी तो नाम नासे ले हाम आपन सीख ककरो नीञ.दीए चाहहिअइन ।’ गुरूजी देवा चौधरी कसम दीएक लेखे बोलला।
 
हाँ गुरूजी हामरा मंजुर हे, आइझ-काइल दारू छोड़ले जइसन हे हामर। रोहन गुरूजी के भरोसा दियावल।
 
‘तो बोल, का जाने चाहे हे तोंय हामर से। ‘गुरूजी पुछला’
 
ओहे छाँहइर ओला कहनियाँ’ – रोहन बोलल |
 
‘छाँहइर ओला कहनियाँ’ अचरज हइके पूछला
 
‘हाँ’ गुरूजी मोहन तो हामरा एहे कहल। रोहन दोहरावल ।
 
छाँहईर कर कोनो कहनी तो नी हेवे हे, रोहन गुरूजी कहला, मगुर रोहन, गुरूजी देवनारायण चौधरी कर गुरू-सीख लीएले असिन्नियाँ मोड़ी के बइठ गेलक। देवा चौधरी बोले लागला – ‘रोहन गुरू दक्षिणा में तोरा तीनगो चीज लागतउ, बड़ा कठिन काम हउ दान दीए पड़तउ आर हाम जानहिअउ कि तोंय ई दान हामरा नी दीए पारब।
 
कोरनिस करवइ गुरूजी। जखन हाम्हूँ संकल्प करीए. आइल ही तखन एक झीक चेस्टा तो करवई। एकर में जे तोहरा कहबाय हाम गरीब आदमी जे पारबो से जुटावबोन। रोहन बड़ा हिम्मइत से कहल। ‘तोय्हें नाम तो करा। काम तो बतावा। देखबइ जोदि तोहर सीखे हामर घार सुधरे पारल।’ रोहन आपन फरियाद (याचना) कही सुनावल।
 
आदमीड मन जखन जाइंग जाहे तखन मनों में उत्साह भोरी जाहे तखन ऊ इच्छा पूरा करे खातिर तन-मन-धन लगावेले तइयार हइ जाहे।
 
ढईर चोट खाइल बाद, आल्मा आपन मन-तन तिरपित (तपित) करे खातिर आकुल-बाकुल (बेयाकुल) रहे है। जेमे ओकरा तो आपन बचल जिनगी में शांति-सुख मिलतई ओकर आवे ओला पीढ़ी के आगे बढ़े, चले में आसानी. पोहचतई।
 
रोहन मोहन कर खुशहाल परिवार देखी के आपने-आपने में बड़ी कुंठाई गेल रहे। ओकर मने शांति नांञ रहई, ऊ एकर खातिर छटपटाय हेलक।
 
गुरूजी देवनारायण रोहन कर भाव-भासा बुझी गेल रहथ। सेले ऊ-आब-आपन गुरू सीख दीए  लागला। रोहन, तोर पहिल काम हेतउ ‘मन’ कर दान दोसर दान हेतउ तन के आर आखरी में तोरा ‘धन’ करो दान करे पड़तउ ।’
 
‘फुरछाय के कहा गुरूजी। एतना जानतली तो हामर ई दशा नी हेल  रहतल। आब हामर का ? हामर सवांग कर तो दिन गनल-गुथल हे. सेले साफ-साफ कहा हामरा का करे पड़त ? रोहन (अपने आपको) गुरूजीक आग समर्पित हई के बोलल विनती करल।
 
‘तो सुन, मन सोबले बोड़ चीज लागइ। ई बोड़-बोड़ गाछो ले बोड़ आर ऊँच हे, आकाशो ले ऊपर आर धरतीयो ले नीच (हेंठे)। एकर दउड़ चलइत रह-हई । इच्छा, आकांक्षा, महत्वकांक्षा एकरे रूप लागई। एकर दान करे पारवे माने मन के जीते पारबे, चंचल नी राखी के कोनो एगो डहर चुने हेतउ । बोड़ गाछेक छाँहईर हियाँ हुआँ हे। जेटा तोर जरूरी हउ ओकरे पीछांज रह।
 
रोहन चुप रहे। गुरूजीओ थाकी गेल रहथ बोलते-बोलते सुनावते-सुनावते।
 
‘एखनो हाम कुछो नी बुझलिओन गुरूजी।’ रोहन बोलल ।
 
नी बुझले; तो बुझाय देहिअउ ।’ देवा चौधरी बोलला।
 
‘हाँ, बुझाय दाय, रोहन ।’
 
मोहन एखनो बइठी के गुरूजी देवनारायण चौधरी आर गोतिया रोहन कर कहा पुछी (वार्तालाप) सुनते रहे। मोहनो अनसाय हेलक एखन तईक । मोहने कही उठल – ‘हाँ गुरूजी झटपट कही देहाक । लम्बा लिफाफा करले हथ, मंगनी। असल बतिया ऊ सुनतोन, बुझतोन तबे नीं कहे पारतोन। रोहन के सामरथ बुझातई, ऊ हाँ करतो नी करतो। एकर में तोहर कोनो घटी हेतोन : का ?
 
एकर में हामर घटी का ? मगुर जखन कोई शरण में आवेहे आर सीखेले आइल हउ तखन तो ओकरा सोब उपर हेठ बताउके पड़तउ । गुरूजी कहला!
 
तनी देरी सांस लईके फईर गुरूजी रोहन बाठे देखी के कहे लागला – रोहन, तोरा दारू-मोध पीयेले छोड़े पड़तउ पहिल एकरे. से तोर मन. कन्ट्रोल हेतउ। मन केंन्ट्रोल (मन के थांभल बाद) हेल बाद शरीर (तन) कंट्रोल करे पड़तउ माने शरीर से खटी के खून पसीना गाईर के खाय हेतउ। छतरल छाँहइरे बईठी उठी सुती नी रहे हेतउ। माने तनी खुन कमाले आर फईर आराम फरमावे लागले तो तोर आगू बाढ़ेक (विकास) जे मन (ईच्छा) हउ सेटा नीं देवे पारतउ। जतना खटवे ओतने भूख जागत आर समये पेट भईर खावे सोबदिन शरीर (तन) बनल रहतउ।
 
तेसर छाँहइर हउ छोट-मोट गाछेक संगे नाना-रकम कर लर फर लागल छाँहइर। ई लोभ रूपी छाँहइर लागइ, जीव ललकावे ओला, तनी खुन हिराले फईर छाँहइर अनते पनते घुरी गेलउ। ई बड़ा ललकउवा छाँहइर लागे, एकरो जोदि तोंय दान करे पारव तो सचमें बुढ़ारियों में हामर चेला बइन सके हैं। ‘गुरूंजी’ देवा कही के चुप हई गेला।
 
छाँहइर माने छाँहइर, हेंठे छाँहईर ऊपरे छाँहइर; अगले-बगले छाँहइर, छाँहइरे कर छाँहइर, फईर ओकरो छाँहइर । जे ऊपर हे ओकर छाँहइर ओकर ले जे हेठे. हे, ओकर छाँहइर ओकरो ले जे हेठे हे ओकरो छाँहइर, छाँहइर कर ऊपरो छाँहइर, छाँहइर कर हेठो छाँहइर, बीच हूँ छाँहइर। मन छौंहइर, तन छाँहइर. धन छाँहइर। छाँहइर बुझा दाय। बोड़ छाँहइर. हिन्दे-हुन्दे। मांझ छाँहइर सोब बाठे।’ बोड़ गाछेक ढूँठगा छाँहईर, मंइझला झबरल गाछकर गादर छाँहइर, झूरी-झांटीक, लर–फर खनिक (तनिक) छाँहईर हेवे करे हे। 
 
देखबई, कोरनिस करबई गुरूजी, जोदि तोहर सीख लीए पारलिओ तो छव महीना साल भईर में फईर हाम आपन सफलता-विफलता सुनावे आवबोन । कही के रोहन उठल। मोहनो उठल।
 
‘तो आइझ जाही, गुरूजी, गोड़ लागहिओन” कही के दुइयो रोहन आर मोहन घार गेला।
 
 

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