Home / Jharkhand / History of Jharkhand / झारखंड का इतिहास | History of Jharkhand Notes for JSSC and JPSC

झारखंड का इतिहास | History of Jharkhand Notes for JSSC and JPSC

Last updated:
WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

झारखंड का इतिहास (History of Jharkhand Notes)

झारखंड के इतिहास एवं संस्कृति की प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान काल तक गौरवशाली परम्परा रही है। झारखंड के इतिहास एवं संस्कृति के निर्माण में जनजातीय समाज का अमूल्य योगदान रहा है। यहाँ की संस्कृति को जानने एवं समझने के लिए प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक काल तक मानवीय संस्कृति एवं सभ्यता के उद्भव तथा विकास से संबंधित ऐतिहासिक स्रोतों की बहुलता पाई जाती है। इससे संबंधित पुरातात्विक और साहित्यिक दोनों प्रकार के साक्ष्य पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं ।

ऐतिहासिक स्रोत

झारखंड के इतिहास और संस्कृति को समझने के लिए पुरातात्विक एवं साहित्यिक दोनों प्रकार के स्रोत उपलब्ध हैं।
झारखंड की जनसंख्या में विश्व की सभी प्रमुख मानव प्रजातियाँ यथा-नीग्रॉयड, मंगोलॉयड, कॉकेसायड, प्रोटो- ऑस्ट्रेलॉयड के शारीरिक लक्षण पाए गए हैं, तथापि जनजातीय जनसंख्या में प्रोटो- ऑस्ट्रेलॉयड की प्रधानता है।

पुरातात्विक स्त्रोत

पुरातात्विक स्रोत का प्राचीनतम साक्ष्य झारखंड क्षेत्र से आज से लगभग 1,00,000 ई. पूर्व के पुरापाषाणकालीन (Paleolithic) पत्थर के उपकरण के रूप में प्राप्त हुए हैं। पुरापाषाणकालीन पाषाण उपकरण हस्तकुठार बोकारो से तथा हजारीबाग के इस्को, सरैया, रहम, देहोंगी आदि से प्राप्त हुए हैं।

  • साथ ही इस्को से ही भूल भूलैया वाली आकृति के अवशेष प्राप्त हुए प्राप्त हुए हैं। हजारीबाग के दूधपानी से 1894 ई. में किए गए उत्खनन से 8वीं सदी के लेख प्राप्त हुए हैं।
  • चतरा जिला में हंटरगंज प्रखंड में कोलुआ पहाड़ी क्षेत्र से मध्यकालीन दुर्ग की चहारदीवारी का साक्ष्य मिला है।
  • कोलुआ पहाड़, जो कौलेश्वरी पहाड़ के नाम से भी प्रसिद्ध है, पर हिंदू, जैन, बुद्ध तथा सिख धर्म की तीर्थस्थल है ।
  • चाईबासा से नवपाषाणकालीन पत्थर से निर्मित अनेक चाकू मिले हैं।
  • बुद्धपुर की पहाड़ियों में बुद्धेश्वर मंदिर के भग्नावशेष स्थित हैं।
  • अशोक के 13वें शिलालेख में आटविक जातियों का उल्लेख हुआ है, जो इसी क्षेत्र में निवास करने वाली जनजातियाँ थी।
Also Read:  Shri C.P. Radhakrishnan (Hon'ble Governor Of Jharkhand)
साहित्यिक स्रोत
  • वैदिक साहित्य में छोटानागपुर क्षेत्र के लिए ‘किक्कट’ शब्द का प्रयोग हुआ है, जबकि उत्तर वैदिक साहित्य में यह व्रात्य प्रदेश के रूप में वर्णित हुआ है।
  • महाभारत के दिग्विजय पर्व में छोटानागपुर क्षेत्र के लिए पुडरिक शब्द का वर्णन आया है। महाभारत में झारखंड क्षेत्र को पशुभूमि कहा गया है क्योंकि जंगल की बहुलता के कारण इस क्षेत्र में जंगली पशुओं की संख्या अधिक थी।
  • मध्यकालीन इतिहास लेखकों में अबुल फजल का ‘अकबरनामा‘, शम्स-ए-शिराज अफीफ की रचना ‘तारीखे- फिरोज शाही’ तथा सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी की रचना ‘पद्मावत’ प्रमुख स्रोत हैं।
प्रागैतिहासिक काल

राज्य के प्रागैतिहासक इतिहास को यहाँ पाए गए पाषाण उपकरण की विशेषताओं के आधार पर तीन वर्गों में बाँटते हैं- पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल एवं नवपाषाण काल।

Also Read:  ईस्ट इंडिया कंपनी का झारखंड आगमन | Arrival of East India Company Notes for JSSC and JPSC
पुरापाषाण काल
  • हजारीबाग जिले के विभिन्न पुरातात्विक स्थलों इस्को, सरैया, रहम, देहांगी आदि में 1991 ई. में कराए गए उत्खनन से पुरापाषाण (Paleolithic) कालीन चित्रकारी के प्रमाण तथा पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं।
  • इस्को से भूलभूलैया की आकृति, गुफा, अंतरिक्ष जहाज, नक्षत्र आदि के चित्र पाए गए हैं।
    हजारीबाग से पाषाणकालीन मानव द्वारा निर्मित पत्थर के औज़ार मिलें हैं।
  • मई, 2016 मे भारतीय पुरातत्व विभा, रांची, ने लगभग 10,000 वर्ष पुराने अवशेष रांची, रामगढ़, सिमडेगा तथा पश्चमी सिंहभूम से खोजा है।
मध्यपाषाण काल
  • इसका कालक्रम 10,000 ई. पू. से 4,000 ई. पू. तक माना जाता है।
  • मध्यपाषाण (Mesolithic) कालीन संस्कृति के प्रमाण गढ़वा जिला के भवनाथपुर, झरवार, हाथीगाय, बालूगारा एवं नाकगढ़ में कराए गए उत्खनन से मिलते हैं।
नवपाषाण काल
  • इसका कालक्रम 10,000 ई. पू. से 1,000 ई. पू. तक माना जाता है। इस काल में कृषि की शुरुआत हो चुकी थी। इस काल मे आग के उपयोग तथा चाक का प्रयोग प्रारंभ हो चुका था।
  • झारखंड में नवपाषाण संस्कृति के भवनाथपुर, झरवार, बालूगारा, नाकगढ़ आदि से कुल्हाड़ी, खुरचनी, तक्षणी जैसे नवपाषाण उपकरण पाए गए नवपाषाण संस्कृति के समय ही मुंडा जनजाति अर्थात् प्रोटो- ऑस्ट्रेलॉयड प्रजाति का आगमन झारखंड में हुआ होगा।
Also Read:  झारखंड के प्रमुख विद्रोह एवं आंदोलन | Major rebellions and movements of Jharkhand Notes for JSSC and JPSC
प्रमुख पाषाणकालीन स्थल
पाषाणकालीन अवस्था
स्थान
प्राप्त साक्ष्य/उपकरण
पुरापाषाण काल (Paleolithic Age)
इस्को, सरैया, रहम, देहोंगी (सभी हजारीबाग)
पत्थर की कुल्हाड़ी एवं भाला, पत्थर के अनगढ़े उपकरण
मध्यपाषाण काल (Mesolithic Age)
भवनाथपुर, झारवार, नाकगढ़
माइक्रोलिथ उपकरण
नवपाषाण काल (Neolithic Age)
बुरहादी, बुरजू, रारू नदी (चाईबासा) बुरूहातू
पत्थर की सेल्ट, स्लेटी पत्थर की पॉलिशदार छेनी, प्रस्तर चाकू, स्लेट पत्थर की छेनी
ताम्रपाषाण काल (Chalcolithic Age)
दरगामा गांव, बसिया
तांबे की सेल्ट तथा तांबा एवं लोहे की आरी. तांबे की कुल्हाड़ी
ताम्रपाषाण काल
  • इसका कालक्रम 4,000 ई. पू. से 1,000 ई. पू. तक माना जाता है।
  • पत्थर के साथ साथ तांबे का प्रयोग प्रारंभ होने के कारण इस काल को ताम्रपाषाण काल कहा जाता है। मानव द्वारा प्रयोग की गई प्रथम धातु तांबा ही थी।
  • झारखण्ड में इस काल का केन्द्रबिन्दु सिंहभूम था। इस काल में असुर, बीरजीया तथा बिरहोर जनजाति तांबा गलाने की कला से परिचित था।
कांस्य युग
  • इस युग में तांबे में टिन मिलाकर कांसा निर्मित किया जाता था।
  • छोटानागपुर क्षेत्र के असुर(प्रचिंतम्) तथा बिरजिया जनजाति को कांस्ययुगीन औजारों का प्रारंभकर्ता माना जाता है।
लौह युग

इस युग में लोहा से बने उपकरणों का प्रयोग किया जाता था। झारखंड के असुर तथा बिरजिया जनजाति को ही लौह युग के निर्मित औजारों का प्रारंभकर्ता माना जाता है।

Leave a comment