पुस्तक का नाम – सोहान लागे रे (शिष्ट गीत संग्रह/गोछ)
मांदइर बाजे रे बांसी बाजे रे !!
गीतकार/गीत जोरवइया/लिखवइया – सुकुमार
गीतकार परिचय
पुरा नाम – सुरेश कुमार विश्वकर्मा
जन्म तिथि– 02 नवम्बर 1956
पिता का नाम – श्री विश्वनाथ विश्वकर्मा
माता का नाम – राधा देवी
पता – भेंडरा, बोकारो, झारखण्ड
शिक्षा – मैट्रिक (1972), ITI (1976, धनबाद), इंटर (1993), बी. ए. (1996)
कार्य – लघु सिंचाई विभाग में पंप ओपरेटर, खोरठा एवं हिंदी लेखक गायक एवं चित्रकार, आकाशवाणी आर दूरदर्शन के नावंजइजका लोक गायक
उपलब्धि – खोरठा रत्न (1993)- बोकारो खोरठा कमिटी द्वारा अखडा सम्मान (2006), झारखण्ड सरकार कला सम्मान (2007), पहिल दुबेलाल गोस्वामी कला सम्मान (2017)
प्रमुख रचनाएँ –
पइनसोखा (खोरठा गीत संग्रह), झींगुर, सेवाती, डाह, बांवा हाथेक रतन, दो भाई, ज्वाला दहेज की, फरिछ डहर, पिया रसिकवा, मदनभेरी
गीत का भावार्थ– झारखंड की संस्कृति बहुत ही अनूठी है, बेजोड़ हैं। यहां की संस्कृति प्रकृति की गोद में विकसित हुई है। मौसम के बदलते ही प्रकृति की छटा बदल जाती है। अलग-अलग मौसम में प्रकृति अलग-अलग श्रृंगार करती है इसके साथ ही अलग-अलग पर्व त्योहारों का आगमन होता है। पर्व त्योहारों के आगमन के साथ गीतों के बोल बदल जाते हैं। मांदर के ताल बदल जाते हैं और मानव मन थिरक उठता है। लोक समुदाय बिना डोर खींचे चला आता है संस्कृतिक अभिव्यक्ति स्थल अखरा की ओर। अखरा में सामूहिक रूप से अपने अंदर के आनंद को अभिव्यक्ति देते हैं। पूरा लोक समुदाय आनंदमग्न होकर नाचता है, गाता है बजाता हैं।
गीत- माँदर बाजे रे, बाँसी बाजे रे
माँदर बाजे रे, बाँसी बाजे रे, अखरें गहदम झूमइर लागे रे….2
जखन आवइ करमा चाहे सोहराई टुसू के रंग भइया कहलो ना जाइ डोहा के सुरें झुमें बाँउड़ी पोरोब सरहुल आवइथीं गोटे झारखंड माताइ
माँदइर बाजे ……2
झींगा फुले काँसी फुटे, भादो जखन आवे करमा के गीत गूंजे तखन गाँव-गाँवे जावाडाली, बेलन्दरी, धान के पतइया बहिन कहे लाख बछर जिये हामर भइया, चाँद हाँसेरे, मेंजूर नाचे रे अखरें गहदम झूमइर लागे रे ।
माँदइर बाजे……2
झारखंडें जखन आवे, सोहराइ के. दिना घरें-घरें माँदइर बाजे धांग-धातिंग-तिना गोरू-डाँगर मलक मारे, सिंघें सिंदुर माखे बरदा के मिरवें परीछे ढोले-ढाँकेँ, धान पाके रे, डाँगर नाचे रे अखरें गहदम झूमइर लागे रे माँदइर बाजे…… 2
पूस मासें मारो हइ, कनकनी अंगें- अंगे बाँउड़ी-टुसू काँधा जोइर आवइ एक संग चिउरा-गुर, लाइ- पीठा अछल-गदल घरें दामुदरें डोहा के जे हाँको हइ भिनसरें, मेला लागे रे, घेरा, बाजे रे अखरें गहदम झूमइर लागे रे माँदइर बाजे .. .2
सरहूल पोरोबेक राजा झारखंडें दादा गाछें- गाछें, फूल फुटे लाल-पियर-सादा मधु चुवइ मन मातइ, माइत जा हइ हावा परकिरति कर हइ सिंगार नावाँ – नावाँ कोइल कूके रे, भोंरा गूँजे रे अखरें गहदम झूमइर लागे रे माँदइर बाजे……2