विशिष्ट विद्यार्थियों की व्यवहार सम्बन्धी समस्याएँ उनकी शैक्षिक उपलब्धियों का मार्ग अवरुद्ध कर देती हैं तथा कक्षा के सामान्य बालक उन्हें स्वीकार नहीं कर पाते। इसलिए बाधित विद्यार्थियों की व्यवहार सम्बन्धी समस्याओं का सही ढंग से प्रबन्धन करना बहुत महत्त्वपूर्ण है।
अध्यापक को बाधित विद्यार्थियों के व्यवहार से संबंधित दो प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ सकता है; ये समस्याएँ हैं-
- अनपयुक्त कक्षा व्यवहार
- अल्प निपुणता
अनुपयुक्त व्यवहार के अन्तर्गत स्वयं सबसे लड़ना, बहस करना, अपने स्थान से बार-बार उठना, सौगन्ध लेना, दूसरों के साथ अन्तःक्रिया न करना, अपरिपक्व तथा अवांछित व्यवहार सम्मिलित किये जाते हैं। साधारण कौशल के अन्तर्गत अधूरे कार्य, पढ़ाई के दौरान कम ध्यान, निर्देशनों का अनुसरण में असमर्थता, अध्ययन समय का अल्प प्रबन्धन होता है। व्यवहार सम्बन्धी समस्या पृथकीकरण में नहीं होती है। कक्षा व्यवहार सम्बन्धी समस्याओं को समझने तथा उनके प्रबन्धन हेतु विशिष्ट विद्यार्थियों के साथ-साथ अध्यापक तथा विशिष्ट विद्यार्थियों के साथियों के व्यवहार का भी परीक्षण करना आवश्यक है। व्यवहार प्रबन्धन के निम्नलिखित अधिनियम हैं-
- संक्षिप्त लक्ष्यों का कथन
- व्यवहार को शिक्षण योग्य, छोटे-छोटे घटकों में विभक्त करना
- व्यवस्थित प्रबन्धन की स्थापना
- विद्यार्थियों की उन्नति को पहचानने के लिए आँकड़ों का संकलन
संक्षेप में ये लक्ष्य वास्तविक, विशिष्ट तथा व्यावहारिक होने चाहिए। कार्य को छोटे-छोटे सरल कार्यों में विभाजित कर देना चाहिए, जो आसानी से पढ़े जा सकें। विद्यार्थियों को निरन्तर पुनर्बलन प्रदान करना चाहिए, कक्षा अध्यापक अनौपचारिक प्राविधियों के द्वारा सूचनाएँ एकत्र कर सकता है; जैसे-
- व्यवहार का प्रत्यक्ष सम्प्रेषण,
- अनौपचारिक व्यवहार का भण्डार, विशिष्ट विद्यार्थियों के व्यवहार में सुधार लाने हेतु
- इस तथ्य का पता लगाना कि अपेक्षित व्यवहार की जानकारी जो उन्हें प्राप्त करना है अर्थात् सीखना है।
- प्रशिक्षण व्यवस्था को चुनने तथा व्यवहार पर आधारभूत आँकड़ों का संकलन करना ।
- एक मध्यस्थ कार्यक्रम की आवश्यकता हेतु आवश्यक आँकड़ों का विश्लेषण ।
- निश्चित करना कि क्या लक्षित में व्यवहार वृद्धि या कमी करने की आवश्यकता है ? (यदि हस्तक्षेप (Intervention) पर आवश्यक हो ।)
- एक मध्यस्थ का चुनाव करना जिसमें अधिक सकारात्मक आयाम का प्रयोग हो ।
- मध्यस्थता को प्रयुक्त करना ।
- विद्यार्थियों के कार्यों पर आधारित आँकड़ों का संकलन करना ।
- मध्यस्थता को जारी रखने के लिए, परिवर्तन के लिए तथा समाप्त करने के लिए आँकड़ों का विश्लेषण करना आदि।
- आवश्यक कार्यवाही करना ।
जब विद्यार्थी शिक्षक द्वारा इच्छित व्यवहार कर रहे हों और उनका व्यवहार मध्यस्थता पर निर्भर न हो तब भी आँकड़ों का संकलन तथा रख-रखाव रखना चाहिए। नियोजन को कम करके अवरोधक को कम किया जा सकता है, विद्यार्थियों को आशानुरूप सम्प्रेषित कर देना चाहिए ये अग्र प्रकार से सम्प्रेषित किये जा सकते हैं:
- कक्षा के नियमों की स्थापना (Establishing the Class Rules) – कक्षा के व्यवहार से सम्बन्धित नियम ऐसे होने चाहिए जो कि अध्यापक द्वारा आशानुरूप व्यवहार को प्राप्त करने में सहायक हों।
- उपयुक्त व्यवहार पर पुनर्बलन (Reinforcing Appropriate Behavior)- जब विद्यार्थी अच्छा व्यवहार करें तो अध्यापक को उन्हें पुरस्कृत करना चाहिए ।
- पुनर्बलक का प्रयोग (Using Reinforcers) –विद्यार्थियों से अच्छे व्यवहार की प्राप्ति हेतु अध्यापक को ऐसे पुनर्बलन का प्रयोग करना चाहिए जो विद्यार्थियों के लिए महत्त्वपूर्ण हो। इस तथ्य का पता लगाने के लिए कि विद्यार्थी पुरस्कार के रूप में क्या चाहते हैं, अध्यापक को विद्यार्थियों से पूछना चाहिए और उनका निरीक्षण करना चाहिए ।
- पुनर्बलन हेतु प्रविधि का प्रयोग (Using Technique to deliver Reinforcers)- इसके अन्तर्गत अध्यापक विद्यार्थियों को जब वह अच्छा व्यवहार करते हैं तो पुनर्बलन के बदले प्रविधि देता है। इस प्रकार की व्यवस्था एक विद्यार्थी, समूह तथा पूरी कक्षा के साथ भी की जा सकती है। इस प्रविधि की व्यवस्था को करने से पूर्व अध्यापक को विद्यार्थियों को उस व्यवहार की परिभाषा देनी चाहिए जिसे करने के परिणामस्वरूप विद्यार्थियों द्वारा वे व्यवहार किये जायेंगे।
- प्रारूप का प्रयोग (Using Modelling to Improve Students Behavior)- इसके अन्तर्गत बाधित विद्यार्थी को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अच्छा व्यवहार करते हुए दिखाया जाता है। यह बहुत सावधानीपूर्वक करना चाहिए ताकि बालक पर इसकी बुरा प्रभाव न पड़े।