क्रिया-कलापों के प्रबन्धन हेतु मुख्य आयाम निम्नलिखित हैं-
- हरबर्ट का आयाम (Herbertain Approach) Herbart.
- मूल्यांकन आयाम (Evaluation Approach) B.S. Bloom.
- शिक्षण अधिगम की व्यवस्था (Managing Teaching Learning) I.K. Devies
- शिक्षा संगठन ( स्मृति, समझने एवं अनुक्रिया का स्तर ) (Organizing Teaching)
(1) हरबर्ट का आयाम (Herbertain Approach) –
यह बहुत प्राचीन आयाम है इसके पाँच पद हैं-
- प्रस्तुतीकरण
- तैयारी
- तुलना
- विश्लेषण तथा संश्लेषण
- सामान्यीकरण
यह कक्षा प्रबन्धन का पाठ्यवस्तु केन्द्रित आयाम है, यह अध्यापक नियंत्रण अनुदेशों पर आधारित है। इसमें कक्षा प्रबन्धन के समस्त क्रिया-कलापों का प्रबन्धन, नियन्त्रण अध्यापक द्वारा किया जाता है और विद्यार्थी उदासीन श्रोता होते हैं। यह विषय के रटने पर बल देता है। इस आयाम को विचारहीन शिक्षण (स्मृति) की संज्ञा दी जाती है।
(2) मूल्यांकन आयोग (Evaluation Approach) –
कक्षा शिक्षण का यह आयाम बी० एस० ब्लूम द्वारा प्रतिपादित किया गया है। इसके अन्तर्गत शिक्षण को त्रिपादी प्रक्रिया से संलग्न माना जाता है-
- शिक्षा के उद्देश्य
- अधिगम अनुभव तथा
- व्यवहार परिवर्तन।
कक्षा प्रबन्धन हेतु शिक्षा के उद्देश्यों को जानना आवश्यक है। कक्षा क्रिया-कलापों के प्रबन्धन का उद्देश्य विद्यार्थियों को अधिगम अनुभव का ज्ञान प्राप्त करवाना है और ये सब उद्देश्य व्यवहार परिवर्तन की सहायता से ही प्राप्त किये जा सकते हैं। कक्षा प्रबन्धन उद्देश्य केन्द्रित होता है, उद्देश्यों को समझने के लिए कक्षा क्रिया-कलापों का प्रबन्धन किया जाता है ।
(3) शिक्षण अधिगम का प्रबन्धन (Managing of Teaching Learning)–
आई०के० डेविस ने शिक्षा के शिक्षण अधिगम प्रबन्धन आयाम का प्रतिपादन किया है। कक्षा प्रबन्धन में अध्यापक व्यवस्थापन की भूमिका निभाता है और कक्षा क्रिया-कलापों, शिक्षण क्रियाओं का प्रबन्धन करता है। यह आयाम मानवीय संगठन तथा सम्बन्धों के सिद्धान्त पर आधारित है। डेविस ने शिक्षण अधिगम हेतु चार पद दिये हैं
- नियोजन
- संगठन
- अग्रसरण तथा
- नियंत्रण
संगठन तथा अग्रसरण पद कक्षा प्रबन्ध जुड़े हुए पृष्ठ-पोषण प्रदान करता है। डेविस के अनुसार कक्षा प्रबन्धन के माध्यम से प्राथमिक स्तर से उच्च स्तर तक पाँच अधिगम ढाँचा उपलब्ध कराये जाते हैं। कक्षा प्रबन्धन में विभिन्नतायें होती हैं।
(4) शिक्षण संगठन (Organizing Teaching)-
शिक्षण संगठन आयाम इस तथ्य पर आधारित है कि शिक्षण विचार हीनता से विचार युक्तता की ओर ले जाने वाला है जैसे स्मृति से अनुक्रिया स्तर की ओर जैसे-
- स्मृति स्तर
- समझने का स्तर तथा
- चिन्तन स्तर
स्मृति स्तर पर कक्षा प्रबन्धन का नियंत्रण तथा विस्तार अध्यापक द्वारा किया जाता है। समझन के स्तर पर कक्षा प्रबन्धन को अध्यापक तथा विद्यार्थी दोनों ही नियंत्रित करते हैं। अनुक्रिया स्तर पर विद्यार्थी कक्षा क्रिया-कलापों के प्रबन्धन को कहते हैं। यह शिक्षण की सकारात्मक सुधार अवस्था होती है। कक्षा क्रिया-कलापों का प्रबन्धन (सेमिनार कॉन्फ्रेन्स) हाल में होता है।
(5) शिक्षण का प्रतिमान आयाम (माड्युलर ) –
इस आयाम के अन्तर्गत कक्षा क्रिया-कलापों के प्रबन्धन हेतु शिक्षण प्रारूप का प्रयोग किया जाता है, शिक्षण प्रारूपों की बहुत सी शाखायें हैं तथा प्रत्येक शाखा की कक्षा क्रियाओं के प्रबन्ध भिन्न-भिन्न हैं। एक प्रारूप के चार मूल तत्व होते हैं-
- अभिकेन्द्रण
- त्रुटि सुधार
- सामाजिक व्यवस्था तथा
- सहायक व्यवस्था।
इन तत्वों की सहायता से कक्षा प्रबन्ध के प्रारूप को भली प्रकार समझा जा सकता है तथा उसका विश्लेषण किया जा सकता है। कक्षा क्रिया-कलापों के प्रबन्धन में त्रुटि सुधार से अभिप्राय अधिगम के प्रारूप से होता है। शिक्षण के इस प्रतिमान आयाम के द्वारा भिन्न-भिन्न कक्षा क्रिया-कलापों के प्रबन्धन की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
(6) कक्षा शिक्षण की क्रियायें (Operations of Classroom Teaching)–
यह आयाम चरण अथवा कक्षा शिक्षण की अवस्था के रूप में भी प्रचलित है। कक्षा क्रिया-कलापों के प्रबन्धन के सामान्य प्रारूप हेतु तीन अवस्थायें आवश्यक हैं-
- पूर्व क्रिया अवस्था (Pre-active Stage)
- अन्तः क्रिया अवस्था (Interactive Stage)
- विगत (भूत) क्रिया अवस्था (Post active Stage)
इस आयाम की अन्तःक्रिया अवस्था कक्षा प्रबन्धन की क्रियाओं तथा क्रिया-कलाप का नियोजन किया जाता है इस प्रकार कक्षा के क्रिया-कलापों के प्रबन्धन में लचीलापन रहता है। कक्षा क्रियाओं का यह प्रत्यय कार्ल ऑपेन शॉ द्वारा प्रतिपादित किया गया है।