ब्रिटिश भारत में समय-समय पर विभिन्न नियमों, अधिनियमों तथा आयोगों द्वारा प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च स्तर तक विभिन्न सुझाव प्रेषित किये गए तथा इनके माध्यम से नवीन व्यवस्था लागू करने का प्रयास किया गया।
1882 में लॉर्ड रिपन ने भारतीय शिक्षा आयोग का गठन किया, यद्यपि इसमें सर्वाधिक ध्यान प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में दिया गया फिर भी उच्च शिक्षा के उन्नयन हेतु भी कुछ सुझाव दिये गए। तदुपरान्त लॉर्ड कर्जन ने 1902 में भारतीय विश्वविद्यालय आयोग का गठन किया व उन सिफारिशों के आधार पर भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम 1904 पारित किया.
इस आयोग द्वारा वास्तविक रूप में कुछ सुधार दृष्टिगत हुए जैसे- भारतीय विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक ढांचे का पुनर्गठन हुआ, शिक्षण कार्य आरम्भ हुआ इत्यादि।
आगे चलकर 1911 में व 1913 की नीति में उच्च शिक्षा से सम्बन्धित अनेक निर्णय लिये गए किन्तु 1 वर्ष उपरान्त ही प्रथम विश्व युद्ध (1914) आरम्भ हो गया समस्त शैक्षिक निर्णय केवल कागज के टुकड़े मात्र बन कर रह गए।
किन्तु युद्ध समाप्त होने के उपरान्त पुनः सरकार ने इस ओर ध्यान केन्द्रित किया। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हेतु विचार-विमर्श हो ही रहा था कि 1916 में बंगाल प्रान्त के शिक्षा संचालक सर आशुतोष मुखर्जी ने सरकार को कलकत्ता विश्वविद्यालय की समस्याओं से अवगत कराया।
उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालयों में छात्रों की संख्या बहुत अधिक हो गई थी तथा अन्य समस्याएं जैसे- कुछ विषयों में स्नातकोत्तर कक्षाएं आरम्भ करना, अनुशासन व सम्बद्ध महाविद्यालयों से सम्बन्धित समस्याएं इत्यादि सामने आ रही थीं।
अतः उप कुलपति व शिक्षा संचालक सर आशुतोष मुखर्जी ने इन सभी कठिनाइयों को सरकार के समक्ष रखा फलस्वरूप तत्कालीन शासन द्वारा 14 सितम्बर, 1917 को लीड्स विश्वविद्यालय के कुलपति डा. माइकेल सैडलर (Michael Sadler) की अध्यक्षता में ‘कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग (Calcutta University Commission) की नियुक्ति की गई। इस आयोग के अध्यक्ष सैडलर थे। अतः इसे सैडलर कमीशन 1917 के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। माइकेल सैडलर ने अपने सात सदस्यों के साथ, कलकत्ता विश्वविद्यालय व अन्य विश्वविद्यालयों के सुधार के सम्बन्ध में सुझाव देने का कार्य किया साथ ही इन्होंने माध्यमिक शिक्षा, स्त्री शिक्षा व शिक्षक-प्रशिक्षण से सम्बन्धित सुझाव भी प्रस्तुत किये थे।
सैडलर आयोग की सिफारिशें (Recommendations of Sadler Commission)
सैडलर आयोग की नियुक्ति के पूर्व भारत में 1913 की नीति के अनुरूप, माध्यमिक स्तर की इण्टरमीडिएट कक्षाओं को विश्वविद्यालयों प्रशासन के साथ ही संलग्न करके संचालित किया जा रहा था किन्तु कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग ने यह अनुभव किया कि इण्टरमीडिएट कक्षाओं को विश्वविद्यालयों से पृथक् कर देना चाहिये अतः आयोग ने सर्वप्रथम माध्यमिक शिक्षा में सुधार करना पहली आवश्यकता बताया तथा इस सम्बन्ध में सुधार हेतु सुझाव दिये। आयोग ने मुसलमानों व स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में भी सुझाव प्रेषित किये। आयोग द्वारा दिये गये समस्त सुझाव निम्न वर्णित हैं-
आयोग के माध्यमिक शिक्षा सम्बन्धी सुझाव (Suggestions of Commission for Secondary Education)
सैडलर कमीशन का यह विचार था कि उच्च शिक्षा की प्रगति और उसमें गुणात्मक सुधार लाने के लिये उसके पूर्व की माध्यमिक शिक्षा में सुधार करना पहली आवश्यकता है, क्योंकि माध्यमिक शिक्षा का स्तर उठाए बिना उच्च शिक्षा में उन्नति करना संभव नहीं है। अतः आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिये-
- विश्वविद्यालय में प्रवेश केवल इण्टरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरान्त ही मिले न कि मैट्रिक के बाद।
- प्रत्येक प्रान्त में ‘माध्यमिक शिक्षा बोर्ड’ (Board of Secondary Education) की स्थापना की जाए।
- स्नातक पाठ्यक्रम (Degree Course) 3 वर्षीय होना चाहिए।
- माध्यमिक विद्यालयों में अंग्रेजी व गणित को छोड़कर अन्य सभी विषय मातृभाषा के माध्यम से पढ़ाए जायें।
- विश्वविद्यालयों में एक शैक्षिक परिषद् (Academic Council) हो।
- विश्वविद्यालयों के आन्तरिक प्रशासन के लिये सीनेट के स्थान पर कोर्ट (Court) और सिण्डीकेट के स्थान पर कार्यकारिणी परिषद् (Executive Council) का गठन किया जाए।
- विश्वविद्यालयों में सामान्य पास कोर्स व आनर्स कोर्स दोनों की व्यवस्था होनी चाहिये।
- विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम निर्माण और परीक्षा सम्बन्धी निर्णयों के लिये अध्ययन बोर्ड (Board of Studies) और विद्त परिषदों (Academic Council) का गठन किया जाए।
- विश्वविद्यालयों में व्यावसायिक विषयों-कानून, चिकित्सा, इंजीनियरिंग के अध्ययन की व्यवस्था की जाए।
- छात्रों के स्वास्थ्य की जांच पड़ताल हेतु एक शारीरिक शिक्षा निदेशक (Director of Physical Training) की नियुक्ति की जानी चाहिए।
- ढाका (वर्तमान बांग्लादेश) में शीघ्र ही आवासीय शिक्षण विश्वविद्यालय की स्थापना (Resi- dential Teaching University) की स्थापना की जाए जिससे कलकत्ता विश्वविद्यालय में छात्रों की संख्या पर कुछ नियंत्रण हो (उस समय ढाका भारत के बंगाल प्रान्त का ही एक भाग था )
- कलकत्ता विश्वविद्यालय को एक आदर्श विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया जाए।
- आयोग ने स्त्री शिक्षा हेतु शिक्षा का विशिष्ट बोर्ड (Special Board of Women Education) की स्थापना का सुझाव दिया।
- कलकत्ता एवं ढाका विश्वविद्यालयों में भी शिक्षक-प्रशिक्षण विभाग खोले जायें।
- माध्यमिक व स्नातक स्तर पर शिक्षाशास्त्र (Education) विषय को सम्मलित किया जाए।
- विश्वविद्यालयों में भी व्यावसायिक शिक्षा की उपयुक्त व्यवस्था हो तथा व्यावसायिक विषयों में भी उपाधियां व प्रमाणपत्र (Degrees and Diploma) प्रदान किये जा सकें।
- व्यावसायिक शिक्षा में उन्नति हेतु व्यावहारिक विज्ञान (Applied Science) तथा अन्य व्यावसायिक व तकनीकी विषयों को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए।