विद्यालय से क्या तात्पर्य है? विद्यालय के महत्त्व, आवश्यकता एवं कार्य की विवेचना करें।

विद्यालय का अर्थ और परिभाषा निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझेंगे-

  1. शाब्दिक अर्थ
  2. परिभाषयी अर्थ
  3. व्यापक अर्थ

शाब्दिक अर्थ – विद्यालय दो शब्दों के योग से बना है-

विद्या + आलय = विद्यालय

विद्यालय से तात्पर्य इस प्रकार ऐसे स्थल से है जहाँ पर विद्या प्रदान की जाती हो या ऐस आलय जहाँ विद्यार्जन होता हो।

अंग्रेजी में विद्यालय के लिए School शब्द प्रयुक्त किया जाता है, जिसकी उत्पत्ति ग्रीक शब्द ‘Skhola‘ और ‘Skhole‘ से हुई है इसका तात्पर्य है- अवकाश। विद्यालय का यह अर्थ कुछ विचित्र सा लगता है परन्तु वास्तविकता तो यह है कि प्राचीन यूनान में अवकाश के स्थानों को ही विद्यालय के नाम से सम्बोधित किया जाता था। अवकाश को ही ‘आत्मविकास‘ समझा जाता था जिसका अभ्यास ‘अवकाश‘ नामक निश्चित स्थान पर किया जाता था और धीरे-धीरे यही स्थल सोद्देश्य पूर्ण ज्ञान प्रदान करने के रूप में परिवर्तित हो गये।

ए. एफ. लीच ने ‘अवकाश‘ शब्द का स्पष्टीकरण कुछ इस प्रकार किया है- बाद-विवाद या वार्ता के स्थान जहाँ युवक अपने अवकाश के समय को खेलकूद, व्यायाम और युद्ध के प्रशिक्षण में बिताते थे धीरे-धीरे दर्शन तथा उच्च कक्षाओं के विद्यालयों में बदल गये। एकेडमी के सुन्दर उद्योगों में व्यतीत किये जाने वाले अवकाश के माध्यम से विद्यालय का विकास हुआ।

परिभाषीय अर्थ – विद्यालय के अर्थ के और अधिक स्पष्टीकरण हेतु कुछ परिभाषायें निम्न प्रकार है-

जे. एस. रॉस के अनुसार– विद्यालय के संस्थायें हैं जिनको सभ्य मानव ने इस दृष्टि से स्थापित किया है कि समाज में सुव्यवस्थित तथा योग्य सदस्यता के लिए बालकों को तैयारी में सहायता मिले।

जॉन डीवी के अनुसार– विद्यालय एक ऐसा विशिष्ट वातावरण है जहाँ बालक के पति विकास की दृष्टि से उसे विशिष्ट क्रियाओं तथा व्यवसायों की शिक्षा दी जाती है।

टी. पी. नन के अनुसार– विद्यालय को मुख्य रूप से इस प्रकार का स्थान नहीं समझा जाना चाहिए जहाँ किसी निश्चित ज्ञान को सीखा जाता है, बल्कि ऐसा स्थान जहाँ बालकों को क्रियाओं के उन निश्चित रूपों में प्रशिक्षित किया जाता है जो इस विशाल संसार में सबसे महान और सबसे अधिक महत्त्व वाली है।

व्यापक अर्थ सामान्य रूप से विद्यालयों को सूचना विक्रेताओं के रूप में माना जाता है। इस अवधारणा का स्पष्टीकरण पेस्तालॉजी ने इस प्रकार किया है-“ये विद्यालय अमनोवैज्ञानिक हैं जो बालक को उसके स्वाभाविक जीवन से दूर कर देते हैं, उनकी स्वतन्त्रता को निरंकुशता से रोक देते हैं और उसे अनाकर्षक बातों को याद रखने के लिए समान हाँकते हैं और घण्टों, दिनों, सप्ताहों, महीनों तथा वर्षों तक दर्दनाक जंजीरों से बाँध देते हैं ।”

अपने व्यापक अर्थ में विद्यालय समाज का लघु रूप है सद्भावना, विश्व शान्ति का केन्द्र है। विद्यालय बाजार नहीं है जहाँ विभिन्न योग्यताओं वाले अनिच्छुक व्यक्ति को ज्ञान बेचा जाता है। विद्यालय रेलवे प्लेटफार्म नहीं हैं, जहाँ विभिन्न उद्देश्यों से व्यक्तियों की भीड़ जमा होती है। विद्यालय कठोर सुधार गृह नहीं हैं जहाँ किशोर अपराधियों पर की निगरानी रखी जाती है। विद्यालय आध्यात्मिक संगठन है जिसका अपना स्वयं का विशिष्ट व्यक्तित्व है। विद्यालय गतिशील सामुदायिक केन्द्र है जो चारों ओर जीवन और शक्ति का संचार करता है । विद्यालय एक आश्चर्यजनक भवन है जिसका आधार सद्भावना है- जनता की सद्भावना, माता-पिता की सद्भावना, छात्रों की सद्भावना सारांश में एक सुसंचालित विद्यालय एक सुखी परिवार, एक पवित्र मन्दिर, एक सामाजिक केन्द्र, लघु रूप में एक राज्य और मनमोहक वृन्दावन है, इसमें इन सब बातों का मिश्रण होता है।

विद्यालय का महत्त्व आवश्यकता तथा कार्य- मनुष्य का जीवन धीरे-धीरे जटिल होता जा रहा है और उसकी आवश्यकतायें भी असीमित होती जा रही हैं, जिनकी पूर्ति के लिए व्यक्ति और बढ़ती जनसंख्या के मध्य अपने अस्तित्व और आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए दिन-रात परिश्रम कर रहा है। परिणामस्वरूप माता-पिता और अभिभावक कार्य में संलग्न होने के कारण अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते हैं जिससे विद्यालय को आवश्यकता और महत्त्व में वृद्धि हुई है। पहले विद्यालयी शिक्षा कुछ विशिष्ट व्यक्तियों तथा उच्च और कुलीन वर्गों तक ही सीमित थी, परन्तु जनतांत्रिक दृष्टिकोण के कारण अनिवार्य और सार्वभौमिक शिक्षा होने से सभी वर्गों और लिंगों की शिक्षा अनिवार्य हो गयी है। विद्यालय में प्रदान किया जाने वाला ज्ञान ही व्यक्ति का जीवन की कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी मार्गदर्शन करता है। इसी कारण अज्ञानी मनुष्य को बिना पूँछ के ही पशु कहा गया है।

विद्यालय के कार्य (Funtions of School)- विद्यालय के कार्यों का वर्णन दो प्रकार से किया जा सकता है-

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