ईश्वर द्वारा पृथ्वी पर उत्पन्न जीवों में, उसकी सर्वश्रेष्ठ कृति और अभिव्यक्ति मानव रूप में विद्यमान है और उसकी यह कृति स्त्री और पुरुष दो रूपों में अभिव्यक्त की जाती है। यही नहीं, इन दोनों में सम्पूर्ण रूप से समानता न होकर भिन्नता भी पाई जाती है। स्त्री-पुरुष की यही भिन्नता अथवा विषमता आधुनिक युग के समाजशास्त्रीय विचारकों के शब्दों में लैंगिक विषमता कहलाती है। इसी विषमता को लिंग-भेद के रूप में भी जाना जाता है
लैंगिक विषमता या लिंग भेद का आशय (Meaning of Gender Heterogeneity)
आधुनिक मानव की यह लैंगिक विषमता ही उसके सम्पूर्ण अस्तित्व का कारण ही नहीं, अपितु इसी आधार पर, मानव की सभ्यता एवं संस्कृति के विकास की नींव भी रखी हुई है। इस लैंगिक विषमता द्वारा ही पुरुषों और स्त्रियों में जैविक विशेषताओं के साथ-साथ अन्य शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक विशेषताओं को न केवल जन्म दिया गया है, अपितु उनको विकसित भी किया है। स्त्री-पुरुषों की, इन व्यक्तिगत विशेषताओं ने उनके व्यक्तिगत व्यवहारों के साथ-साथ उनके द्वारा निर्मित समाज के अन्तर्गत सामाजिक व्यवहारों, सामाजिक क्रियाओं एवं सामाजिक घटनाओं को भी घटित होने का अवसर प्रदान किया है और सामाजिक सम्बन्धों को विकसित किया है।
प्राचीन एवं नवीन समाजों एवं संस्कृतियों के ऐतिहासिक विकास का अध्ययन करने से यह पता चलता है कि इस लैंगिक विषमता ने ही स्त्रियों को वह क्षमता प्रदान की, जिसने न केवल मनुष्य को जन्म दिया अपितु मानव सभ्यता एवं संस्कृति के विकास को भी ने जन्म देकर विकसित किया। यही नहीं, पुरुषों द्वारा सभ्यता के विकास में नारी को पूर्ण सहयोग भी दिया गया।