राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की सिफारिशों का सार

राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की सिफारिशें भारत के शिक्षा और ज्ञान क्षेत्र में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं। रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण सिफारिशें शामिल हैं जो भारत को एक ज्ञान समाज में बदलने में मदद कर सकती हैं।

राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की सिफारिशों का महत्वपूर्ण योगदान है जो शिक्षा और विज्ञान क्षेत्र में सुधार की दिशा में जाने जाते हैं। आयोग ने अपनी सिफारिशों के माध्यम से शिक्षा और विज्ञान क्षेत्र में कई बदलाव किए हैं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण सिफारिशें निम्नलिखित हैं:

1. ज्ञान की सुलभता – ज्ञान तक पहुंच प्रदान करना व्यक्तियों और समूहों के लिए अवसर बढ़ाने का सबसे बुनियादी तरीका है। अतः समाज में ज्ञान की उपलब्धता के माध्यम से जीवन का प्रसार एवं विस्तार करना आवश्यक है। इस सन्दर्भ में ज्ञान आयोग की मुख्य सिफ़ारिशें निम्नलिखित क्षेत्रों में हैं-

  • शिक्षा का अधिकार (Right of Education) – आयोग ने स्पष्ट किया कि 2002 में 86वें संशोधन द्वारा शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार बना दिया गया है, फिर भी भारतीय बच्चों को अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने के लिए, आयोग सिफारिश करता है कि शिक्षा के अधिकार की पुष्टि के लिए एक केंद्र सरकार का गठन किया जाए। कानून की जरूरत है. इसके बाद स्कूली शिक्षा के उन्नयन के लिए न्यूनतम मानक तय किए जाने चाहिए और सरकार को इस व्यवस्था के लिए संसाधन जुटाने होंगे, जिसके तहत शिक्षा के अधिकार को पूरा करने के लिए आवश्यक अतिरिक्त धनराशि का एक बड़ा हिस्सा केंद्र सरकार को जुटाना होगा।
  • भाषा (Language) – आयोग के विचार में मौजूदा परिस्थितियों में उच्चतर शिक्षा, रोजगार संभावनाओं व सामाजिक अवसरों की सुलभता की दृष्टि से अंग्रेजी भाषा की समझ व उसको पारंगत होना सबसे अधिक जरूरी है तथा आधुनिक ज्ञान एवं कौशल प्राप्त किया जा सकता है। अतः ज्ञान आयोग यह सिफारिश करता है कि एक भाषा के रूप में अंग्रेजी की शिक्षा बच्चे की पहली भाषा (मातृभाषा या प्रादेशिक भाषा) के साथ पहली कक्षा से ही शुरू कर दी जानी चाहिए।
  • अनुवाद (Translation) – आयोग ने स्पष्ट किया कि भारत एक बहुभाषी देश है। किसी एक भाषा में अभिव्यक्त ज्ञान को अन्य भाषा-भाषियों तक पहुँचाने के लिए उसका भिन्न-भिन्न भाषाओं में अनुवाद होना आवश्यक है। उसने सिफारिश की कि केन्द्र में एक अनुवाद विभाग खोला जाए, लोगों को एक भाषा से दूसरी भाषाओं में अनुवाद करने का प्रशिक्षण दिया जाए और किसी भी भाषा में व्यक्त ज्ञान का अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जाए।
  • पुस्तकालय (Library) – पुस्तकालय और सूचना सेवा (LIS) क्षेत्र को चुस्त बनाने के लिए आयोग ने यह सिफारिश की है कि सर्वप्रथम ज्ञान के प्रचार प्रसार एवं संरक्षण में पुस्तकालयों की उपयोगिता स्पष्ट है तथा पुस्तकालयों की स्थापना, संचालन एवं उन्नयन के लिए एक स्वतन्त्र राष्ट्रीय मिशन की स्थापना की जाए।
  • राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क (National Knowledge Network) – वर्तमान में ज्ञान के प्रसार, प्रचार व संरक्षण में विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय एवं पुस्तकालयों के अतिरिक्त ‘इंटरनेट’ की बहुत बड़ी भूमिका है। आयोग ने एक ऐसे राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क की स्थापना करने की सिफारिश की है जो विभिन्न क्षेत्रों में स्थित ज्ञान को जोड़ दे।
  • स्वास्थ्य सूचना नेटवर्क (Health Information Network) – आयोग स्वास्थ्य देखभाल में सूचना प्रौद्योगिकी (I. T.) के व्यापक प्रयोग का पक्षधर है। इस हेतु उसने हैल्थ डाटा कोष का निर्माण करने की सिफारिश की है और एक सामान्य इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड (EHR) निर्मित करने की आवश्यकता बताई है, जिसमें व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक का अभिलेख होगा।

2. ज्ञान के सिद्धान्त (Principles of Knowledge) – राष्ट्रीय ज्ञान आयोग का कार्य शिक्षा क्षेत्र को चुस्त बनाने की ओर केन्द्रित रहा है। इसकी चिंता भारतीय शिक्षा प्रणाली के अनेक पक्षों को लेकर है जिनमें निम्न बातें शामिल हैं-

  • स्कूली शिक्षा (School Education) – आयोग का विचार है कि उत्तम स्कूली शिक्षा को सुलभ बनाने हेतु प्रारम्भिक एवं माध्यमिक स्तरों पर बड़े पैमाने पर विस्तार करना होगा तथा स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार लाना होगा जिसके लिए आयोग ने स्कूलों के प्रबंधन में विकेन्द्रीकरण स्थानीय स्वायत्तता तथा निधियों के संवितरण में नमनशीलता की सिफारिश है तथा स्कूलों की गुणवत्ता पर नजर रखने के लिए राष्ट्रीय मूल्यांकन निकाय की स्थापना का प्रस्ताव किया है। साथ ही सेवा पूर्व तथा सेवाकालीन अध्यापक प्रशिक्षण की गुणवत्ता बढ़ाने पर बल दिया है।
  • व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (Vocational Education and Training) – व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (VET) में सुधार लाने के लिए आयोग ने नवाचारी आपूर्ति मॉडलों के माध्यम से जिनमें सशक्त सरकारी-निजी भागीदारी शामिल है की क्षमता के विस्तार की जरूरत पर बल दिया है। आयोग ने मानव संसाधन विकास में व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण की भूमिका को महत्त्वपूर्ण माना है और इस दिशा में राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा नियोजन संस्थान की स्थापना का प्रस्ताव किया है। साथ ही व्यावसायिक शिक्षा के स्थान पर कौशल विकास जैसे शब्दों का उपयोग करने की सलाह दी है और मुख्य धारा की शिक्षा प्रणाली के भीतर व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (VET) में लचीलापन लाने हेतु बल दिया है। साथ ही सरकारी-निजी भागीदारी की वकालत की है।
  • उच्च शिक्षा (Higher Education) – आयोग का मानना है कि जनसंख्या के बहुत बड़े | हिस्से हेतु उच्च शिक्षा की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है अतः उच्च शिक्षा की सुलभता हेतु देशभर में लगभग 1500 विश्वविद्यालय होने चाहिए और 50 राष्ट्रीय विश्वविद्यालय भी स्थापित किये जाने चाहिए। साथ ही उच्च शिक्षा के लिए स्वतन्त्र विनियमन प्राधिकरण (Independent Regulatory Authority for Higher Education – IRAHE) की स्थापना होनी चाहिए। आयोग ने उक्त प्राधिकरण के साथ ही गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए पाठ्यक्रम संशोधन क्रेडिट प्रणाली, आंतरिक मूल्यांकन एवं अनुसंधान के प्रोत्साहन पर विशेष बल दिया है।
  • गणित और विज्ञान में और अधिक प्रतिभाशाली छात्र (More Talented Students in Maths & Science) — देश में विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान में नवीनीकरण करने के लिए राष्ट्रीय ज्ञान आयोग का मानना है कि गणित और विज्ञान में और अधिक संख्या में छात्रों को आकृष्ट करना महत्त्वपूर्ण होगा। इस बात को बढ़ावा देने के लिए आयोग ने एक विशाल विज्ञान आउटरीय कार्यक्रम शुरू किए जाने, अध्यापन व्यवसाय में प्राणों का संचार करने और सभी स्तरों पर अध्यापक प्रशिक्षण को चुस्त बनाए जाने की सिफारिश की है।
  • पेशेवर शिक्षा (Professional Education) – पेशेवर शिक्षा की धाराएँ उच्चतर पेशेवर प्रणाली जैसी समस्याओं से जकड़ी हुई हैं। आयोग ने यह सिफारिश की है कि चिकित्सकीय, विधिक, प्रबंधन एवं इंजीनियरी शिक्षा सहित सभी पेशेवर शिक्षा धाराओं में विनियमन की मौजूदा व्यवस्था के स्थान पर प्रस्तावित स्वतंत्र विनियामक के अधीन विभिन्न धाराओं पर उपदल रखे जाएं। इसके साथ-साथ स्वतंत्र बहुप्रत्यायन एजेंसियाँ भी रखी जानी होगी जो विश्वसनीय रेटिंग उपलब्ध कराती है। पेशेवर शिक्षा में सुधार लाने के अन्य उपायों में ये शामिल है। संस्थानों को और अधिक स्वायत्तता प्रदान करना, मौजूदा परीक्षा प्रणाली में सुधार लाना, सम-सामयिक पाठ्यचर्या तैयार करना और अनुसंधान को बढ़ावा देना।
  • मुफ्त और दूरस्थ शिक्षा तथा मुक्त शैक्षिक संसाधन (Open and Distance Education and Open Educational Resources) – आयोग का मानना है कि दूरसंचार, रेडियो और इंटरनेट जैसे मीडिया के संवर्द्धन के कारण दूरस्थ शिक्षा की पहुँच में भारी वृद्धि सम्भव है जिसके लिए आयोग ने आई. सी. टी. आधारित एक राष्ट्रीय तंत्र के सृजन, वेब आधारित सामान्य मुक्त संसाधन विकसित करने, एक क्रेडिट बैंक स्थापित करने तथा एक राष्ट्रीय परीक्षण सेवा उपलब्ध कराने पर बल दिया है। साथ ही मुक्त और दूरस्थ शिक्षा में गुणवत्ता लाने हेतु उत्तम सामग्री के उत्पादन और महत्त्वपूर्ण अनुसंधान लेखी, पुस्तकों, पत्रिकाओं आदि की मुक्त सुलभता की आवश्यकता बताई है। इसके साथ ही इंटरनेट के माध्यम से ओपन एक्सेस (Open Access) सामग्री और मुक्त शैक्षिक संसाधन (OER) का विकास और प्रसार करना चाहिए और वैश्विक मुक्त शैक्षिक संसाधनों का लाभ उठाना चाहिए।

3. सृजन (Creation) – वैश्विक ज्ञान अर्थव्यवस्था में टिके रहने के लिए तथा नये ज्ञान को सृजित करने के लिए मौजूदा संसाधनों को बचाए रखना महत्वपूर्ण होता है। इस कारण ऐसे सभी क्रियाकलापों पर विचार करना महत्वपूर्ण हो जाता है जिनके फलस्वरूप सीधे ही ज्ञान का सृजन होता है अथवा जिसमे सृजित ज्ञान सुरक्षित भी रखा जा सकता है। इसके लिए आयोग द्वारा निम्नांकित पाँच बिन्दुओं पर प्रकाश डाला गया है-

  • राष्ट्रीय ज्ञान और सामाजिक ज्ञान प्रतिष्ठान (National Knowledge and Social Knowledge Foundation) – आयोग ने विभिन्न विषयों के बीच लुप्त होती सीमाओं को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय ज्ञान और सामाजिक ज्ञान प्रतिष्ठान की स्थापना पर जोर दिया है जो कि हर तरह के ज्ञान को एक बेजोड़ इकाई मानेगा और संविधान की भावना के अनुरूप देश के लोगों में वैज्ञानिक सोच पैदा करने और विभिन्न विषयों में भविष्य में उभरने वाले क्षेत्रों की पहचान करने आदि कार्य करेगा।
  • नवाचार (Innovations) – आयोग के अनुसार भारत की आर्थिक उन्नति में नवाचार एक प्रमुख तत्व के रूप में उभर रहा है। आर्थिक उदारीकरण के शुरू होने के बाद से नवाचार के कार्यनीतिक प्राथमिकीकरण में काफी वृद्धि हुई है। अतः आयोग ने नवाचार हेतु उद्योग, विश्वविद्यालयों और आर. एण्ड डी. संस्थाओं के बीच और अधिक प्रभावी सहयोग की आवश्यकता बताई है साथ ही उच्च शिक्षा प्रणाली में व्यवस्थागत सुधार लाने पर बल दिया है।
  • उद्यमशीलता (Enterpreneurship) – आयोग ने संपदा सृजन तथा रोजगार सृजन पर उद्यमशीलता को बढ़ते हुए महत्व और प्रत्यक्ष प्रभाव को स्वीकार किया है। अतः उद्यमशीलता की उन्नति में तेजी लाने के लिए सरकार ने वित्तीय संस्थान, उद्यमशीलता के नेटवर्क तथा संघ के साथ-साथ परिवार और विशाल समुदाय के सहयोग पर बल दिया है। इस हेतु उसने उद्यमशीलता, शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा तथा प्रशिक्षण (VET) और कौशल विकास पर और अधिक बल देने की जरूरत बताई है जिसका क्रियान्वयन वर्तमान समय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कौशल विकास उन्नयन केन्द्रों’ द्वारा दिये जा रहे प्रशिक्षण कार्यक्रमों द्वारा किया जा रहा है।

4. अनुप्रयोग (Applications) – इस भाग में निम्नलिखित तीन बिन्दुओं पर प्रकाश डाला गया है –

  • परम्परागत स्वास्थ्य प्रणाली (Traditional Health System)
  • कृषि
  • जीवन स्तर मे सुधार लाना
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