भारतीय समाज में प्राचीन काल में किसी प्रकार का लिंग भेद नहीं था; लेकिन आगे चलकर धीरे-धीरे यहाँ के समाज में सांस्कृतिक पतन के कारण लिंग के आधार पर भेद किया जाने लगा, जिसके परिणामस्वरूप पुरुषों को महिलाओं से उच्च स्थान प्राप्त हो गया और भारत में महिलाओं का स्थान समाज में गौण हो गया। इसमें मुसलमानों के आक्रमण एवं अनेक कुप्रथाओं का भी अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
धीरे-धीरे भारतीय समाज में महिलाओं का स्थान बद से बदतर होता गया; किन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के साथ ही भारत सरकार का ध्यान महिलाओं की स्थिति सुधारने की ओर गया और इसके लिए उसने अपनी सभी पंचवर्षीय योजनाओं में महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान रखे। यही नहीं अनेक योजनाएँ एवं कानून भी महिलओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए भारतीय सरकार द्वारा समय-समय पर बनाए जाते रहे। भारत में लिंग समाज की दशा का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है—
- भारत में लैंगिक असमानता की स्थिति – विश्व की लगभग आधी आबादी महिलाओं की है, पर उन्हें पुरुषों के समान अवसर प्राप्त नहीं हैं। विश्व के गरीबों में 70% और निरक्षरों में दो-तिहाई महिलाएँ ही हैं। वे केवल 14 प्रतिशत प्रशासनिक पदों पर हैं और 10 प्रतिशत संसद, विधान सभा सदस्य हैं। कानूनी दृष्टि से यह असमानता है। उन्हें पुरुषों से अधिक समय काम करना पड़ता है तथा उनके अधिकांश कार्य की कोई कीमत ही नहीं आँकी जाती है। वस्तुतः पुरुष ही लैंगिक असमानता में प्रमुख भूमिका अदा करता है। विश्व के लगभग सभी समाजों में पुरुष जीवन के हर पहलू में अपना निर्णय सर्वोपरि रखता है जबकि पुरुष को यह जिम्मेदारी महिलाओं को भी सौंपनी चाहिए और यह भी एक जीवन साथी के रूप में, तथा अपने निजी एवं सार्वजनिक जीवन में दोनों एक समान ही समझ कर वस्तुतः ऐसा करने पर ही लैंगिक समानता में समुचित सुधार होगा और परिवार एवं सामाजिक जीवन के आनन्द में वृद्धि होगी।
- भारतीय महिलाओं में दयनीय आर्थिक स्तर— यद्यपि भारत में शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में अधिकाधिक सुविधाओं का विस्तार बहुत तेजी से हुआ है, परन्तु आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की प्रगति बहुत धीमी है। विश्व में लगभग 130 करोड़ लोग गरीबी की रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। इनमें 70 प्रतिशत महिलाएँ हैं। इसी से श्रम बाजार एवं परिवार में उनकी निम्न स्थिति का ज्ञान होता है। यद्यपि महिला साक्षरता की दर में दो-तिहाई की वृद्धि भी हुई है, किन्तु श्रमिकों में इनकी वृद्धि केवल 4 प्रतिशत ही हुई है। इसके अतिरिक्त महिलाएं बैंकों की ऋण सुविधाओं से भी पूरी तरह लाभान्वित नहीं हो पाती है, क्योंकि ऋण प्राप्ति के लिए उनके पास कोई सम्पत्ति नहीं होती है। मजदूरी देने में भी इनके साथ भेद-भाव ही किया जाता है और महिला मजदूरी एवं पुरुष मजदूरी में अन्तर रखा जाता हैं। महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा तीन-चौथाई मजदूरी ही मिल पाती है। यही कारण है कि सभी स्थानों पर महिला बेरोजगारों की संख्या भी अधिक होती है। महिला मजदूरी के सन्दर्भ में 55 देशों का सर्वेक्षण करने पर ही उपरोक्त निष्कर्ष निकाले गए। हैं। इन 55 देशों में कोई भी महिला संसद सदस्य भी नहीं हैं और यदि है तो 5 प्रतिशत से भी कम हैं। इन देशों में जिनमें सर्वेक्षण किया गया है, गरीब एवं उच्च आय दोनों प्रकार के देश सम्मिलित हैं। उनमें गरीब देश हैं—भूटान एवं इथियोपिया तथा उच्च आय वाले देश हैं— ग्रीस, कुवैत, कोरिया गणतन्त्र तथा सिंगापुर आदि ।
आज यद्यपि भारत में इस लैंगिक असमानता को दूर करने का प्रयत्न किया जा रहा है तथा श्रम के क्षेत्र में, आरक्षण के क्षेत्र में, धर्म-संस्कृति के क्षेत्र में, विवाह के क्षेत्र में सम्पत्ति की दृष्टि से तथा सामाजिक कुप्रथाओं; जैसे दहेज प्रथा, पदां प्रथा, विवाह तथ विधवा-पुनर्विवाह आदि सामाजिक व राजनैतिक क्षेत्र में स्त्री समानता पर जागरूक होका आज भारत की महिलाएँ अग्रसर होती जा रही हैं।