अध्यापक कक्षा प्रबन्धन का मुख्य घटक है। वह कक्षा प्रबन्धन में व्यवस्थापक, दार्शनिक, मार्गदर्शक तथा मित्र सभी की भूमिका निभाता है। कक्षा प्रबन्धन में अध्यापक के बहुत से अधिकार, उत्तरदायित्व, गुणवत्ता तथा नेतृत्व होते हैं।
उसको अनुशासन का उपयुक्त स्वरूप तथा शिक्षण के शिक्षण प्रविधियों का उपयोग करना पड़ता है। उसको विद्यार्थियों के साथ सम्बन्ध तथा अपने साथी अध्यापकों तथा प्रधानाचार्य के साथ सामाजिक सम्बन्ध रखने पड़ते हैं। कक्षा प्रबन्धन हेतु अध्यापक की कुछ महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निम्नलिखित हैं-
अध्यापक की भूमिका (Role as a Teacher) –
अध्यापक अपने विद्यार्थियों तथा समाज के लिए आदर्श होता है इसलिए उसको अध्यापक की तरह दिखना चाहिए तथा अध्यापक की तरह व्यवहार करना चाहिए। अध्यापक कैसे कपड़े पहनता है, वह विद्यार्थियों के साथ कैसे बातचीत करता है इस सबका प्रभाव विद्यार्थियों पर पड़ता है अध्यापक को अपने विद्यार्थियों को व्यवहार तथा उनकी सामाजिक तथा सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को जानना चाहिए।
दार्शनिक की भूमिका (Role as a Philosopher) –
अध्यापक के लिए यह आवश्यक है कि उसे विषय वस्तु का पूरा ज्ञान हो, उसको अपने पाठ्य विषय पर पूरा स्वामित्व होना चाहिए तथा अपने विषय से सम्बन्धित नवीनतम विकास के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए, उसे अपने विषय में रुचि होनी चाहिए। अनुसंधानों से ज्ञात हुआ है कि अध्यापक प्रभावशीलता हेतु अध्यापक का अपने विषय पर पूर्ण स्वामित्व-घटक एक महत्त्वपूर्ण घटक है ।
मार्गदर्शक की भूमिका (Role as a Guide) –
अध्यात्मक का कार्य विद्यार्थियों की व्यक्तिगत तथा अधिगम सम्बन्धी समस्याओं के निदान में विद्यार्थियों की सहायता करना है। वह विद्यार्थियों की समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से समाधान करने हेतु उन समस्याओं के कारणों को जानने का प्रयास करता है तथा विद्यार्थियों को उन समस्याओं के कारण से अवगत करके उनकी समस्याओं का समाधान करता है। कमजोर विद्यार्थियों के लिए शिक्षण उपचार (अनुवर्ग शिक्षण) आदि की व्यवस्था की जाती है।
अनुसंधानकर्त्ता की भूमिका (Role as a Researcher) –
अध्यापक में कक्षा प्रबन्धन से संबंधित समस्याओं का समाधान करने की योग्यता होनी चाहिए। अध्यापकों को क्रियात्मक अनुसंधान का ज्ञान तथा कौशल होना चाहिए। क्रियात्मक अनुसंधान योजना के द्वारा कक्षा प्रबन्धन की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
प्रबन्धन की भूमिका (Role as a Manager) –
अध्यापक को प्रबन्धक के कार्यों अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों का ज्ञान होना चाहिए। एक प्रबन्धक के मुख्य कार्य हैं- नियोजन, संगठन, पर्यवेक्षण, निर्देशन, संयोजन, मूल्यांकन तथा शिक्षण प्रक्रिया का नियंत्रण | अध्यापक को बहुत से दायित्वों का निर्वाह करना पड़ता है।
नेतृत्व की भूमिका (Role as a Leader)–
एक प्रबन्धक में नेतृत्व का गुण होना चाहिए। एक अध्यापक अपनी कक्षा के नेता के रूप में कार्य करता है । शिक्षा मेंनेतृत्व प्रदान करने का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है।
आधुनिक युग में बहुत से दायित्वों को पूरा करना पड़ता है क्योंकि आज समाज बहुत जटिल हो गया है। अध्यापक को कक्षा प्रबन्धन हेतु बहुत-सी भूमिकायें पूरी करनी पड़ती हैं। विचारशीलता, ईमानदारी तथा शिक्षण में सम्बद्धता अध्यापक के यह तीन महत्त्वपूर्ण गुण होते हैं जो अध्यापक रुचिपूर्ण ढंग से शिक्षण के माध्यम से कक्षा प्रबंधन में प्रगति करना है।