भाषायी और सांस्कृतिक विभिन्नता हमारे देश की अद्वितीय पहचान और ताकत है। जब किसी समाज में भाषायी विविधता होती है, तो उसे बहुभाषिक समाज कहा जाता है। इसलिए, बहुभाषिकता और भाषाई विविधता दोनों ही एक समान वास्तविकता को दर्शाते हैं। विद्यालय समाज का एक छोटा सा प्रतिनिधित्व होता है, और बहुभाषिक समाज में विद्यालयों में आने वाले बच्चों की भाषाएँ भिन्न होती हैं। यह समस्या सिर्फ बड़े शहरों में ही नहीं, बल्कि छोटे गांवों में भी होती है, जहां विभिन्न परंपराओं के बच्चे स्कूल जाते हैं। दुःखद बात यह है कि शिक्षक इस भाषाई विविधता के साथ निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होते।
एडवर्ड के अनुसार, सभी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा जो गुणात्मक या अच्छी शिक्षा कही जाती है, वह बहु-सांस्कृतिक होती है। इसे समझने के लिए, आप अपने पूर्व-अनुभवों को उपयोग में ला सकते हैं। आप अपने समुदाय की भाषा को समाज के अंदर रहते हुए समझ सकते हैं। क्या विद्यालय जाने की आवश्यकता है? ऐसा सोचने और करने से आपकी गतिविधियों को सीमित किया जाता है। यह एक सामाजिक प्रक्रिया है। हम उसी स्थान में रहकर जीवन बिताने वाले लोगों को नकारात्मक शब्दों में ‘कूप-मंडूक’ कहते हैं। इसका अर्थ है कि वे अंतर-सांस्कृतिक समझ के अभाव में हैं। ज्ञान के साथ जुड़ी यह है। अगर हम पिछले एक या दो दशकों को देखें, तो जनसंचार के माध्यम का विकास इस स्तर पर नहीं था।
समाज में, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, वहाँ कुछ विशेष व्यक्तित्व थे जो ज्ञान का स्रोत बनते थे या समाज में अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते थे। उनमें से एक वर्ग शिक्षक था। शिक्षकों के साथ, साधु-संत, व्यापारी, और अन्य प्रदेशों में श्रमिकों को भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में संलग्न थे। ये सभी व्यक्तित्व दक्ष और आधुनिक सोच वाले थे, जो अपनी समझ और अंतर्दृष्टि से उत्तरदायित्व संभालते थे। भारत में, आधुनिक हिंदी भाषा की विकास में साधु-संतों और व्यापारियों ने विशेष योगदान किया है, क्योंकि वे इस भाषा को समझने और उसमें साझा करने के लिए सक्रिय रहे हैं।
अंग्रेजी भाषा के विकास में व्यापारिक और ईसाई मिशनरियों का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस प्रक्रिया में, भाषा के विकास के साथ-साथ, सांस्कृतिक और आर्थिक समृद्धि, और राजनीतिक समझ में अंतर-भाषाई और अंतर-सांस्कृतिक अनुभवों का महत्वपूर्ण योगदान है। इस प्रक्रिया को समझना शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य भी है। ज्ञान का एक रूप अंतर-सांस्कृतिक समझ है, जिसे हम विश्वविद्यालय के रूप में भी देख सकते हैं, जहां समस्त विश्व का ज्ञान (संस्कृति, भाषा, विज्ञान) अध्ययन के लिए उपलब्ध है। संस्कृतिक और भाषाई विभिन्नता शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है, और इसलिए हमें शिक्षकों के दृष्टिकोण को समेकित रखने की जरूरत है। किसी भी एक भाषा और संस्कृति के प्रति विशेष पसंद या किसी अन्य के प्रति पूर्वाग्रह शिक्षा की मूल अवधारणा के खिलाफ हो सकता है।
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भाषाई विभिन्नता का महत्व और उसके प्रभाव को उजागर किया गया है। यह कहा गया है कि भाषाओं के अनेकता एक सार्वभौमिक सत्य है और उनके ज्ञान का महत्वपूर्ण होना उदाहरण द्वारा समझाया गया है। विद्वानों के मतानुसार, शिक्षक जो भाषाओं के प्रयोग के प्रति उदार और संवेदनशील होते हैं, वे विद्यार्थियों के भाषाई रुचि और विकास को बढ़ावा देते हैं और उनके शिक्षार्थी में सफलता की संभावना बढ़ाते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि भाषाओं के माध्यम से सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव होते हैं और उनका महत्वपूर्ण योगदान होता है।