सोहान लागे रे (शिष्ट गीत संग्रह/गोछ) – सोहन लागे रे (पुस्तक )
हिंदी अर्थ – मनभावन / सुहाना लग रहा है।
गीतकार का परिचय :
नाम – शांति भारत
उपनाम – . ‘भारत’
जन्मस्थान – चौफांद, बोकारो
जन्मतिथि – 6 अप्रैल 1965
पिता का नाम – कुजू महतो
माता का नाम – रतनी देवी
शिक्षा – B. A (1987), MBA(2010) कार्य – सुरक्षा निरीक्षक (बोकारो इस्पात कारखाना)
प्रमुख कृति –
भांड (फिंगाठी), लउतन डहर (कविता), जुगेक मरम (कविता), बेलन्दरी, फूल (एकांकी नाटक), धनेक धधइनी (लोक कथा), माटिक घारें चाँद हांसे, सात भाई एक बहिन, बरबाअड्डाक अखय बोर (संस्मरण)
ठेठ शब्दों के अर्थ –
सोहान – सुहाना/मनभावन/आनंदानुभूति
अंचरा – आंचल
सरगम – संगीत के सात स्वर
खोपा – जुड़ा बालों का
हिन्दी भावार्थ
इस गीत में झारखंड के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन बहुत सुंदर ढंग से किया गया है।
हरा-भरा वन प्रदेश धरती मां के आंचल के समान दिखाई पड़ रहा है। यह बड़ा मनभावन / सुहाना मनोहरी दृश्य है। इसे देखकर मन आनंदित हो रहा है। चारों ओर जंगल की हरियाली पसरी हुई है। कहीं झरने झर-झर कर रहे हैं। वन प्रांत, घर-आंगन चारों ओर गीत गुंजायमान है। पत्ते-पत्ते में जीवंतता है। मन के अंदर और बाहर मांदर की आवाज गूंज रही हैं। सब कुछ बड़ा सुहाना लग रहा है।
पृथ्वी मानो सोलहो श्रृंगार किए हुए हैं और संगीत के सात सुरों की वर्षा हो रही है अर्थात वातावरण संगीतमय है। बागों में बहार आ गई है और फूलों से रस की वर्षा हो रही है। सखुवे के सफेद फूल ऐसे लग रहें है मानों धरती रूपी नारी ने अपने जुड़े में सखुवे के फूलों का गुच्छा गजरे की तरह लगा रखा है। प्रकृति के इसी मनभावन दृश्य की अनुभूति होकर जब रसिक मन अखरा (सांस्कृतिक स्थल) में आता है तो उसके मन में उठ रहे प्रेम के अंकुर गीत बन जाते हैं। फिर वही गीत प्रीत के आधार बन जाते हैं या प्रीत का संवहन करते हैं। दूसरे शब्दों में ह्रदय रूपी अखाड़े में प्रेम के अंकुर फूटते है और वही गीत बन जाते है ।
रसिक जनों के मन इतना प्रेमोन्मत है कि आधी-आधी रात को कोयल की कुक सुनाई पड़ती है। धरती का यह हरा-भरा आंचल बड़ा ही सुहाना एवं मनभावन लग रहा है।
गीत – सोहान लागे रे