अन्य प्राणियों से अलग मनुष्य को सामाजिक प्राणी की संज्ञा दी जाती है। साधारणतः प्रत्येक प्राणी (पशु या मनुष्य) में शारीरिक, मानसिक, सवेगात्मक आदि विकास होते हैं, परन्तु मानव इन सबके होते हुए भी सामाजिक विकास की श्रेणी में अपने को इन सबसे पृथक करता है। मनुष्य ने जिस प्रकार समाज का विकास किया, उसी प्रकार वह समाज में रहकर अपना भी विकास करता रहा। समाजशास्त्री इस बात को मानते हैं। समाज क्योंकि व्यक्तियों के समूह से बनता है, अतः समूह मनुष्य के विकास को प्रभावित करता है।
समूह गत्यात्मकता या समूह गति विज्ञान, मनोविज्ञान में नवोदित विषय है। 19वीं शताब्दी के अन्त तक मनोविज्ञान में केवल व्यक्तिगत अनुभूतियों का ही अध्ययन किया जाता था, किन्तु बीसवीं शताब्दी में समूह के मनोविज्ञान का अध्ययन आरम्भ हुआ, जिसके अन्तर्गत समूहों के प्रकार और समूह का अध्ययन आरम्भ हुआ। कुर्ट लेविन ने समूह गत्यात्मकता शब्द को सर्वप्रथम नाम दिया। इससे समूह मनोविज्ञान का विकास हुआ। समूह मनोविज्ञान के विकास के साथ-साथ समूह मन और समूह गत्यात्मकता भी विकसित हुए हैं।
विद्यार्थी विभिन्न समूहों के साथ, समूहों के अन्तर्गत अपना जीवन बिताता है। इसके सर्वप्रमुख दो कारण है-प्रथम, वह सामाजिक प्राणी होने के कारण समूह में रहना पसन्द करता है तथा दूसरे, उसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य व्यक्तियों पर आश्रित होना पड़ता है। इसीलिए समूह में रहना आवश्यक है। बालक विभिन्न प्रकार के समूहों का सदस्य होता है, जैसे-परिवार, कक्षा समूह. क्रीड़ा समूह, मित्र मण्डली आदि।
सामाजिक समूह का अर्थ (MEANING OF SOCIAL GROUP)
सामाजिक समूह ऐसे व्यक्तियों का संग्रह है जिनके बीच किसी-न-किसी प्रकार का सम्बन्ध पाया जाता है। स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि जब दो या दो से अधिक व्यक्ति पारस्परिक रूप से एक दूसरे को प्रभावित करते हैं तथा किन्हीं सामान्य हितों के लिए एक-दूसरे के साथ अर्थपूर्ण अन्तः क्रिया के द्वारा सम्बन्ध स्थापित करते हैं तो एक समूह का निर्माण होता है।
सामाजिक समूह की परिभाषाएँ (DEFINITIONS OF SOCIAL GROUP)
शरिफ एवं शरिफ के अनुसार- समूह एक सामाजिक इकाई है, जिसका निर्माण ऐसे व्यक्तियों से होता है जिनके बीच (न्यूनाधिक) निश्चित प्रस्थिति एवं भूमिका विषयक सम्बन्ध हो तथा व्यक्ति-सदस्यों के आचरण को, कम से कम समूह के लिए महत्वपूर्ण मामलों में, नियमित करने के लिए जिसके अपने-अपने कुछ मूल्य या आदर्श नियम हो।’
A group is a social unit which consits of a number of individuals who stand in (more or less) definite status and role relationships to one another and which posseses a set of values or norms of its own regulating the behaviour of individual members at least in matters of conseuquence to the group.” Sheriff and Sheriff
मैकाइवर व पेज के अनुसार- समूह से हमारा अभिप्राय एक-दूसरे के साथ सामाजिक सम्बन्धों में आने वाले व्यक्तियों के किसी संकलन से है।’ ‘By group we mean any collection of human beings who are brought into social relationships with one another.” – Maclver & Page
बोटामोर के अनुसार- एक समूह की परिभाषा व्यक्तियों के एक ऐसे संकलन के रूप में दी जा सकती है जिसमें (i) इसके अन्तर्गत आने वाले व्यक्तियों में निश्चित सम्बन्ध होता है, और (ii) प्रत्येक समूह और उसके प्रतीक के प्रति चेतनशील रहता है।
” A social group may be defined as an aggregate of individuals in which (i) definite relations exist between the individuals comprising it, (ii) each individual in concious of the group itself and its symbols.” – Bottomore
बोगार्डस के अनुसार- एक सामाजिक समूह को दो या इससे अधिक ऐसे व्यक्तियों की एक संख्या के रूप में समझा जा सकता है, जो ध्यान को केन्द्रित करने वाले सामान्य लक्ष्यों से सम्बन्धित हो और जो समान क्रियाओं में भाग लेते हो।”
“A social group may be thought as a number of persons, two or more, who have some common objects of attention, who are stimulating to each other, who have a common loyalty and participate in similar activities.” – Bogardus
किम्बल यंग और रेमण्ड मैक के अनुसार- अन्त क्रिया करने वाले दो या दो से अधिक व्यक्ति एक समूह का निर्माण करते हैं।”
“Two or more persons in interaction constitute a group.” Kimball Young and Raymond W. Mack
सामाजिक समूह की विशेषताएँ (CHARACTERSTICS OF SOCIAL GROUP)
फिचर तथा अन्य विद्वानों ने समूह की निम्नांकित विशेषताओं का उल्लेख किया है–
1. इसके लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों का होना आवश्यक है।
2. प्रत्येक समूह का निर्माण किसी उद्देश्य के कारण होता है, इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए समु के सदस्यों में कार्य विभाजन किया जाता है।
3. किसी भी समूह का निर्माण उन्हीं व्यक्तियों द्वारा होती है जिनकी रुचि एवं हित समान हो।
4. समूह के सदस्यों में एकता या ‘हम’ भावना होना आवश्यक है।
5. समूह की सदस्यता ऐच्छिक होती है।
6. समूह में सभी व्यक्ति समान पदों पर नहीं होते। वे अलग-अलग प्रस्थिति एवं भूमिका निभाते है।
7. प्रत्येक समूह में सामूहिक आदर्श एवं प्रतिमान पाए जाते हैं।
8. समूह में थोड़ी-बहुत मात्रा में स्थायित्व भी पाया जाता है।
9. किसी भी समूह की स्थापना तभी सम्भव है जब उसके सदस्यों में समूह के उद्देश्यों, कार्य-प्रणाली, स्वार्थपूर्ति, नियमों आदि को लेकर कोई मतभेद न हो और इन बातों को लेकर उनमें समझौता हो।
10. प्रत्येक समूह का एक ढाँचा होता है, जिसमें नियम, कार्य-प्रणाली, अधिकार, कर्तव्य, पद एवं भूमिकाएँ आदि तय होती हैं।
11. समूह में व्यक्तियों के बीच सामाजिक सम्बन्धों का होना भी अनिवार्य है।
12. पारस्परिकता और जागरूकता को समूह के आवश्यक तत्व के रूप में स्वीकार किया गया है।
13. सहयोग और आदान-प्रदान से समूह के सदस्य अपने सामान्य हितों की पूर्ति कर पाते हैं।