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झारखंड का आधुनिक इतिहास | Modern History of Jharkhand Notes for JSSC and JPSC

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झारखंड का आधुनिक इतिहास (Modern History of Jharkhand)

1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद उत्तर मुगलकालीन शासक कमजोर हो चुके थे। इस समय कोकराह (छोटानागपुर खास) पर नागवंशी राजा रामशाह का शासन था। उसके बाद उसके पुत्र यदुनाथ शाह ने 1715 ई. से 1724 ई. तक शासन किया। यदुनाथ शाह ने मुगलों को कर देना बंद कर दिया था।

यदुनाथ शाह ने अपने राज्य को सुरक्षित करने के उद्देश्य से अपनी राजधानी दोइसा से पालकोट को स्थानांतरित कर दिया। यदुनाथ शाह के समय चेरी शासक रणजीत राय ने 1719 ई. में नागवंशी राज्य पर आक्रमण किया था तथा तीन वर्षों तक टोरी परगना पर अधिकार बनाए रखा था।

1734 ई. में अलीवर्दी खां और हिदायत अली खां ने चतरा पर आक्रमण कर दिया। उसने चतरा के किले को पूरी तरह ध्वस्त करवा दिया था।

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बंगाल मुगलों के पतन के दौर में सबसे समृद्ध प्रांत बन चुका था। अतः अन्य प्रमुख क्षेत्रीय दल मराठे और अंग्रेजों का ध्यान बंगाल की ओर गया।

उदय शाह प्रथम नागवंशी शासक था जिसके समय में प्रथम मराठा आक्रमण झारखंड पर हुआ था। इस प्रकार 1740 ई. तक राजनैतिक परिस्थितियाँ ऐसी बन चुकी थी कि अंग्रेजों एवं मराठों ने भी छोटानागपुर बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर अपना प्रभाव बढ़ाना प्रारंभ कर दिया था।

झारखंड क्षेत्र में मराठों के आने से मुगलों का प्रभाव समाप्त हो चुका था। मराठा सरदार पेशवा और रघुजी के बीच 31 अगस्त, 1743 ई. को एक संधि हुई, जिसमें भोंसले के नियंत्रण में बिहार सहित छोटानागपुर शामिल था।

इस कालखंड में नागवंशी शासक दर्पनाथ शाह के शासनकाल में अंग्रेजों का झारखंड में पहली बार प्रवेश हुआ था।

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पोड़हाट राजा महिपाल सिंह, जगन्नाथ सिंह नागवंशी शासक रामशाह का समकालीन था।

जगन्नाथ सिंह के दो पुत्र थे— पुरुषोत्तम सिंह तथा विक्रम सिंह ।

विक्रम सिंह ने विस्तार नीति का अनुकरण करते हुए सरायकेला राज्य की स्थापना की।

जगन्नाथ सिंह IV के समय ही पहली बार 1767 ई. में अंग्रेज सिंहभूम क्षेत्र में प्रवेश कर गए थे। सिंह वंश ने हो विद्रोहियों के खिलाफ नागवंशी शासक दर्पनाथ शाह का भी सहयोग लिया था, लेकिन हो विद्रोहियों ने उन्हें भी पराजित कर दिया था।

उत्तर मुगल काल में मानभूम क्षेत्र का झालदा पंचेत राज्य का बाराभूम मिदनापुर राज्य का तथा पाटकुम और बाघमुंडी रामगढ़ राज्य के अंग थे।

औरंगजेब के बाद संथाल परगना पर भी मुगलों का नियंत्रण कमजोर हो चुका था। शाह आलम के सत्तारूढ़ होने के बाद फर्रुखसियर मुगल बादशाह के प्रतिनिधि के रूप में 1710 ई. में राजमहल में आया था।

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बंगाल के नायब नवाब ने बहादुरशाह की मृत्यु के समय 1712 ई. में राजमहल की किलाबंदी करवाई थी। राजमहल के पास मोसुहा गांव में अलीवर्दी खां के पिता को दफन किया गया था।

1748-1750 ई. में मराठों ने राजमहल क्षेत्र में लूट-पाट किया था, जिसका नेतृत्व मीर हबीब ने किया था।

17वीं शताब्दी उत्तरार्द्ध में अंग्रेजों का प्रवेश सर्वप्रथम सिंहभूम में 1767 में हुआ, जब स्वयं जगन्नाथ सिंह चतुर्थ ने कोल्हान लड़ाकों से त्रस्त होकर अंग्रेजों की शरण ली थी। नागवंशी दीपनाथ शाह ने मराठा आतंक से मुक्ति के लिए अंग्रेजों से सहयोग लिया था।

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