कविताएँ | ||
क्र• सं• | कविता के नाम | कविता के लेखक |
1 | हामनी सब एक | स्व श्रीनिवास पानुरी |
2 | आगु कर आपन देश | सुकुमार |
3 | जय जवान जय किसान | श्री महेश गोलवार |
4 | आइझ एकाइ खोरठा | ए• के• झा |
5 | तबें हम कबि नाय |
हमनी सब एक – श्री निवास पानुरी
एक एक एक
हमनी सब एक ।
भिनु – भिनु बोली भाख,
ताव हमनी एक
भिनु भिनु भेख
एके रकम घर, दुवार
एके रकम गांव
एके रकम शादी बीहा
एके रकम भाव
एके रकम पूजा पाठ
तीरथ जातरा एक
एक एक एक
जे इंटे मन्दिर मस्जिद
ओहे ईटे चर्च
झे अरथे पुरान-
पुराने ओहे अर्थ
जैसन उपदेश भोला पादरी
वैसन पंडित देत
एक एक एक
हमनी संगे ओहे बात
दूर जतना जइर से पात
रकत दुयोक एक
एक एक एक
साधनक धरती हमनी पुरवी
सुन्दरेक सुन्दर फूल
वन्धुतेक नदी हमनी वांधी
आपन असधि कूल
निसंठाक धरती हमनी करी
शान्तिक व्यभिसेख
एक एक एक
एकेक पानी मेटवी पियास
साइतेक माटी बास
दुखेक खेते हमनी करी
मीठा आनन्देक चास
हमनी देखी एके अनेक
अनेकें देखी एक
एक एक एक
हमनी मांझे कुछ वान्दर
चीरे खातिर मायेक आँचर
उगलत जहर लागवथ आइग
रचत नरमेध
एक एक एक
हमनी सब एक
आगू करव आपन देश
आवा सभिन मिल – मेइस,
आगू करव आपन देश
हामिन छोटानागपुरेक बासी
एके ठिनेक सभिन चासा- चासी ।
छवा जुआन आवा, पढ़वा किसान आवा,
घार के घरिनी आवा, हिन्दु-मुसलमान आवा ।
आवासभिन नर-नारी, कॅघवाही कांधा जोरी
पटइबइ सभिन पारी- पारी, लह लह करतइ फुलवारी ।
आवा सभिन…..
एके गठरी हामी गीता बाइबिल – कुरान वांधब ।
जउर भइके एके हांडी आपन – आपन भात रांधब
कुच कुच आंधर, राती, बाइर देबइ परेमेक बाती,
खइबइ सभीने एके पांती, भेद-भावेक माइर देवइ लातीं।
आवा सभिन………
नारी के मान देवइ- सांझे विहान देवइ ।
एकरा उठावे खातिर – दीढगर जोगान देवइ
बिना सिरिस्टी नांञ – भाइभ देखक सभिन भाय,
घार घार जगइबइ जाई – जाई मुकुमांरेक गीत गाई गाई
आवा सभीन मिल मेइस आगू करब आपन देश ।
जय जवान जय किसान – श्री महेश गोलवार
राष्ट्रकर आन मान देश कर किसान सोब
देसक जवान कर परान हयँ किसान सोब
कामें जगत उबे मगर उबे नत्र जाने किसान
देसकर बीसी लागे, सोब जवान सोब किसान
समुन्दरक देवकर गागानिक आवाज घोर
हाड़ केपवा जाड़ कही गरमीकर ताव जोर
तरवाइरक धार साहवा जांगरा किसान कर
बरखाकर माइर सहवा गतरा किसान कर
खूगे वीरखूभे धीर इ जवान आर किसान।
सतरुक लोहू वोहाय संतरे धारायें जवान
थामें सोप सोप गतर हंसुवा हाथे किसान
खेले जवान लोहूक होली, कूटा लेखे जीव जाइन
कसट काइट काइट काल काटइत रहे किसान
चुप सधबा बोड निडरा सोभे जवान आर किसान
दुसमन कर देइख आरो उमइग उमइग उठे वीर
काया भुजक बोले कोइ पथरे कुवाँ चासा धीर
पइत सांसे देसक पूजायँ मगन रहय पारे जवान
जोजना के सुधार रूप देहे वेव्हारे किसान
देसकर नौनिहाल रहे जवान आर, किसान
बिपइत देइख संगोकर बजरतरी डांट मन
चांडय पिघलय मोम लेखे होवे लागऽहे नरम,
मुखल जगतकर पुकार सुइन के किसान भाय
राखल-रूखल धान, चाउर छोहे देहे लुटाय
हदक भीतर मांजा नरम काठुर कायायें कोमल प्रान
सतरुकर छाती रुप मांचाय चढ़ी लहुलुहान
सोभे बाखे सोने से जइसन सुरुज महान
वजर मुठाय हरक मुइठ धरी भुइ विदाइर के
हाथिक घँचाय माहुत तरी सोभे भाइ किसान
मुख सान्तिक गोड़ असल एखनिये जवान- किसान
देस हितक तरे खाड़ा मोरे लागी राइत दिन
मुंड झुकवी सारधायें हामे ताकर गोड़ ठिन
देसक पेट भोरे ले बरत जे किसान लेल
हामर पूजा लेवे जुकुर सोहे ले तो ओहे
ओखिन कर जनम साफल ओखिनेक मोरन महान
भारतीय संस्कृतिकर जे खियाल राखल करे
देसक जे लाल निते मिहनत करल करे
बहादुर वोहे वोहे जवान किसानों वहे
गियान कर विद्वान सासतरीयो आहे
वोली वहे लांलकर आइझ चढ़ल पइत जवान
जीव देलक विदेसें जे आपन भारत देस ले
पदक दे मातल नात्र जे भारत देस ले
राज भोगक गादाय सादाय काइट देलक दिन जे
केसन तेआगी रहे ई जुगेक मानुस से
हामीनो ओखर घेयाने फुइरछावा जोरे तान
जय जवान जय किसान।