कविताएँ | ||
क्र• सं• | कविता के नाम | कविता के लेखक |
1 | देसेक जुआन | विनोद कुमार |
2 | ढेशा ढेशी छोड़ | पारसनाथ महतो |
देसेक जुवान – श्री बिनोद कुमार
तोय जुवान दसेक सान
तोय सफत देसेक मान।
देसेक लेल माटी खातिर
करेंइ तोय लहुक दान।
सभेक नजर तोर दन
भाभ जुगुत ई खन
आय माटी वेहाल हथ
छउवा हियां कांद हथ
माटिक सपुत एके भाई
विकासेक लेल देहक साई।
कुटि चाइलें फुट परले
माटिक टोना टकरा करलें।
ई चाइलें भात नखो
दुसमने माटी लुइट लेतो।
चाइरो वाट ले जुट हवा,
देसेक खातिर एक गुट हवा।
बांचतो तबे माटी माञ
नाञ तो करबें खाञ – खाञ।
तोञ जुवान देसेक सान
तोत्र सपुत देसेक देसेक सान।
देसेक लेल माटी खातिर
करे तोञ लोहुक दान ।।
ढेंसा- ढेंसी छोउ – श्री पारसनाथ महतो
तोर मरेके कनवा नायँ हलऊ
सइले कमवा नी भेलई,
मन जोदी रहतलऊ,
तो कमवा हइतई,
ढैसा – ढोंसी छोड !
लेवदावेक काइन घर !
मनके कोकरावे छोड़,
मुँह का नुकावे छोड़
नाक के बिचकावे छोड़
नाक के ठरकावे छोड़
इले कोड़ी आर खुदे कोड़
फूटल आइर के जल्दी जोड़।
धान रोपेक हऊ
तो पानी रोकेहे परतऊ
फूटल हऊ आइर तो
बाँध परतऊ
हाथे कोड़ी तोरा धरेहें परतऊ
आईर कोड़वा मूसा के मोराहे परतऊ,
दोसर के नाइ ढैसाव परतऊ,
लइले कोड़ी आर खुदे कोड़
फूटल आइर के जल्दी जोड़
आचंगा चढ़ेक हऊ
तो नीसइन लगाहे परतऊ,
नाइ चढ़ेक हऊ तो,
मटियाल रह.
चढ़ती जवानी में सठियाल रह।
ढेसाव ना हो,
नीसइन आर दापइन के
आगु सरकेले हऊ तो डेग धर परतऊ
गाढ़ा – ढोंढ़ा डेगेहें परतऊ।
धुकर पुकुर कर नाई,
एक मुसुत चाइल चलेहे परतउ
काइटले बॉस छोट आर बोड़
टुटल नीसइन के जल्दी जोड़,
ढैसा – ढेसी छोड़!
हिटेंगट हउ पाकल फोर,
आसरा लगाले तोर
लटकल हऊ किसमतेक जोर।
उठाव लेबदा आर खुदे लेबद,
बोल नाई कोन्हों दोसर सबद,
खाईक हऊ पाकल,
तो गिराहे परतऊ!
हाथे लेबदा धेरेहे पर परतऊ,
ढेका पखन लिहें परतऊ,
दोसर के नाई के नाई ढेंसावे परतऊ।
उठाव लेबदा आर खुदे लेबद,
बोला नाई कोन्हों दोसर सबद ।
चेत!
चेत चेत चेत एखने चेत-
चरलऊ जाहऊ तोर पाकल खेत,
सोंधा, पइन, मंझीयसेक रेत,
बचवेक हऊ तो रले वेंत ।
तोय कमजोर नाई,
तोय कामचोर
तो डरु नाँइ,
तोय तोंय मन हरु
तोंय मारु नॉय,
तोय ही गरु ।
तोय ही गरु ।
तइनको रह नाई मन मारु,
कोडे हेतऊ किरी – बुरु
एखने कर तोय काम सुरु
खोजेक नखऊ तोके गुरु ।
बितल बाते पछतावेक छोड़
दोसर के ढेसावेक छोड़
देंसा-ढेंसी छोड़।