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बोन रक्षा जीवन रक्षा खोरठा शिष्ट गीत – सोहान लागे रे किताब (शिष्ट गीत संग्रह/गोछ) JSSC Khortha Notes

Published by: Ravi Kumar
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बोन रक्षा जीवन रक्षा

गीतकार – अनीता कुमारी, बिसुनगढ़, हजारीबाग


हिन्दी भावार्थ- बोन रक्षा जीवन रक्षा

वृक्षों की अंधाधुंध कटाई और वनों के अबाद क्षरण से उत्पन्न जीवन संकट जैसी विश्वचिंता पर आधारित गीतकार अनिता कुमारी जी का यह गीत बहुत ही प्रसांगिक और समसामयिक है ।

गीतकार ने वनों के क्षरण और उत्पन्न संकट पर अपनी चिंता व्यक्त की है और वे जन-गण का अह्वान करती है कि आइए सब मिलकर सोचते हैं कि वन कैसे बचें और इस आसन संकट से कैसे मुक्त हो। वनों के क्षरण से धरती का जलस्तर बहुत ही नीचे चला गया है।

माघ महीने में ही जेठ महीने की स्थिति सी उत्पन्न हो गई है अर्थात जो जलस्रोत जेठ में भी नहीं सुखते अब वह माघ महीने में ही सूखने लगे हैं। बादलों ने आसमान में मंडराना छोड़ दिया है, धूप इतनी तीखी पड़ती है कि तन-बदन झुलस जाता है। ये झाड़ जंगल, वन प्रांतर धरती के श्रृंगार है ।

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पेड़ पौधे हमारे जीवन के पूरक है। हमारा निश्वास कार्बन डाइऑक्साइड पेड़ पौधों का श्वास है और पेड़ पौधों का निश्वास ऑक्सीजन हमारी प्राणवायु है। ऐसे में वृक्षों के न रहने से श्रृष्टि कैसे बचेगी। ये हरे भरे वन मां के घुंघट है। भाइयों, मां के घुंघट मत उघाड़ो। इतना ही नहीं विविध प्रकार के वन्य पशु पक्षियों का निवास भी तो वन ही है।

यदि वन ही उजड़ जाएंगे तो वे बेचारे निमुहें जीव-जंतु कहां जाएंगे, कहां पंख पसार कर मुक्त उड़ान भरेंगे, घोसला कहाँ बनायेगें। घने छांवो की तलाश में उनकी जीवन लीला समाप्त हो जाएगी।

अतः भाइयों आइए हम सब मिलकर विचार करते हैं। विश्वचिंता की विषय वनों के क्षरण और आसन जीवन संकट पर चिंता विषयक यह गीत अनूठा गीत है।

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गीत – बोन रक्षा जीवन रक्षा
कइसे बाँचतइ बोन-झार
समिन मिली करा अब बिचार… ए भाइ!
कइसे बाँचतइ बोन झार
गाँव-गाँवे करा सब परचार… ए भाइ!
बोन हय बचावे के दरकार… ए भाइ!
पानि’क सोवा हेठ गेलइ, माघ मास’ ही जेठ भेलई  ।
बदरी आब नाञ मँडराइ, आदरों अब हेराइ गेलई  ।
तीख रउद झोला अपार… ए भाइ!
सब मिली करा आब बिचार… ए भाइ!
कइसें बाँचतइ बोन झार… ए भाइ!
झूर-झार गाछ-पात, धरतीक सिंगार हइ,
गाछेक हवा रहल से, जीवन अपार हइ,
हवा बिनु साँस ने संसार… ए भाइ!
माँत्र के घुघा नाञ उघार… ए भाइ!
कइसे बाँचतइ बोन झार… ए भाइ!
किना खड़ता हाँथी- बाँदर, कहाँ जड़ता खेरहा सियार
पंछी कहाँ खोंधा करता, कहाँ उड़ता पाँइख पसाइर
बिरिष्ठ खोजइत लेता जान माइर… ए भाइ!
निमुँहाक घार नाम उजार.. ए भाइ! कइसे बाँचतइ बोन झार… ए भाइ!
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Ravi Kumar is a content creator at Sarkari Diary, dedicated to providing clear and helpful study material for B.Ed students across India.

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