Home / Jharkhand / History of Jharkhand / Ancient history of Jharkhand / झारखंड का प्राचीन इतिहास | Ancient History of Jharkhand Notes for JSSC and JPSC

झारखंड का प्राचीन इतिहास | Ancient History of Jharkhand Notes for JSSC and JPSC

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

Ancient history of Jharkhand Notes for JSSC and JPSC (झारखंड का प्राचीन इतिहास)

प्राचीन काल में छोटानागपुर एक पूर्ण वन क्षेत्र था। असुर, खड़िया और बिरहोर यहाँ की प्राचीन जनजातियाँ थीं। इसके बाद कोरबा जनजाति तथा कोरबा के बाद मुंडा, उरांव, हो आदि जनजातियाँ आकर झारखंड क्षेत्र में बसीं। इनके बाद झारखंड में बसने वाली जनजातियों में चेरो, खरवार, भूमिज तथा संथाल थे।

असुर झारखंड में निवास करने वाली सबसे प्राचीन आदिम जनजाति थी।

  • लोहे को गलाकर आजीविका चलाने वाली असुर जनजाति ने नवपाषाण काल से लेकर उत्तर- वैदिक काल तक छोटानागपुर क्षेत्र में प्रवास किया।
  • ये भवन निर्माण कला में भी निपुण थे। संभवतः वर्तमान की लोहार जनजाति इन्हीं के वंशज हैं। ऐसा माना जाता है, कि वैदिक आर्यों का विरोध करने वाले नाग असुरों की ही शाखा थे।
  • यह माना जाता कि मुंडा लोगों ने ही झारखंड की असुर संस्कृति को नष्ट किया था। ये लोग रोहतासगढ़ होते हुए छोटानागपुर में बस गए तथा प्रथम सदी में ऐतिहासिक नागवंश की स्थापना में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

 

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

मुंडा जनजाति के बारे में यह भी माना जाता है, कि ये लोग तिब्बत से आए थे । मुंडा जरासंध से संबंधित थे तथा महाभारत युद्ध में कौरव सेना में सम्मिलित थे।

  • जब चेरों, उरांव और खरवार द्वारा दक्षिणी बिहार से इन्हें बाहर कर दिया गया था, तब ये छोटानागपुर क्षेत्र में आकर बसे।
  • प्रारम्भ में इनका नेतृत्व मदरा मुंडा द्वारा किया जा रहा था।
  • आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार मदरा मुंडा ने सुतिया पाहन नामक व्यक्ति को मुंडा जनजाति का नेता नियुक्त कर दिया था। सुतिया पाहन ने अपने नाम पर ही इस क्षेत्र का नाम सुतिया नागखंड रखा था तथा मुंडाओं ने नागवंश की स्थापना में सहयोग किया था।
Also Read:  झारखण्ड विधान सभा की 23वीं वर्षगांठ (23rd anniversary of Jharkhand Legislative Assembly)

 

उरांव जनजाति जिनका संबंध द्रविड़ से माना जाता है

  • दक्षिण भारत से आकर झारखंड में निवास करने वाली जनजाति है। ऐसा माना जाता है, कि उरांव दक्षिण भारत से उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर प्रवासन करते हुए सर्वप्रथम रोहतास के पहाड़ी क्षेत्रों में आकर बसे थे।
  • इनकी भाषा कुडुख और कन्नड़ में समानता पाई जाती है। उरांव परंपरा के अनुसार ये लोग स्वयं को खरख का वंशज मानते हैं, जिसके कारण ये बाद में करूख कहलाने लगे

 

झारखंड-वैदिक युग

ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार वैदिक काल में चेरो, सबर आदि जनजातियाँ मगध क्षेत्र में निवास करती थी। लेकिन जब उत्तर वैदिक काल में कीकट (मगध) क्षेत्र तक आय का विस्तार हुआ तब ये लोग छोटानागपुर की ओर प्रस्थान कर गए।

  • अमरनाथ दास की पुस्तक, अमरकोष में चाईबासा शहर के लिए श्रीवास शहर नाम का उल्लेख किया गया है।

 

झारखंड – बौद्ध धर्म

⁕ बौद्ध धर्म का झारखंड क्षेत्र से गहरा संबंध था।

  • इसका प्रमाण पलामू के मूर्तियाँ गांव से प्राप्त सिंह-मस्तक है।
  • धनबाद जिले में करूआ ग्राम का बौद्ध स्तूप, स्वर्णरेखा नदी के तट पर डाल्मी एवं कंसाई नदी के तट पर बुद्धपुर में बौद्ध धर्म से संबंधित अनेक अवशेष पाए गए हैं।

 

⁕ झारखंड और पश्चिम बंगाल के सीमा क्षेत्रों पर लाथनागरी पहाड़ी में बौद्ध खंडहर है।

  • चैत्य बौद्ध धर्म का पवित्र पूजा स्थल होता है।
  • 1919 ई. में ए. शास्त्री ने बाग में काले चिकने पत्थर की बुद्ध मूर्ति की खोज की थी, जिसकी दोनों भुजाएं टूटी हुई हैं।
  • इसी स्थल से एक अष्टभुजी देवी की प्रतिमा प्राप्त हुई है।

⁕ खूंटी जिले के बेलवादाग ग्राम से बौद्ध बिहार का अवशेष प्राप्त हुआ है। यहाँ से प्राप्त ईंट साँची के स्तूप में प्रयुक्त ईंट एवं मौर्यकालीन ईटों के समान है।

Also Read:  Jharkhand E-Stamp Certificate 2024

⁕ चतरा जिले के ईटखोरी में भद्रकाली मंदिर परिसर से बुद्ध की चार प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं।

  • ये प्रतिमाएं सातवीं सदी की हैं तथा विभिन्न मुद्राओं में हैं।
  • ये मूर्त्तियां बालू पत्थर की हैं, जो हर्षवर्द्धनकालीन प्रतीत हैं।

 

⁕ कुषाण वंश के सर्वश्रेष्ठ शासक कनिष्क के सिक्के राँची के आस-पास के क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं।

⁕ बौद्ध धर्म के संरक्षक शासकों हर्षवर्द्धन एवं पाल वंश के समय झारखंड क्षेत्र पर बौद्ध धर्म के प्रभाव में वृद्धि हुई। पालवंश के शासकों गोपाल, धर्मपाल, देवपाल आदि ने बौद्धधर्म की शाखा वज्रयान को अधिक प्रश्रय दिया, जिसका प्रभाव भी झारखंड पर पड़ा।

 

 

झारखंड – जैन धर्म

  • प्राचीन काल में मानभूम जैन सभ्यता और संस्कृति का केंद्र था।
  • झारखंड की पार्श्वनाथ पहाड़ी तथा पलामू जिले के हनुमांड़ गांव स्थित प्रमुख जैन स्थलों से जैन धर्म के प्रसार का साक्ष्य मिलता है।
  • साहित्यिक स्रोतों में ‘आचारांगसूत्र‘ तथा कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र‘ में भी झारखंड में जैन धर्म के प्रभाव का विवरण मिलता है।
  • जैन साहित्य के अनुसार जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए हैं जिनमें 20 तीर्थंकरों अर्थात् जैनधर्म के सर्वोच्च गुरुओं को मोक्ष की प्राप्ति पारसनाथ की पहाड़ी (पार्श्वनाथ) पर हुई थी।
  • जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का भी महाप्रयाण इसी पहाड़ी पर हुआ था जिसके कारण इस पहाड़ी को ‘पार्श्वनाथ’ के नाम से भी जाना जाता है, जो जैनियों का प्रमुख तीर्थस्थल है।
  • पारसनाथ की पहाड़ी, जिसे सम्मेद शिखरजी भी कहते हैं, वह गिरिडीह जिले में स्थित है। यह स्थान मधुवन के नाम से भी जाना जाता है।
  • पारसनाथ पहाड़ी को जैन धर्म का मक्का कहा जाता है।
  • कोल्हुआ पहाड़ (चतरा), इसका संबंध बौद्ध एंव जैन धर्म दोनों से है। यहाँ पर 10 वे तीर्थंकर शीतलनाथ को ज्ञान की प्राप्ति हुई है। यहाँ पर नौ जैन तीर्थंकरों की प्रतिमा है।
  • इतिहासकार वी. बॉल ने अपनी पुस्तक “जंगल लाईफ इन इंडिया’ में सिंहभूम क्षेत्र के आदि निवासियों के लिए ‘सरक’ शब्द का प्रयोग किया है।
  • सरक शब्द संभवत: जैन धर्म में गृहस्थ जैनियों के लिए प्रयोग किए जाने वाले ‘ श्रावक‘ शब्द से बना है।
Also Read:  Jharkhand Police Admit Card 2024: JSSC Constable Exam Date and Paper Pattern Details

 

झारखंड- मगध साम्राज्य

  • गौतम बुद्ध के समय छठी से पांचवीं सदी ई पूर्व में महाजनपदों की स्थापना हो चुकी थी।
  • सोलह महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली महाजनपद मगध के लिए “कीकट” शब्द का प्रयोग किया गया है।

झारखंड- मौर्य साम्राज्य

  • इतिहासकार आर. रामशास्त्री के अनुसार झारखंड क्षेत्र चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में शामिल था।
  • चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में सेना के प्रयोग हेतु झारखंड से हाथी मंगाया जाता था।
  • परोक्ष अथवा प्रत्यक्ष रूप से इस क्षेत्र में निवास करने वाली आटवी जनजातियों पर अशोक का नियंत्रण स्थापित था ।
  • अशोक के 13वें शिलालेख में आटविक नाम का उल्लेख हुआ है।
  • अशोक ने झारखंड में बौध धर्म के प्रचार हेतु रक्षित नामक अधिकारी को भेजा था।
  • कौटिल्य ने अपनी रचना ‘अर्थशास्त्र‘ में झारखंड प्रदेश के लिए कुकुट (कुकुटदेश) शब्द का प्रयोग किया है। अर्थशास्त्र में इन्द्रवाहक नदी से हीरा प्राप्त होने की चर्चा है। इन्द्रवाहक संभवतः ईब एवं शंख नदी का घाटी क्षेत्र था ।

 

झारखंड- उत्तर मौर्यकाल

  • झारखंड क्षेत्र से उत्तर मौर्यकालीन शासकों इंडोग्रीक, सिथियन, कुषाण तथा सिंहभूम से रोमन सम्राट के सिक्के भी प्राप्त हुए हैं।
  • चाईबासा क्षेत्र से इंडोसिथियन तथा राँची से कुषाणकालीन सिक्के प्राप्त हुए हैं, जिस पर किसी शासक का उल्लेख नहीं है।

 

गुप्त काल

  • गुप्त काल में अभूतपूर्व सांस्कृतिक विकास हुआ। अतः इस काल को भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग कहा जाता है। हजारीबाग के मदुही पहाड़ से गुप्तकालीन पत्थरों को काटकर निर्मित मंदिर प्राप्त हुए हैं। झारखंड में मुण्डा, पाहन, महतो तथा भंडारी प्रथा गुप्तकालीन की देन है।
  • गुप्तवंश के शासक समुद्रगुप्त ने इस क्षेत्र पर अपना विजय अभियान चलाया था। समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित ‘प्रयाग-प्रशस्ति’ में छोटानागपुर क्षेत्र के लिए ‘मुरूण्ड देश’ शब्द का प्रयोग हुआ है।

Leave a comment