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Medieval History of Jharkhand – Mughal Dynasty Notes for JSSC and JPSC ।। झारखंड का मध्यकालीन इतिहास – मुगल वंश

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Medieval History of Jharkhand – Mughal Dynasty (झारखंड का मध्यकालीन इतिहास – मुगल वंश)

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बी. बीरोत्तम की पुस्तक ‘द नागवंशी एंड द चेरोज’ के अनुसार चेरोवंश का संस्थापक भगवत राय था, जबकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि महारथ चेरो और शेर खां के बीच पहले ही संघर्ष हो चुका था।

महारथ चेरो का दमन करने हेतु शेरशाह ने अपने एक सेनापति खवांस खां को भेजा था। खवांस खा ने दरिया खां के सहयोग से न केवल 1538 ई. में महारथ चेरो को पराजित किया था, बल्कि श्याम सुंदर नामक एक सफेद हाथी को भी पकड़कर शेर खां के पास ले गया था। शेरशाह ने हुमायूं को न केवल पराजित किया बल्कि तेलियागढ़ किला के साथ-साथ संपूर्ण राजमहल क्षेत्र पर भी अधिकार कर लिया था।

चेरो वंश के संस्थापक भगवत राय ने 1613 ई. से 1630 ई. तक शासन किया था। इसके बाद अनंत राय ने 1630-61 ई. तक तथा मेदनीराय ने 1662-1674 ई. तक शासन किया। मेदनी राय ने अपने 13 वर्ष के अल्प शासन काल में ही सर्वाधिक ख्याति अर्जित की थी । वह न्यायप्रिय राजा था।

मेदनीराय के बाद प्रताप राय ने 1675 से 1681 ई. तक शासन किया तथा इसके शासन काल में पलामू में नए किले का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ था।
अकबर के शासनकाल में अफगानों ने इस क्षेत्र को अपनी शरणस्थली बना लिया था तथा मुगलों को परेशान कर दिया था। इन विद्रोहियों में गाजी एवं हाजी बंधु, जुनैद तथा बयाजीत प्रमुख थे।

मुगल सेना अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना और जुनैद कर्रानी के बीच 23 मार्च, 1576 ई. को टकोराई की लड़ाई हुई जिसमें जुनैद पराजित हुआ।

कबरनामा एवं ‘मासिर- उल-उमरा’ के अनुसार 1585 ई. में मुगल आक्रमण के समय नागवंश का शासक मधुकरण शाह अथवा मधु सिंह था।

छोटानागपुर के नागवंशी राजा मधुकरण शाह ने मुगल अधीनता स्वीकार नहीं की थी। अकबर ने सेनापति शाहबाज खां के नेतृत्व में 1585 ई. में नागवंश पर आक्रमण कर उसे पराजित किया। कोकराह के अधीनस्थ राज्य रामगढ़ पर भी मुगलों ने अधिकार कर लिया था।

जब सन् 1592 में उड़ीसा के अफगान शासक कुतलुग खां के विरुद्ध मुगल सेना ने आक्रमण किया था, तब मधुकरण शाह ने मुगल सेना की ओर से युसुफ चक कश्मीरी के नेतृत्व में अफगानों के खिलाफ युद्ध लड़ा था।

सिंहभूम क्षेत्र में भी मुगलों का प्रवेश अकबर के समय ही हुआ था। अकबर के समय पोरहाट में सिंह वंश के राजा लक्ष्मी नारायण सिंह, नरपत सिंह प्रथम, कामेश्वर सिंह तथा रणजीत सिंह थे ।

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‘आईने अकबरी’ के अनुसा रणजीत सिंह ने मुगल अधीनता स्वीकार कर अकबर के सेनापति मान सिंह के अंगरक्षक दल में शामिल हो गया था।

मानसिंह ने 1575 में ही हजारीबाग का रामपुर क्षेत्र और दो परगना छह तथा चम्पा, जो दक्षिण बिहार में थे, उन पर भी अधिकार कर लिया था। मानसिंह ने परा एवं तेलकुप्पी के मंदिरों का जीर्णोद्धार तथा पंचेत किले का निर्माण करवाया था।

पलामू का चेरो राज्य इस समय तक अकबर के नियंत्रण से बाहर था। चेरो राज्य पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए अकबर ने मानसिंह के नेतृत्व में सेना भेजी थी । पलामू पर आक्रमण के लिए मानसिंह ने रोहतासगढ़ में एक किले का निर्माण करवाया था।

मानसिंह के आक्रमण के समय पलामू का राजा रणपत चेरो था। मानसिंह ने जब पटना से पलामू के चेरो पर आक्रमण किया उस दौरान रामगढ़ के राजा जो घटवाल के रूप में घाटों एवं मार्गों की सुरक्षा करते थे, उन्होंने चेरो का साथ दिया था। सन् 1605 में अकबर की मृत्यु होने पर चेरो के राजा ने चेरो राज्य को फिर से स्वतन्त्र करा लिया।

संथाल परगना (राजमहल) क्षेत्र में अकबर ने खान-ए-जहाँ तथा टोडरमल के नेतृत्व में तेलियाढ़ी पर अधिकार कर लिया। बंगाल विजय के बाद मानसिंह ने 1592 ई. में राजमहल को बंगाल की राजधानी के रूप में स्थापित किया था तथा नए नगर का नाम अकबरनगर रखा था।

शंख नदी में पाए जाने वाले हीरों ने जहाँगीर का भी ध्यान झारखंड की ओर खींचा था। टॉलमी ने ‘एडमास’ नदी का वर्णन किया है। ग्रीक भाषा में एडमास का अर्थ हीरा होता है, जो संभवतः शंख नदी थी।

जहाँगीर के समय झारखंड में कोकराह क्षेत्र में नागवंशी शासक दुर्जनशाल शासन कर रहा था। इसने अकबर की मृत्यु के बाद मुगलों की अधीनता को मानने से इंकार कर दिया था तथा मालगुजारी भी देना बंद कर दिया था।

दुर्जनसाल हीरों के राजा के रूप में प्रसिद्ध था।

जहाँगीर ने 1612 ई. में जफर खां को बिहार का सूबेदार बनाया था।

सन् 1615 में जहाँगीर ने बिहार के सूबेदार के पद पर इब्राहिम खां को नियुक्त किया और उसे छोटानागपुर पर आक्रमण करने तथा हीरा की खानों पर अधिकार करने का आदेश दिया। मुगल सेना ने आक्रमण कर युद्ध में दुर्जनसाल को बुरी तरह पराजित किया। दुर्जनसाल को बंदी बनाकर दिल्ली लाया गया और जहाँगीर ने उसे ग्वालियर के किले में 12 वर्षों तक कैद रखा।

1615 में इब्राहिम खां को कोकराह क्षेत्र विजय के कारण जहाँगीर ने चार हजार की मनसबदारी तथा फाथजंग की उपाधि प्रदान की थी। शंख नदी में पाए जाने वाले हीरों का विवरण स्वयं जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुके-जहाँगीरी’ में किया है।

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शंख नदी से प्राप्त हीरों में से एक हीरा बैगनी रंग का था जिसकी शुद्धता को पहचानने के लिए दुर्जनसाल को आंमत्रित किया गया था। दुर्जनसाल की हीरा पहचानने की क्षमता से प्रभावित होकर जहाँगीर ने उसे कैद से मुक्त कर उसका राज्य वापस कर दिया तथा उसने दुर्जनसाल को शाह की उपाधि दी। दुर्जनसाल ने भी छह हजार रुपया वार्षिक कर देना स्वीकार किया ।

जहाँगीर के समय चेरो राजा अनंत राय था, जो भागवत राय का उत्तराधिकारी था। जहाँगीर ने अफजल खां एवं इबादत खां को पलामू पर आक्रमण करने का आदेश दिया, लेकिन अभियान असफल रहा। अनंत राय सदैव मुगलों का घोर विरोध करता रहा।

1612 ई. में उसकी मृत्यु के बाद चेरो का अगला शासक सहबल राय एक शक्तिशाली राजा हुआ, वह भी मुगल विरोधी था। उसने चौपारण तक अपना राज्य विस्तार कर लिया था।

सहबल राय ने जब सड़क-ए-आजम पर मुगल काफिलों को लूटना प्रारंभ किया तब चेरो परम्परा के अनुसार 1613 ई. में जहाँगीर के सैनिकों ने सहबल राय पर आक्रमण कर दिया और उसे बन्दी बनाकर दिल्ली ले गए।

दिल्ली में जहाँगीर ने सहबल राय को बाघ से लड़ाया था जिसमें उसकी मृत्यु हो गई थी।

1622 ई. में शाहजहाँ ने विद्रोह कर राजमहल क्षेत्र पर अधिकार कर लिया था।

दुर्जनसाल जब जहाँगीर की कैद से लौटकर वापस आया था तब उसने सुरक्षित क्षेत्र दोईसा में अपनी राजधानी बनाई थी। उसने दोईसा में नवरतनगढ़ नामक भव्य इमारत का निर्माण करवाया था। नवरतनगढ़ का प्रयोग संभवतः दुर्जनसाल झरोखा दर्शन के लिए करता होगा। दोईसा में निर्मित स्थापत्य कला पर मुगल कला का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।

मुगल शासक शाहजहाँ के समय प्रताप राय चेरो शासक था जो सहबल राय का उत्तराधिकारी था। प्रताप राय ने चेरो राज्य को अत्यंत शक्तिशाली बना दिया था ।

शाहजहाँ के शासन काल के अंतिम समय में मेदिनी राय पलामू का चेरो राजा बना था। चेरो परम्परा के अनुसार इसका शासनकाल 1662 से 1674 ई. तक था। मेदिनी राय ने अपने पूर्वजों की भांति मुगल सत्ता को अस्वीकार कर मुगल विरोध की नीति जारी रखी तथा कर देना बन्द कर दिया था।

5 मई, 1660 को दाऊद खां ने गया (बिहार) जिले के इमामगंज होते हुए पलामू पर आक्रमण करके कोठी का किला अपने अधिकार में ले लिया तथा 3 जून, 1660 ई. को कुंडा (पलामू) के किले को ध्वस्त कर दिया।

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मुगलों ने पलामू को अपने अधिकार में ले लिया। पलामू विजय के उपलक्ष्य में दाऊद खां ने 1662 ई. में पलामू के पुराने किले में मस्जिद का निर्माण करवाया था। दाऊद खां वापस लौटते समय पलामू किला स्थित सिंह दरवाजे को उठाकर ले गया, जिसे दाऊदनगर के गढ़ में लगवाया।

मनकली खां को पलामू से वापस जाते ही मेदिनी राय ने पलामू पर पुनः अधिकार कर लिया। मेदिनी राय इतिहास में एक न्यायी राजा के रूप में प्रसिद्ध है। सन् 1674 तक मेदिनी राय ने पुनः अपने राज्य को सशक्त और समृद्ध बना दिया था।

मेदनी राय का शासनकाल चेरो वंश का स्वर्णयुग कहा जाता है। उसने अपनी प्रजा से कभी कर नहीं वसूला था। 1674 ई. में मेदनी राय की मृत्यु के बाद उसका उत्तराधिकारी रुद्र राय हुआ।

औरंगजेब के समय रघुनाथ शाह दुर्जनसाल के बाद उत्तराधिकारी बना, जो लगभग आधी सदी तक छोटानागपुर का शासक रहा।

रघुनाथ शाह, जिन्हें नागवंशी परंपरा में एनीनाथ ठाकुर कहा जाता है, ने अनेक सुप्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण इन्होंने करवाया था। रघुनाथ शाह का शासनकाल धर्म और आस्था का काल था। राँची स्थित तीन प्राचीन मंदिर दोईसा (धुर्वा ) का जगन्नाथ मंदिर, चुटिया का राम मंदिर ।

चेरो परंपरा के अनुसार चेरो शासक मेदनी राय ने रघुनाथ शाह के समय नागवंश की राजधानी दोईसा पर आक्रमण किया था। मेदिनी राय दोईसा से पत्थर का एक विशाल दरवाजा उठाकर ले गया था, जिसे उसने पलामू के किले में स्थापित किया था, जो वर्तमान में नागपुर दरवाजा के नाम से प्रसिद्ध है।

सिंहभूम क्षेत्र के सिंह वंश ने शाहजहाँ को वार्षिक कर देना स्वीकार किया था। पंचेत राज के शासक बीर नारायण सिंह ने भी मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी तथा 700 घुड़सवार सैनिक मुगलों की सेना में भेजे थे। राजमहल में मुगलों ने एक शाही टकसाल भी स्थापित किया था।

दलेल सिंह 1667 ई. में रामगढ़ राज्य का शासक बना था, जिसने मुस्लिम आक्रमण के भय से रामगढ़ राज्य की राजधानी बादम के स्थान पर रामगढ़ स्थानांतरित कर दी थी।

औरंगजेब के समय सिंहभूम क्षेत्र में पोड़हाट का राजा महिपाल सिंह था, जो मुगलों से स्वंतत्र था, जबकि ढालभूमगढ़ का राजा चन्द्रशेखर ढाल पर मुगलों ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया था।

1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही मुगलवंश का पतन प्रारंभ हो गया, झारखंड क्षेत्र पर उनका नियंत्रण समाप्त हो चुका था तथा अन्य दूसरी शक्तियाँ मराठा, अंग्रेज आदि इस क्षेत्र पर प्रभाव फैलाने लगे थे।

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