भाषा विकास में विविधता के कारक by Sarkari Diary

बालक के उपार्जित भाषायी स्तर में विविधता के कई कारक हो सकते हैं। इनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं-

  1. सामान्य संज्ञानात्मक शक्तियाँ- भाषा उपार्जन में भाषा के प्रयोग एवं व्यवहार की कुशलता का सम्बन्ध सामान्य संज्ञानात्मक शक्तियों यथा-बुद्धि, स्मृति चिन्तन, अवधान आदि से जोड़ा जाता है। भाषा अधिगम सम्बन्धी विविध अनुसंधानों के द्वारा भाषा की विकास की त्वरित गति एवं भाषा अधिगम की योग्यता से सम्बन्ध प्रमाणित किया गया है। बालक के भाषा की गति में पर्याप्त विविधता पायी जाती है। इस विविधता एवं भिन्नता का कारण संज्ञानात्मक शक्तियों के विकास से सम्बन्धित भिन्नता है।
  2. पर्यावरणगत विविधता- भाषा उपार्जन में निकटवर्ती पर्यावरण की विशेष भूमिका है पर्यावरण- की उत्कृष्टता भाषायी विकास की उत्कृष्टता का द्योतक मानी जा सकती है। भाषा उपार्जन की गति का अध्ययन सामान्यतः सामाजिक स्तम्भ के सन्दर्भ में किया जाता रहा है। वैसे भाषा विकास सामाजिक स्तर का समानुपातिक परिणाम है समाजशास्त्रियों के मत में बालकों में केवल भाषायी प्रयोगों की भिन्नता है, भाषा व्यवहार सन्दर्भों के सन्दर्भ में भी उनकी विशेष गति नहीं होती। निष्कर्ष यह है कि बालक जिस प्रकार भाषा का प्रयोग करना सीखता है उस पर पर्यावरण का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है।
  1. व्यक्तिगत भिन्नताएँ – भाषायी उपार्जन के क्रम में व्यक्तिगत भिन्नताएँ दृष्टिगत होती हैं भाषा का उपार्जन मानव शिशु विशिष्ट व्यक्तित्व से संयुक्त प्राणी है। अतः भाषा विकास में व्यक्तिगत भिन्नता का होना स्वाभाविक है। भाषायी विकासगत भिन्नता का अध्ययन मुख्यतः ध्वनि तथा व्याकरणिक व्यवस्था से सम्बन्धित विकास के सन्दर्भ में किया गया है। अध्ययन के आधार पर ध्वनि विकास की गति और समय में पर्याप्त भिन्नता पायी गयी है, परन्तु ध्वनि कोटियों के अनुक्रम और विकास कालक्रम में पर्याप्त समानता दृष्टिगत हुयी।

संक्षेप में भाषा उपार्जन में बालक के भाषायी नियन्त्रण तथा भाषा पर अधिकार में भिन्नताएँ दृष्टिगत होती हैं। वयस्क भाषायी प्रारूप के उपार्जन में भाषा उपार्जन के विविध रूप दृष्टिगत होते हैं। केवल कुछ पिछड़े हुए लोग ही भाषा की आधारभूत व्याख्या व्याकरणिक व्यवस्था पर अधिकार प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो पाते, परन्तु इसका सम्बन्ध बुद्धि और सामाजिक स्तर से जोड़ना उचित नहीं है। भाषा के समुचित उपयोग की योग्यता में भी अन्तर पाया जाता है। यह अन्तर आयुगत, बुद्धिगत एवं व्यक्तिगत हो सकता है। बालक का भाषायी विकास सामान्यतः उसके अन्य प्रकार के विकासों का सहगामी होता है।

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