पारिवारिक संबंध में ह्रास पर प्रकाश डालें।

व्यक्तियों के सम्बन्ध स्थिर, कम और परिवर्तनशील अधिक होते हैं। दैनिक जीवन के अनुभवों में देखा जा सकता है कि लोगों में परिवर्तन के साथ-साथ उनके सम्बन्धों में भी परिवर्तन होते हैं। बहुधा पारिवारिक सम्बन्धों में परिवर्तन खराब की दिशा में होते हैं। बहुधा देखा गया है कि परिवार में जब किसी बालक का जन्म होता है तब सम्बन्धों में प्रगति मधुर की दिशा में होती है, परन्तु एक साल बाद सम्बन्धों में अवनति प्रारम्भ हो जाती है। यह भी देखा गया है कि जब बालक अपना अधिकांश समय परिवार से बाहर व्यतीत करने लग जाता है तब उसमें नये मूल्यों और नई रुचियों का विकास प्रारम्भ होता है। ये नई रुचियाँ और मूल्य भी पारिवारिक सम्बन्धों को बिगाड़ने में कभी-कभी सहायक होते हैं। लगभग प्रत्येक परिवार के पारिवारिक सम्बन्धों में बिगाड़ हो सकता है। पारिवारिक सम्बन्धों में आने वाला हास किन कारणों से हो रहा है? इसका अध्ययन करके पारिवारिक सम्बन्धों में ह्रास के सम्बन्ध में पूर्व कथन किया जा सकता है।

पारिवारिक सम्बन्धों के ह्रास के कुछ प्रमुख कारक निम्न प्रकार से हैं-

(1) माता-पिता और पुत्र के दुर्बल सम्बन्ध के कारण भी पारिवारिक सम्बन्धों में हास होता है बालकों में विकास तीव्र गति से होता है। माता-पिता को इस विकास की गति को पहचानना चाहिए और बालका के इन नये परिवर्तनों के साथ समायोजित करना चाहिए अन्यथा उनसे सम्बन्धों में तनाव और ह्रास की सम्भावना बढ़ जाती है। प्रत्येक बालक में जैसे-जैसे विकास और वृद्धि होती जाती है, वह स्वतन्त्रता अधिक और अधिक चाहता है। माता-पिता यदि बालकों को उनकी आवश्यकतानुसार सुविधा नहीं देते हैं तो उनके सम्बन्धों में ह्रास की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।

(2) पति-पत्नी के दोषपूर्ण सम्बन्धों के कारण भी पारिवारिक सम्बन्धों में ह्रास हो सकता है। अध्ययनों में देखा गया है कि नए बच्चों के उत्पन्न होने के बाद पति-पत्नी और परिवार के सदस्यों के बीच सम्बन्धों में परिवर्तन अवश्य होते हैं। पति-पत्नी को पिता और माता की भूमिका तो क्रमशः मिलती ही है और साथ ही साथ उनमें एक नए संवेग का संचार होता है जिससे वह माता-पिता बनकर सुख का अनुभव करते हैं। पति-पत्नी में से यदि कोई भी अपनी नई भूमिका से सन्तुष्ट नहीं है तो निश्चय ही पति और पत्नी के सम्बन्धों में ह्रास हो सकता है। संरक्षक लोगों का यह अधिगम अनेक अनुभवों, परम्पराओं और उनके संरक्षकों के शिक्षण के परिणामस्वरूप चलता है। अध्ययनों में यह देखा गया है कि अधिक आयु वाले संरक्षकों की अपेक्षा कम आयु वाले संरक्षक बालक के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह ठीक प्रकार से नहीं करते हैं। इसका मुख्य कारण अपने नये उत्तरदायित्वों के साथ समायोजन न कर पाना है।

(3) पारिवारिक प्रतिमानों में परिवर्तन के कारण भी पारिवारिक सम्बन्धों में परिवर्तन हो सकता है। इन परिवर्तनों के उस समय होने की सम्भावना अधिक बढ़ जाती है जब नए पारिवारिक प्रतिमानों के साथ परिवार का सदस्य या कोई भी सदस्य समायोजन नहीं करता है तो पारिवारिक सम्बन्धों में ह्रास होने लग जाता है। यदि कोई रिश्तेदार कई महीनों के लिए परिवार में आ जाए, परिवार में किसी बड़े-बूढ़े की मृत्यु हो जाए तो इन परिस्थितियों में पारिवारिक प्रतिमानों में परिवर्तन अवश्य होता है

(4) भाई-बहनों के सम्बन्धों में परिवर्तन के कारण भी पारिवारिक सम्बन्धों में ह्रास होता है। भाई-बहनों के सम्बन्धों में हास उस समय अधिक होने की सम्भावना होती है जब यह अपने परिवार के पद और प्रतिष्ठा के अनुसार व्यवहार नहीं करते हैं।

(5) रिश्तेदारों से सम्बन्धों में परिवर्तन के कारण भी पारिवारिक सम्बन्धों में परिवर्तन होते हैं। अध्ययनों में यह देखा गया है कि परिवार के सम्बन्धों में यदि एक बार ह्रास प्रारम्भ हो जाता है तो पारिवारिक सम्बन्ध बिगड़ते चले जाते हैं। प्रारम्भिक अवस्था में छोटे-छोटे झगड़ों का रूप धारण कर लेते हैं। बालकों में अपने संरक्षकों, अभिभावकों और परिवारजनों के व्यवहार को सही ढंग से समझने की क्षमता नहीं होती है। वह अक्सर अपने से बड़ों के व्यवहार का अपने अज्ञान के कारण गलत अर्थ लगाते हैं। कई बार जब वह यह अनुभव करते हैं कि उनके परिवारजन, विशेष रूप से माता-पिता उनको कम स्नेह करते हैं अथवा स्नेह नहीं करते हैं, तब उनमें चिन्ता, असुरक्षा और क्रोध की भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। बालक में इस प्रकार की भावनाएँ उस समय भी उत्पन्न हो सकती है जब उसके पारिवारिक सम्बन्ध खराब होते हैं।

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