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त्रिभाषा सूत्र | Three Language Formula B.Ed Notes by Sarkari Diary

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1956 में त्रि-भाषा सूत्र को दो-भाषा सूत्र से अधिक उपयोगी माना गया और इसे केंद्रीय स्तर पर प्रतिपादित किया गया। उस समय से लेकर 1968 तक जब केन्द्र सरकार ने इसे मान्यता दी, तब तक यह कई चरणों से गुजरकर अपना अंतिम रूप ले चुका था। इस संबंध में हम निम्नलिखित विषयों का अध्ययन करेंगे-

त्रिभाषा सूत्र | Three Language Formula B.Ed Notes by Sarkari Diary

सूत्र का प्रतिपादन 1956

देश की आवश्यकताओं के सन्दर्भ में त्रिभाषा का सूत्र का सर्वप्रथम प्रतिपादन सन् 1956 ‘केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (Central Advisory Board of Education) ने अपनी 23वीं बैठक में किया। उसने सरकार के अनुमोदन हेतु निम्नलिखित दो सूत्रों का निर्माण किया-

प्रथम सूत्र-

    • मातृभाषा या
    • क्षेत्रीय भाषा या
    • मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषा का मिश्रित पाठ्यक्रम या
    • क्षेत्रीय भाषा और एक शास्त्रीय भाषा का मिश्रित पाठ्यक्रम।
  1. हिन्दी या अंग्रेजी।
  2. एक आधुनिक भारतीय भाषा या एक आधुनिक यूरोपीय भाषा, जो (i) और (ii) में न ली गई हो ।

द्वितीय सूत्र –

  1. पहले सूत्र के समान ।
  2. अंग्रेजी या एक आधुनिक यूरोपीय भाषा।
  3. हिन्दी (अहिन्दी क्षेत्रों के लिये या कोई अन्य आधुनिक भारतीय भाषा हिन्दी क्षेत्रों के लिये)।

सूत्र का सरलीकरण 1961

प्रस्तुत दोनों सूत्रों पर विचार करने के लिये सरकार ने सन् 1961 में मुख्य मन्त्रियों का सम्मेलन’ (Chief Minister Conference) आयोजित किया। इस सम्मेलन ने दोनों सूत्रों पर विचार-विमर्श करने के पश्चात् यह निश्चय किया कि शिक्षा के माध्यमिक स्तर पर छात्रों द्वारा किसी आधुनिक भारतीय भाषा का अध्ययन किया जाना सम्भव नहीं है। अपने इस निश्चय के अनुसार, सम्मेलन ने त्रिभाषा सूत्र का निम्नलिखित सरलीकृत रूप तैयार किया-

  1. क्षेत्रीय भाषा (यदि क्षेत्रीय भाषा, मातृभाषा से भिन्न है, तो क्षेत्रीय भाषा और मातृभाषा दोनों)।
  2. हिन्दी या अहिन्दी क्षेत्रों में इसके स्थान पर कोई अन्य भारतीय भाषा।
  3. अंग्रेजी या कोई अन्य आधुनिक यूरोपीय भाषा ।
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सूत्र में दो संशोधन 1962 और 1964

त्रिभाषा सूत्र में संशोधन करके, उसे देश के लिये वास्तव में उपयोगी बनाने के लिये सन् 1962 की भावनात्मक एकता समिति (Emotional Integration Committee) और सन् 1964 के ‘कोठारी आयोग द्वारा रचनात्मक कदम उठाये गये। उसके द्वारा त्रिभाषा सूत्र में किये जाने वाले संशोधन दृष्टव्य हैं-

  • 1. भावात्मक एकता समिति का संशोधन- भावात्मक एकता समिति ने हिंदी और अहिन्दी क्षेत्रों के लिये दो पृथक् त्रिभाषा सूत्रों का निर्माण किया जैसे-

हिन्दी क्षेत्रों के लिये त्रिभाषा सूत्र-

  • निम्न प्राथमिक स्तर (कक्षा 1 से कक्षा 5)
    • केवल एक अनिवार्य भाषा मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा, जो शिक्षा का माध्यम हो।
    • किसी भारतीय भाषा या अंग्रेजी की शिक्षा स्वेच्छा से ही दी जा सकती है।
  • उच्च प्राथमिक स्तर (कक्षा 6 से 8)
    • मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा
    • न.1 से भिन्न आधुनिक भारतीय भाषा या एक शास्त्रीय भाषा
    • अंग्रेजी।
  • निम्न माध्यमिक स्तर (कक्षा 9 व 10)
    • मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा
    • अंग्रेजी
    • न. (1) से भिन्न आधुनिक भारतीय भाषा या एक शास्त्रीय भाषा या एक आधुनिक विदेशी भाषा ।
  • उच्च माध्यमिक स्तर (कक्षा 11 व 12) निम्नलिखित में से दो भाषाएँ-
    • हिन्दी के अलावा कोई अन्य आधुनिक भारतीय भाषा
    • अंग्रेजी या कोई अन्य आधुनिक विदेशी भाषा
    • शास्त्रीय भाषा।
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अहिन्दी क्षेत्रों के लिए त्रिभाषा सूत्र-

  • निम्न प्राथमिक स्तर (कक्षा 1 से कक्षा 5)
    • केवल एक अनिवार्य भाषा मातृभाषा, या क्षेत्रीय भाषा, जो शिक्षा का माध्यम हो ।
    • किसी भारतीय भाषा या अंग्रेजी की शिक्षा स्वेच्छा से दी जा सकती है।
  • उच्च प्राथमिक स्तर (कक्षा 6 से 8)
    • मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा या मातृभाषा और शास्त्रीय भाषा का मिश्रित पाठ्यक्रम या क्षेत्रीय भाषा और शास्त्रीय भाषा का मिश्रित पाठ्यक्रम
    • हिन्दी
    • अंग्रेजी
  • निम्न प्राथमिक स्तर (कक्षा 9 व 10)
    • मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा
    • अंग्रेजी या हिन्दी
    • NO. 1 से भिन्न आधुनिक भारतीय भाषा या एक शास्त्रीय भाषा या एक आधुनिक विदेशी भाषा।
  • उच्च माध्यमिक स्तर (कक्षा 11 व 12) निम्नलिखित में से दो भाषाएँ-
    • हिन्दी
    • एक आधुनिक भारतीय भाषा, जो शिक्षा का माध्यम न हो।
    • अंग्रेजी
  • 2. कोठारी आयोग का संशोधन – ‘कोठारी आयोग ने त्रिभाषा सूत्र के क्रियान्वयन का विस्तृत अध्ययन और सूक्ष्म विश्लेषण किया। परिणामस्वरूप वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इसके क्रियान्वयन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उसने अपने प्रतिवेदन में इन कठिनाइयों का वर्णन किया है, फिर सूत्र के आधारभूत सिद्धान्तों का उल्लेख किया है और अन्त में संशोधित त्रिभाषा सूत्र को लेखबद्ध किया है। ‘आयोग’ ने त्रिभाषा सूत्र का रूप इस प्रकार अंकित किया है-
    • मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा
    • संघ की राजभाषा या सह-राजभाषा और
    • एक आधुनिक भारतीय भाषा विदेशी भाषा, जो न. (i) और (ii) के अन्तर्गत छात्र द्वारा न चुनी गई हो और जो शिक्षा का माध्यम न हो।
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भाषाओं का अध्ययन आयोग ने शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर भाषाओं के अध्ययन के विषय में निम्नलिखित सुझाव दिए हैं-

  • निम्न प्राथमिक स्तर (कक्षा 1 से 4) – एक भाषा मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा
  • उच्च प्राथमिक स्तर (कक्षा 5 से 7)
    • मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा
    • हिन्दी या अंग्रेजी
  • निम्न माध्यमिक स्तर (कक्षा 8 से 10)
    • तीन भाषाएँ – अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में सामान्य रूप से निम्नलिखित भाषाएँ होनी चाहिए-
      • मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा
      • उच्च या निम्न स्तर की हिन्दी
      • उच्च या निम्न स्तर की अंग्रेजी
    • हिन्दी भाषी क्षेत्रों में सामान्यतः निम्नलिखित भाषाएँ होनी चाहिए-
      • मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा
      • अंग्रेजी या हिन्दी, यदि अंग्रेजी मातृभाषा के रूप में ली गई है
      • हिन्दी के अतिरिक्त एक अन्य आधुनिक भारतीय भाषा ।।
  • सूत्र का अन्तिम रूप 1968- भारत सरकार ने त्रिभाषा सूत्र के समस्त रूपों का अध्ययन करने के पश्चात् इस सूत्र को अन्तिम रूप प्रदान किया है। सरकार ने अपनी सन् 1968 की ‘शिक्षा की राष्ट्रीय नीति’ (National Policy of Education) में निम्नलिखित त्रिभाषा सूत्र को मान्यता प्रदान की है और घोषित किया है कि माध्यमिक स्तर पर छात्रों के लिये अग्रलिखित तीन भाषाओं का अध्ययन अनिवार्य है-
    • हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी, अंग्रेजी और आधुनिक भारतीय भाषा जिसमें दक्षिण की कोई भाषा होनी चाहिए।
    • अहिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी, अंग्रेजी या क्षेत्रीय भाषा

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