एकीकृत शिक्षा तथा विकलांग बालकों की पाठ्यक्रिया

विकलांग बालकों हेतु समेकित शिक्षा का प्रावधान रखा गया है इस प्रकार के बालकों हेतु एक प्रकार की शिक्षा का प्रावधान और रखा जाता है, जिसे एकीकृत शिक्षा कहा जाता है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक वह बालक जो कि विशेष शिक्षा के हकदार होते हैं, उनके लिये अलग-अलग प्रावधान रखे जाते हैं, जो कि निम्नलिखित होते हैं-

एकीकृत शिक्षा व विकलांग बालकों की पाठ्य क्रियाएँ (Inclusive Education and Curricular Activities of Handicapped Children) – जैसा कि हम लोग जानते हैं कि एकीकृत शिक्षा योजना केन्द्र द्वारा आयोजित एक ऐसी योजना है जिसे क्रियान्वित करने के लिए केन्द्रीय सरकार, राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों की सहायता करेगी।

इसका उद्देश्य ऐसे विकलांग बच्चों का शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराना है, जिनकी समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

  • अंग संचालन की दृष्टि से विकलांग बच्चे अस्थि विषयक असमर्थता तथा सामान्य कोटि की श्रवण सम्बन्धी दोष वाले बच्चे।
  • बच्चे जिन्हें कम दिखाई देता है तथा एक आँख से न देख सकने वाले बच्चे प्रथम श्रेणी में आते हैं।
  • 50-70 बुद्धि-लब्धि वाले बच्चों का दल जो मानसिक रूप से अशक्त हैं लेकिन जिन्हें पढ़ाया जा सकता है।
  • कई तरह की आवश्यकताओं वाले बच्चे (अन्धे और विषयक अशक्तता, श्रवण सम्बन्धी तथा अस्थि विषयक अशक्तता तथा मानसिक रूप से पिछड़ेपन वाले ऐसे बच्चे जिन्हें पढ़ाया जा सकता है, दृष्टि सम्बन्धी दोष तथा सामान्य कोटि की अशक्तता वाले बच्चे ।
  • अधिगम की दृष्टि से अयोग्य बच्चे।
    • ऐसी आवश्यकताओं वाले बच्चे को भी पूर्व तैयारी होने के पश्चात् उन्हें सामान्य स्कूलों में भर्ती किया जा सकता है जो इस प्रकार है-
      • दृष्टि-दोष वाले बच्चे (उच्च कोटि)
      • गम्भीर तथा दुर्बोध किस्म के श्रवण दोष वाले बच्चे (गंभीर और दुर्बोध) कक्षा में हम लोगों को (शिक्षकों को) श्रवण सम्बन्धी दृष्टि सम्बन्धी, अस्थि विषयक तथा मानसिक दुर्बलताओं वाले बच्चे मिलते हैं। हम लोग यह सोचकर उन पर ध्यान नहीं देते हैं कि वे रोजगारपरक कुशलता के अतिरिक्त और कुछ नहीं सीख सकते हैं। लेकिन यह जानकर हम चकित रह जाते हैं कि सामान्य कोटि की विकलांगता वाले बच्चों को सामान्य बच्चों की तरह शिक्षा दी जा सकती है। उन्हें हम सब से (शिक्षकों से) केवल प्रेरणा और सहायक उपकरणों की सहायता की जरूरत होती है। उनमें से बहुत कम बच्चे ऐसे होंगे जो भयंकर तथा गम्भीर किस्म की विकलांगता से पीड़ित होंगे। उनमें केवल मूलभूत शैक्षिक कौशल तैयार करने की जरूरत होती है और यदि उन्हें यथाशीघ्र ही पहचान लिया जाये तो उन्हें सामान्य स्कूलों में एकीकृत किया जा सकता है। सामान्य स्कूलों में विशेष कक्षाएँ आयोजित करके अथवा विशेष स्कूलों के माध्यम से उनमें विशेष प्रकार का कौशल विकसित किया जा सकता है। एकीकृत शिक्षा योजना में निम्नांकित बातें सम्मिलित की गई। हैं एक तो स्कूल में भर्ती होने से पहले विकलांगों का प्रशिक्षण तथा दूसरे माता-पिता को परामर्श देना। पी. ओ. ए. इस बात की सिफारिश करती है कि एक का आधारभूत काम चलाऊ कुशलता प्राप्त कर लेने के बाद उन विकलांग बच्चों को सामान्य स्कूलों में एकीकृत किए जाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जिन्हें विशेष स्कूलों में भर्ती किया गया है।

अध्यापक का सर्वप्रथम कर्तव्य यह होना चाहिए कि प्रारंभिक अवस्था में विकलांगता की पहचान करना तथा उनकी क्षतिपूर्ति के लिए सहायक उपकरण दिलवाने में मदद करना । इन बच्चों का वर्गीकरण करने पर भी उद्देश्य की पूर्ति होने में मदद नहीं मिलेगी। इससे उनकी आत्म सम्बन्धी अवधारणाएँ नष्ट हो जाएँगी तथा वे हतोत्साहित हो जाएँगे। इससे उनके मन में स्कूल के प्रति निराशावाद की भावना उत्पन्न होगी और वे शिक्षा प्रणाली से अलग कर दिए जाएँगे। अध्यापक से यह उम्मीद की जाती है कि वह इन बच्चों की समस्याओं तथा गुणों को समझें।

समेकित शिक्षा के कार्यक्रमों को अग्रसर करने में अध्यापक की क्या भूमिका होगी? इस पर एक शीर्षक के अन्तर्गत निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर विचार करते हैं-

  1. विकलांगता की पहचान (Identification of Disabledness)
  2. एकीकृत शिक्षा के परिवेश मे विकलांगों की स्थिति का निर्धारण
  3. पाठ्यक्रम मे संसोधन
  4. अध्यापक का बच्चे के प्रति अनुकूल व्यवहार
  5. उचित सहायक सामग्री का उपयोग
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