मानव शास्त्रीय दृष्टिकोण से जब परिवारों में लैंगिक विषमताओं के विषय में विचार करते हैं तो परिवार में नारी के प्रजनन सम्बन्धी दायित्व के आधार पर भी नारी और पुरुष में भारी भेद-भाव दिखाई देता है। वस्तुतः परिवार में नारी की स्थिति के सम्बन्ध में जब भी कोई विचार किया जाता है तब उसके निम्न चार दायित्वों के सम्बन्ध में चर्चा की जाती है, वे हैं-
- उत्पादन
- प्रजनन
- लैंगिकता और
- बच्चों का समाजीकरण
उत्पादन एवं प्रजनन आशय- उत्पादन का अर्थ यदि किसी वस्तु का निर्माण करना है तो वही प्रजनन का अर्थ है – जीव को जन्म देना। अधिक मशीनों द्वारा अनेक अनगिनत चीजों का निर्माण प्रति दिन किया जाता है। इनमें प्रमुख रूप से पुरुष मजदूर ही होते हैं। यद्यपि महिला मजदूर भी होती हैं; किन्तु इनकी संख्या प्रायः ही रहती है या संख्या अधिक होने पर भी स्त्री मजदूरों को किसी प्रकार का कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता है। अतः स्पष्ट है कि समाज में नयी चीजों को लाने का श्रेय पुरुष वर्ग को ही जाता है। किन्तु जीव विज्ञान ने केवल महिलाओं को ही प्रजनन का सुख दिया है अर्थात् केवल एक महिला ही माँ बन सकती है, कोई पुरुष नहीं। इसके कारण (सजीव को जन्म देने के कारण) महिलाओं में शुरू से ही प्यार, ममता, दया, सामाजिक जुड़ाव आदि गुण विद्यमान होते हैं, जो कि समाज में अत्यन्त आवश्यक है।
प्रजनन में लैंगिक भेद-भाव – इसी प्रकार पुरुष निर्जीव आकृतियों का निर्माण करता है। उसी कारण उनमें ये गुण विकसित नहीं हो पाते हैं। इससे जुड़ा एक और तथ्य महिला का जन्मदात्री होना है। फिर भी समाज के ठेकेदारों ने यह हक भी स्वयं अपने पास ही रखा हुआ है अर्थात् भ्रूण परीक्षण द्वारा भ्रूण को जन्म ही नहीं लेने देना । वह मासूम भ्रूण जो कि कल के समाज का रचनाकार है, वह समाज के इन ठेकेदारों की बलिवेदी पर चढ़ा दिया जाता है। इस समय भी उस महिला की स्वीकृति लेने की आवश्यकता नहीं समझी जाती। यदि कहीं हस्ताक्षर के लिए महिला की स्वीकृति की आवश्यकता होती है तो भी उसे प्रताड़ित करके यह कार्य करवा लिया जाता है। उस समय भी यह बिल्कुल आवश्यक नहीं समझा जाता है कि उस महिला की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा जो इस भ्रूण को एक जीव के रूप में जन्म देने वाली है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि हमारे देश की लिंग सम्बन्धी तस्वीर कितनी भेद-भाव भरी है। इससे यह भी साफ जाहिर हो जाता है कि महिला एवं पुरुष सम्बन्धी भेद किस हद तक हमारे समाज में व्याप्त है।