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आदिवासी आन्दोलन | Tribal Movement B.Ed Notes

Published by: Ravi Kumar
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आदिवासी शब्द दो शब्दों ‘आदि’ और ‘वासी’ से मिलकर बना है और इसका अर्थ मूल निवासी होता है।

भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा आदिवासियों का है। पुरातन लेखों में आदिवासियों को अत्विका और वनवासी भी कहा गया है। संविधान में आदिवासियों के लिए अनुसूचित जनजाति शब्द का प्रयोग किया गया है। भारत के प्रमुख आदिवासी समुदायों में संभाल, गोंड, मुंडा, हो, बोडो, भील, खासी, सहरिया, गरासिया, मीणा, उरांव, निरहोर आदि है। महात्मा गाँधी ने आदिवासियों को गिरिजन (पहाड़ पर रहने वाले लोग) कहकर सम्बोधित किया है। आमतौर पर आदिवासियों को भारत में जनजातीय लोगों के रूप में जाना जाता है।

आदिवासी आन्दोलन | Tribal Movement B.Ed Notes

आदिवासी मुख्य रूप से भारतीय राज्यों ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध प्रदेश, बिहार, झारखंड पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक हैं जबकि भारतीय पूर्वोत्तर राज्यों में यह बहुसंख्यक है जैसे मिजोरम भारत सरकार ने इन्हें भारत के संविधान की पाँचवीं सूची में अनुसूचित जनजातियों के रूप में मान्यता दी है। अक्सर इन्हें अनुसूचित जातियों के साथ एक ही श्रेणी अनुसूचित जातियों और जनजातियों में रखा जाता है जो कुछ सकारात्मक कार्रवाई के उपयोग के पात्र हैं। कहा जाता है कि हिन्दुओं के देव शिव भी मूल रूप से एक आदिवासी देवता थे लेकिन आर्यों ने भी इन्हें देवता के रूप में स्वीकार कर लिया। इसी प्रकार रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मिकी भी एक भील आदिवासी थे।

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आदिवासी आन्दोलन में प्रमुख बिरसा मुंडा का आन्दोलन है। इनके नेतृत्व में मुंडा आदिवासियों ने 19वीं सदी के आखिरी वर्षों में मुंडाओं के महान आन्दोलन उलगुलान को अंजाम दिया। बिरसा मुंडा ने मुंडा आदिवासियों के बीच अंग्रेजी सरकार की जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध लोगों को जागरुक करना शुरू किया। जब सरकार इन्हें रोका गया और गिरफ्तार कर लिया गया तो उन्होंने धार्मिक उपदेशों के नहाते आदिवासियों में राजनैतिक चेतना जगाना शुरू कर दिया। 1898 में आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार हुई और अंततः 24 दिसम्बर, 1899 को बिरसापंथियों ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड दिया। ब्रिटिश फौज ने आंदोलन का दमन शुरू कर दिया और 9 जनवरी, 1900 की डोम्बार पहाड़ी पर अंग्रेजों से लड़ते हुए सैकड़ों मुंडाओं ने शहादत दी।

इस प्रकार ये आदिवासी जनजातियाँ कई संघर्ष झेलती रहीं

R.S. सिंह (1985) ने आदिवासी आन्दोलनों को तीन भागों में बाँटा है-

  • पहला भाग 1795 से 1860 का है। इसमें ब्रिटिश सामान्य के उदय, विस्तार व स्थापना शामिल है।
  • दूसरा भाग 1860 से 1920 का है जिसमें औपनिवेशिकवाद का समय शामिल है।
  • तीसरा भाग 1920 से स्वतन्त्रता प्राप्ति (1941) का है। इस भाग में आदिवासियों ने न केवल अलगाववादी आन्दोलन शुरू किये बल्कि उसी समय राष्ट्रवादी व उग्रवादी आन्दोलन में भी हिस्सा लिया।
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19वीं शताब्दी में, ब्रिटिशों का देश की विभिन्न जनजातियों से संघर्ष हुआ। जन उन्होंने आदिवासियों के साम्राज्य का दमन कर उन आदिवासी क्षेत्रों में ब्रिटिश शासन लागू कर दिया। इस पर इस नये प्रशासन तले आदिवासियों को अपनी शक्ति व समाधनों के छिनने का एहसास हुआ और उन्होंने ब्रिटिशों के खिलाफ संघर्ष कर दिया। बिरसा मुंडा आन्लोलत इसी का एक भाग था। इस समय कई आन्दोलन हुए जिन्हें के. एस. सिंह ने The Millennium movement कहा है। कुछ आदिवासी समूहों द्वारा अधिक से अधिक कल्याण के कार्यक्रमों की माँग की गई जिसमें सरकारी कार्यालयों में नौकरी में आरक्षण भी शामिल था परन्तु उनके ये प्रयास प्रारम्भ में सफल नहीं हुए। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त इन आदिवासियों ने ‘स्वायत्त’ राज्यों व जिलों की मांग की जिसमें वे अपने मामले स्वयं सुलझा सकते थे। कोल जाति का आन्दोलन व संथाल विद्रोह इसी राजनीतिक आन्दोलन का हिस्सा था क्योंकि उनका लक्ष्य ब्रिटिशों को बाहर निकालकर स्वयं का राज्य स्थापित करना था।

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इसी क्रम में छत्तीसगढ़ की गोंड जाति ने 1950 में आदिवासियों के लिए एक राज्य की माँग की। छोटा नागपुर के आदिवासी पहले से ही अपने अधिकारों के संरक्षण हेतु एक अलग राज्य की माँग कर रहे थे। नागा जाति के लोगों ने भी साइमन कमीशन को 1929 में एक घोषणापत्र सौंपा जिसमें वे संवैधानिक परिवर्तनों से अपनी सुरक्षा चाहते थे। इसी क्रम में जुलाई 1992 में भिलाई में पुलिस की फायरिंग में 18 लोगों की मृत्यु की आधिकारिक घोषणा की गई जबकि वास्तविकता में यह संख्या 50 से अधिक थी।

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Ravi Kumar is a content creator at Sarkari Diary, dedicated to providing clear and helpful study material for B.Ed students across India.

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