वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने जीवन के अनेक क्षेत्रों को प्रभावित किया है। इसका प्रभाव जितना आर्थिक क्षेत्र में दिखाई देता है उतना ही आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। विश्व व्यापार संगठन की गतिविधियों के कारण शिक्षा सेवा को व्यवसाय के रूप में सम्मिलित कर वैश्वीकरण प्रक्रिया में समेटा गया है। परिवर्तन के इस युग में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में यदि अवसरों की कमी नहीं है तो चुनौतियों का भी अभाव नहीं है।
अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व तकनीकी आविष्कारों के कारण ज्ञान व सूचना की सुलभता के रूप में ये अवसर हमारे सामने उपलब्ध है वहीं पाठ्यक्रम की प्रासंगिकता, वित्त प्रबन्धन, ज्ञान के स्रोत तक पहुँच में समानता, कर्मचारियों के विकास में बढ़ोत्तरी, अध्यापन, शोध व सेवा की गुणवत्ता क्षेत्र में प्रभावी सहयोग, विवरस व संस्मरण की स्थापना के रूप में चुनौतियाँ भी प्रस्तुत है।
- शिक्षा के उद्देश्यों का पुनर्निर्धारण (Redetermination of Educational Objectives) – गुणवत्ता में वृद्धि लाने के लिए सर्वप्रथम शिक्षा के उद्देश्यों को पुनर्निर्धारित करना होगा। वैश्वीकरण के अन्तर्गत निम्न उद्देश्य निर्धारित किये जाने चाहिए-
- विश्व नागरिकता का विकास अर्थात् छात्र को केवल स्वयं के बारे में नहीं सोचना है बल्कि विश्व को एक परिवार सदृश मानकर उसके भी हितों की चिन्ता करनी है ताकि उसमें विश्व नागरिकता की भावना विकसित हो सके
- वैश्वीकरण हेतु शिक्षा का उद्देश्य आधुनिकीकरण का प्रयास भी होना चाहिए, परन्तु आधुनिकीकरण से हमारा तात्पर्य पश्चिमीकरण नहीं है बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विश्व की अद्यतन वैज्ञानिक खोजी तकनीकी व प्रबन्ध तकनीक को अपनाकर, कार्यक्षमता बढ़ाना, उत्पादन बढ़ाना व आर्थिक विकास द्वारा जीवन स्तर ऊपर उठाना है।
- शाश्वत मूल्यों का हस्तान्तरण (Transfer of Eternal Values)
- व्यावसायिक दक्षता का विकास (Development of Vocational Skills)
2. पाठ्यक्रम का पुनर्निर्धारण (Determining of Curriculum) – शिक्षा के उद्देश्यों में बदलाव के कारण पाठ्यक्रम का पुनर्निर्धारण भी आवश्यक है। पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जिससे बालक वैश्वीकरण परिवेश में स्वयं को समायोजित कर सके। अतः समस्त विषयों में विश्व इतिहास का ज्ञान, विश्व भूगोल का ज्ञान विश्व तकनीकी का ज्ञान आदि को समाहित करना चाहिए। इसके साथ ही विभिन्न राष्ट्रों में रहने वाले व्यक्तियों के रहन-सहन, समानताओं व असमानताओं तथा इससे सम्बन्धित अन्य विषयों को भी पाठ्यक्रम में उचित स्थान देना चाहिए।
3. वैश्वीकरण व नवीन शिक्षण की विधियाँ (Globalization and New Educational Methods) – वैश्वीकरण हेतु विद्यालय में प्रचलित शिक्षण विधियों में भी परिवर्तन की आवश्यकता है। आज शिक्षा शिक्षक आधारित न होकर छात्र आधारित है। छात्र ज्ञान की खोज में अनेक नवीन प्रयोगों का सहारा लेता है जिनमें अभिक्रमिक अनुदेशन कम्प्यूटरीकृत अनुदेशन प्रमुख है। इसके अलावा इंटरनेट के माध्यम से छात्र विभिन्न पुस्तकालयों व अनेक पुस्तकों से स्वयं ही पढ़ सकते हैं। अतः वैश्वीकरण के अन्तर्गत ऐसी शिक्षण विधियाँ शामिल होनी चाहिए जिनमें छात्र स्वयं ज्ञान का अर्जन कर सकें।
4. अनुशासन (Discipline) – छात्रों में स्वस्थ अनुशासन सम्बन्धी गुण का विकास करना अति आवश्यक है। वे ऐसी भावना से ओतप्रोत हो जो उन्हें वैश्वीकरण के दृष्टिकोण से चिन्तन और निर्णय करने के लिए प्रेरित कर सकें।
5. वैश्वीकरण व शिक्षक (Globalization & Teacher) – वैश्वीकरण के सन्दर्भ में शिक्षक की परम्परागत भूमिका में भी बदलाव आया है। शिक्षक अब ज्ञान का स्रोत नहीं है बल्कि सोत तक पहुँचने का माध्यम है। वह एक मार्गदर्शक है जो छात्रों का केवल मार्गदर्शन करता है जिससे छात्र अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके। अतः इसके लिए आवश्यक है कि वह स्वयं नवीन शिक्षण विधियों, ज्ञान के स्रोतों से परिचित हो। भारत में इस दिशा में NCTE ने अनेक प्रयास किये हैं।
6. वैश्वीकरण व शिक्षा का माध्यम (Globalization and Medium of Education ) – आज भारत विश्व में तेजी से आगे बढ़ रहा है जिसका प्रमुख कारण यह है कि हम दूसरे देशों से उन्हीं की भाषा में संवाद कर सकते हैं। विदेशों में विशेषकर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा आदि अंग्रेजी भाषी देशों में भारतीयों को अंग्रेजी के ज्ञान का लाभ अवश्य मिला है। भारत को इन देशों में उच्च शिक्षा में प्रवेश, विभिन्न तकनीकी संस्थानों में नौकरियों आदि मिलने में अंग्रेजी भाषा का ज्ञान सहायक हुआ है। अतः भारतीय भाषाओं के ज्ञान के साथ एक अन्तर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी का व्यावहारिक ज्ञान भी यदि हम छात्रों को दें तो हम और आगे बढ़ सकते हैं। अतः वैश्वीकरण के इस युग में अंग्रेजी भाषा को भी शिक्षा का माध्यम बनाना चाहिए जिससे भारत निरन्तर प्रगति कर सके।