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पितृसत्ता के प्रकार, विशेषताएं, दोष एवं पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की स्थिति B.Ed Notes

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पितृसत्ता एक सामाजिक व्यवस्था है जिसके अंतर्गत महिलाओं की तुलना में पुरुषों की केंद्रीय भूमिका अधिक होती है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जो समाज में पुरुषों को अधिक अधिकार प्रदान करती है। इस व्यवस्था में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में निर्णय लेने का अधिकार बेहद कम होता है। साधारण भाषा में कहा जाए तो पितृसत्ता एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें पुरुषों को समाज या परिवार में उच्च माना जाता है। सदियों से यह देखा जाता है कि अक्सर महिलाएं पुरुषों पर निर्भर रहती हैं जिसके कारण महिलाओं को कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी महिलाओं को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है जिसके कारण अधिकांश महिलाएं पुरुषों पर आश्रित रहती हैं।

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पितृसत्ता के प्रकार, विशेषताएं, दोष एवं पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की स्थिति B.Ed Notes By Sarkari Diary
पितृसत्ता के प्रकार, विशेषताएं, दोष एवं पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की स्थिति

पितृसत्तात्मक व्यवस्था क्या है?

पितृसत्तात्मक व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत समाज में एक महिला अपने पिता, पति या भाई के संरक्षण में अपना जीवन व्यतीत करती है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था में एक स्त्री हर प्रकार से किसी ना किसी पुरुष के अधीन रहती है। इसके अलावा इस व्यवस्था के अंतर्गत एक स्त्री बेटी, बहन, मां या पत्नी के रूप में सदैव परिवार के किसी ना किसी पुरुष वर्ग के अधीन ही रहती है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था को पितृ प्रधान व्यवस्था के नाम से भी जाना जाता है। पितृ प्रधान व्यवस्था वह प्रणाली है जिसमें महिलाओं की तुलना में पुरुषों को प्राथमिकता दी जाती है। यह एक संगठित समाज में पुरुष प्रधान शक्ति की संरचना का प्रतीक है जो हर प्रकार से महिलाओं के विकास में बाधा डालता है।

पितृसत्ता के प्रकार

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भारत में पितृसत्ता के कई स्वरूप देखे जा सकते हैं जिनमें निजी पितृसत्ता एवं सार्वजनिक पितृसत्ता विशिष्ट रूप से मौजूद हैं-

निजी पितृसत्ता

निजी पितृसत्ता एक पारंपरिक व्यवस्था है जिसके अंतर्गत महिलाएं सामान्य रूप से घर के किसी पुरुष सदस्य के अधीन रहती हैं। निजी पितृसत्ता का यह रूप मुख्य रूप से घरों में पाया जाता है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके कारण महिलाएं अपना संपूर्ण जीवन परिवार के प्रमुख पुरुष के अधीन रहकर व्यतीत करती हैं।

⁕ सार्वजनिक पितृसत्ता

सार्वजनिक पितृसत्ता वह व्यवस्था है जिसमें अधिकांश महिलाएं घरों के बाहर किसी न किसी पुरुष समाज के अधीन रहती हैं। सार्वजनिक पितृसत्ता अधिकतर कारखानों, दफ्तरों, बाजार एवं अन्य किसी सामाजिक स्थानों पर देखने को मिलता है।

पितृसत्ता की विशेषताएं / पितृसत्तात्मक परिवार की विशेषताएं

  • पितृसत्ता एक ऐसी सामाजिक प्रणाली है जिसके अंतर्गत परिवार एवं समाज में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की अधिक भूमिका होती है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सामाजिक कार्यों, राज्य व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, धर्म आदि के कार्यों में पुरुषों का अधिकार अधिक होता है।
  • पितृसत्तात्मक परिवार की व्यवस्था में पुरुषों को समस्त गतिविधियों का केंद्र मानकर परिवार के समस्त निर्णय लिए जाते हैं। इसके अलावा पितृसत्तात्मक परिवार में घर के सभी महत्वपूर्ण निर्णय भी पुरुषों के द्वारा ही लिया जाता है। इस व्यवस्था में महिलाओं के निर्णय लेने की क्षमता लगभग न के बराबर होती है।
  • पितृसत्तात्मक व्यवस्था में महिलाएं पूर्णत: पुरुषों पर आश्रित रहती हैं। इस व्यवस्था में महिलाओं को पुरुषों की अनुमति के बिना कहीं आने जाने का अधिकार भी नहीं होता। इसके अलावा पितृसत्ता व्यवस्था में बच्चों की पहचान उसके मां के नाम से ना होकर केवल उसके पिता के नाम से ही होती है।
  • पितृसत्ता के अंतर्गत महिलाओं की संपूर्ण गतिविधियों को किसी न किसी पुरुष प्रधान द्वारा नियंत्रित किया जाता है। केवल इतना ही नहीं पितृसत्ता व्यवस्था में महिलाओं को घर की वस्तुओं, जमीन एवं जायदाद (Property) पर भी अधिकार नहीं होता इन पर भी केवल पुरुषों का ही अधिकार होता है।
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पितृसत्ता के दोष

  • पितृसत्ता एक ऐसी व्यवस्था है जो महिलाओं के दृष्टिकोण से बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होती है। इस व्यवस्था के अंतर्गत समाज में स्त्रियों को पुरुषों के बराबर का दर्जा नहीं दिया जाता है, जिसके कारण उनके विकास का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। यह एक ऐसी समस्या है जिसमें स्त्रियों को पुरुषों के समकक्ष स्थान नहीं प्रदान किया जाता।
  • पितृसत्तात्मक व्यवस्था में अधिकांश पुरुष अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हैं जिसके कारण महिलाएं समाज में बराबरी नहीं कर पाती हैं। पितृसत्ता व्यवस्था में महिलाएं कई दशकों से पुरुषों द्वारा शोषण एवं उत्पीड़न का शिकार बनती आयी हैं।
  • पितृसत्ता व्यवस्था के कारण समाज में महिलाओं की स्थिति किसी वस्तु के समान होती है जिसके कारण महिलाओं की फैसले लेने की शक्ति और आत्मसम्मान एवं आत्म बल शून्य हो जाता है|
  • पितृसत्तात्मक व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें महिलाओं के विवाह के पश्चात उनका उपनाम बदल दिया जाता है। यह एक ऐसी पारंपरिक प्रथा है जो सदियों से चली आ रही है। इस कारण महिलाएं अपनी पहचान खोकर पूर्ण रूप से पुरुष वर्ग के लोगों पर निर्भर हो जाती है।

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पितृसत्तात्मक व्यवस्था सहायक या बाधक

पितृसत्तात्मक व्यवस्था को पारिवारिक एवं सामाजिक रूप से बाधक माना जाता है। इस व्यवस्था के अंतर्गत महिलाओं की शक्तियों को दबाकर रखा जाता है जिसके कारण महिलाओं का अक्सर सामाजिक रूप से शोषण होता है। कई इतिहासकारों का मानना है कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था महिलाओं के दृष्टिकोण से बेहद खराब होती है जो महिलाओं को आजाद होकर जीवन व्यतीत करने की अनुमति तक प्रदान नहीं करती है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था के अंतर्गत परिवार का सबसे बड़ा पुरुष ही परिवार का मुखिया होता है जिसका अधिकार समस्त परिवार के सदस्यों पर बराबर होता है। परंतु यदि किसी परिवार में कोई महिला सबसे बड़ी होती है तो उसको परिवार का मुखिया नहीं बनाया जाता।

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पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की स्थिति

पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की स्थिति को बेहद खराब माना जाता है। इसके अंतर्गत महिलाओं की शक्तियां एवं अधिकार पुरुषों की तुलना में बेहद कम या न के बराबर होते हैं। ऐसे समाज में पुरुषों को महिलाओं की तुलना में आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक रूप से अधिक श्रेष्ठता प्रदान की गई है जिसके कारण समाज में दशकों से पुरुषों का वर्चस्व रहा है। पितृसत्तात्मक समाज के आधार पर महिलाएं केवल पुरुषों द्वारा प्राप्त निर्देशों का ही पालन करती हैं। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें पुरुषों को स्त्रियों से अधिक महत्व दिया जाता है। ऐसे समाज में स्त्रियों को स्वतंत्र होकर जीवन व्यतीत करने एवं निर्णय लेने का अधिकार नहीं होता है जिसके कारण महिला वर्ग समाज में प्रगति करने से वंचित रह जाती हैं। पितृसत्तात्मक समाज महिलाओं के साथ असमानता एवं भेदभाव करता है जिसके फलस्वरूप महिलाएं आर्थिक एवं सामाजिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो पाती।

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