Home / B.Ed / M.Ed / DELED Notes / पाठ्यक्रम की प्रकृति | Nature of Curriculum B.Ed Notes

पाठ्यक्रम की प्रकृति | Nature of Curriculum B.Ed Notes

Published by: Ravi Kumar
Updated on:
Share via
Updated on:
WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

पाठ्यक्रम की प्रकृति

पाठ्यक्रम एक विशेष योजना है जिसका उद्देश्य छात्रों को निश्चित ज्ञान और कौशल प्राप्त कराना होता है। यह एक संगठित तरीके से विषयों और विषयों के आधार पर निर्धारित किया जाता है। पाठ्यक्रम की प्रकृति विभिन्न प्रशिक्षण संस्थानों और विद्यालयों में भिन्न भिन्न होती है, लेकिन इसका मूल उद्देश्य हमेशा यही रहता है कि छात्रों को संपूर्ण विकास के लिए तैयार किया जाए।

आम बोलचाल की भाषा में स्कूलों में छात्रों को शिक्षित करने के लिए जो किया जाता है उसे पाठ्यक्रम कहा जाता है। विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों ने पाठ्यक्रम को कुछ शब्दों में बाँधने या परिभाषित करने का प्रयास किया है, लेकिन पाठ्यक्रम के दायरे की सीमा सुनिश्चित करना बहुत कठिन है। फिर भी, कुछ मानवीय शैक्षिक और सामाजिक प्रवृत्तियों के आधार पर पाठ्यक्रम के दायरे की सीमाओं को चिह्नित करने का प्रयास किया गया है।

पाठ्यक्रम की प्रकृति | Nature of Curriculum B.Ed Notes - Sarkari DiARY

यदि हम पाठ्यक्रम के इतिहास पर नजर डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने वाले ज्ञान का स्वरूप और सीमा अनिवार्य रूप से संबंधित समाज द्वारा स्वीकृत शैक्षिक उद्देश्यों पर निर्भर करती है।

इसीलिए देश और काल के अंतर के अनुसार वहां के पाठ्यक्रमों में भिन्नता होती है।

यदि हम वैदिक काल की शिक्षा को भारतीय सन्दर्भ में देखें तो हम पाते हैं कि वैदिक काल में भारतीय शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ईश्वर के प्रति भक्ति और धार्मिक भावनाओं को सुदृढ़ करना, बच्चों के चरित्र का निर्माण करना और उनके व्यक्तित्व का विकास करना था। सामाजिक कौशल बढ़ाएँ. . इस दृष्टि से उस समय का पाठ्यक्रम भी बहुत विस्तृत था।

इसमें परा विद्या यानी धार्मिक साहित्य का अध्ययन और अपरा विद्या यानी धर्मनिरपेक्ष और सांसारिक ज्ञान दोनों शामिल थे। उस समय शिक्षा का कार्य गुरुकुलों में होता था तथा विद्यार्थी अपने पूरे शिक्षा काल में गुरुकुल अथवा गुरु-परिवार का सदस्य ही बना रहता था।

गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ उन्होंने गुरु और गुरु पत्नी की सेवा, आश्रम की सफाई, जानवरों की देखभाल और भिक्षा के माध्यम से कर्तव्यों, सेवा की भावना और अन्य चारित्रिक गुणों की शिक्षा भी प्राप्त की। इस प्रकार, वैदिक काल के पाठ्यक्रम में छात्रों को पढ़ाई के साथ-साथ व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करने के भी पर्याप्त अवसर मिलते थे और इसका कार्यान्वयन केवल अध्ययन कक्ष और समय के घंटों तक सीमित नहीं था।

शिक्षा का इतिहास यह भी दर्शाता है कि पाठ्यक्रम समय के साथ बदलता रहा है और कभी व्यापक तो कभी संकीर्ण हो गया है।

Also Read:  पाठ्यक्रम मूल्यांकन प्रक्रिया | Syllabus Evaluation Process (B.Ed) Notes

इसका एक बहुत अच्छा उदाहरण है खेल के प्रति रुझान की अवधारणा – हमारे देश में कुछ समय पहले तक पढ़ाई और खेल के प्रति रुझान को एक-दूसरे का विरोधी माना जाता था, लेकिन बाद में जब यह महसूस हुआ कि स्कूलों से निकलने वाले युवा भी एक-दूसरे के विरोधी हो सकते हैं। वास्तविक जीवन में असफल. फिर यह विश्वास विकसित हुआ कि जीवन की तैयारी के लिए पढ़ना-लिखना ही सब कुछ नहीं है। मनोविज्ञान के विकास ने बच्चों की अन्य प्रवृत्तियों के समुचित विकास को भी महत्व दिया और यह माना जाने लगा कि केवल पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना बच्चों के विकास की दृष्टि से एकतरफ़ा है। इस नये दृष्टिकोण का स्कूली कार्यक्रमों पर प्रभाव पड़ा और वे व्यापक हो गये। इसलिए स्कूलों में पाठ्यक्रम के साथ-साथ ऐसी गतिविधियों को भी शामिल किया जाने लगा जिससे बच्चों में बौद्धिक ज्ञान के साथ-साथ स्वास्थ्य, सौंदर्य बोध, रचनात्मकता और अन्य महत्वपूर्ण गुणों का विकास हो सके।

इस प्रकार, हम देखते हैं कि अतीत में पाठ्यक्रम की अवधारणा में परिवर्तन हुए हैं, लेकिन बीसवीं सदी के उत्तरार्ध के बाद से पाठ्यक्रम का दायरा लगातार बढ़ रहा है और इसमें विभिन्न प्रवृत्तियों का समावेश हो रहा है। इसके क्षेत्र के विस्तार की गति वर्तमान में इतनी तीव्र है कि इसकी सीमाएँ चिन्हित होते ही इसमें कई अन्य प्रवृत्तियाँ भी शामिल हो जाती हैं। इस स्थिति को देखकर श्री बैबिट ने भी कहा है- उच्च जीवन के लिए प्रतिदिन एवं 24 घंटे की जाने वाली सभी गतिविधियाँ पाठ्यक्रम के अंतर्गत आती हैं।

[catlist name=bed-deled]

प्रारंभ में पाठ्यक्रम का दायरा विषयों के निर्धारित पाठ्यक्रम तक ही सीमित था और शिक्षा का उद्देश्य सूचनात्मक ज्ञान प्राप्त करना था, लेकिन बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में व्यवहार विज्ञान जैसे शैक्षिक मनोविज्ञान, शैक्षिक समाजशास्त्र और शैक्षिक दर्शन आदि का विकास हुआ। तीव्र गति से. जिसका प्रभाव पाठ्यक्रम विकास पर भी पड़ा। इसके अलावा, शिक्षण-अधिगम के क्षेत्र में किए गए शोध का भी पाठ्यक्रम के विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। पहले यह धारणा महत्वपूर्ण थी कि यदि कोई शिक्षक अपने विषय के ज्ञान में पारंगत है और उसे विषय वस्तु पर महारत हासिल है, तो वह सफलतापूर्वक पढ़ा सकता है और वह ज्ञान बच्चों को भी दे सकता है, लेकिन यह धारणा अक्सर साबित हो जाती है। गलत होना। देखा गया था। मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों ने इस तथ्य की पुष्टि की है कि जब तक सीखने वाला नया ज्ञान प्राप्त करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होता, तब तक उसे कुछ भी नहीं सिखाया जा सकता। साथ ही, बच्चे के लिए कोई भी नया ज्ञान प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं है। जब तक बच्चा उस नये ज्ञान को आत्मसात नहीं कर लेता, तब तक उसका कोई व्यावहारिक उपयोग नहीं होता। इस प्रकार विभिन्न शोधों के माध्यम से इस तथ्य की पुष्टि हो चुकी है कि सीखना परिपक्वता से संबंधित है तथा सीखने में व्यक्तिगत भिन्नताओं एवं प्रत्यक्ष अनुभव की विशेष भूमिका होती है। इस दृष्टिकोण से स्कूलों की कार्यप्रणाली में महत्वपूर्ण परिवर्तन आये। अब स्कूलों का कार्य बच्चों को ज्ञान देने के बजाय ऐसी परिस्थितियाँ प्रस्तुत करना माना जाता है जो बच्चों को आत्म-अनुभव के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने में सहायक सिद्ध हो सकें। इसी मान्यता के परिणामस्वरूप गतिविधि आधारित पाठ्यक्रम की अवधारणा प्रस्तुत की गई जिसमें विषय वस्तु के महत्व को बनाए रखते हुए उसके चयन एवं कार्यान्वयन का आधार बदला गया।

Also Read:  एक आदर्श शिक्षक के गुण (QUALITIES OF AN IDEAL TEACHER) B.Ed Notes by SARKARI DIARY

इस प्रकार वर्तमान समय में विद्यालय के कार्य का दायरा समयबद्ध अध्ययन-अध्यापन के सीमित दायरे से बाहर निकलकर व्यापक रूप ले चुका है तथा इसमें निरन्तर वृद्धि भी हो रही है, जिससे यह बहुत कठिन होता जा रहा है। इसकी सीमाएँ निर्धारित करें। चूँकि स्कूलों में आयोजित होने वाली सभी गतिविधियाँ पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं, इसलिए पाठ्यक्रम का दायरा निर्धारित करना भी उतना ही कठिन कार्य है। फिर भी, शिक्षाविदों ने पाठ्यक्रम को उसके अंतर्गत पूरा किये जाने वाले कार्यों के आधार पर परिसीमित करने का प्रयास किया है।

माइकेल पेलार्डी के अनुसार- आम तौर पर, पाठ्यक्रम को छात्र के सभी अनुभवों के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसके लिए स्कूल जिम्मेदारी लेता है। इस रूप में, पाठ्यक्रम का अर्थ आमतौर पर उन अनुक्रमिक कार्यों से है जो इन अनुभवों से पहले, दौरान और बाद में आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यों को निम्नलिखित आठ श्रेणियों में शामिल किया जा सकता है-

  1. लक्ष्यों एवं उद्देश्यों का निर्धारण,
  2. बालकों के संज्ञानात्मक विकास का पोषण, 3. बालकों के मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक स्वास्थ्य का संवर्धन,
  3. अधिगम हेतु व्यवस्था, 5. शैक्षणिक स्रोतों का उपयोग,
  4. छात्रों का व्यक्तिगत बोध तथा उसके अनुरूप शिक्षण व्यवस्था,
  5. समस्त कार्यक्रमों एवं बालकों के कार्यों का मूल्यांकन,
  6. नवीन प्रवृत्तियों का साहचर्य ।

पाठ्यक्रम के घटक

पाठ्यक्रम विभिन्न घटकों से मिलकर बना होता है। इन घटकों में से कुछ महत्वपूर्ण घटक हैं:

1. पाठ्यपुस्तक

पाठ्यपुस्तक एक महत्वपूर्ण संसाधन है जो छात्रों को विषय के बारे में ज्ञान प्रदान करता है। यह छात्रों को विषय के मूल तत्वों, सिद्धांतों और तकनीकों के बारे में समझने में मदद करता है। पाठ्यपुस्तकों में विभिन्न विषयों के लिए वर्गीकृत चैप्टर और अभ्यास कार्यालय शामिल होते हैं।

2. प्रश्नोत्तरी

प्रश्नोत्तरी छात्रों को समझ की जांच करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। इसके माध्यम से छात्र पाठ्यपुस्तक में दिए गए सभी महत्वपूर्ण विषयों को समझते हैं और उनकी ज्ञान क्षमता को मापते हैं। प्रश्नोत्तरी में विभिन्न प्रकार के प्रश्न शामिल हो सकते हैं, जैसे कि चयन के प्रश्न, मैचिंग के प्रश्न, और एकय के प्रश्न।

Also Read:  Teaching and Learning Concepts (B.Ed) Notes

3. प्रयोगशाला

प्रयोगशाला विज्ञान और गणित के विषयों में छात्रों को व्यावहारिक अनुभव प्रदान करती है। यहां छात्र प्रयोग करके नए तत्वों, सिद्धांतों और प्रक्रियाओं को समझते हैं और अपनी ज्ञान क्षमता को विकसित करते हैं। प्रयोगशालाओं में विभिन्न उपकरण, यंत्र और सामग्री शामिल हो सकते हैं जो छात्रों को अधिक से अधिक अभ्यास करने की सुविधा प्रदान करते हैं।

पाठ्यक्रम का महत्व

पाठ्यक्रम छात्रों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह न केवल छात्रों को विषयों के बारे में ज्ञान प्रदान करता है, बल्कि उनकी सोचने की क्षमता, समस्याओं का समाधान करने की क्षमता, सहयोग करने की क्षमता, स्वतंत्रता, संगठन करने की क्षमता, और अधिक को विकसित करता है। पाठ्यक्रम छात्रों को विभिन्न कौशलों का प्रशिक्षण देता है और उन्हें एक स्थिर नियंत्रण की आवश्यकता होती है।

पाठ्यक्रम के लाभ

पाठ्यक्रम के कई लाभ हैं जो छात्रों को प्राप्त होते हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण लाभ हैं:

1. ज्ञान और कौशल

पाठ्यक्रम छात्रों को विषयों के बारे में ज्ञान और कौशल प्रदान करता है। यह उन्हें विषय के मूल तत्वों, सिद्धांतों, और तकनीकों के साथ संपर्क करने की संभावना प्रदान करता है।

2. व्यक्तिगत विकास

पाठ्यक्रम छात्रों के व्यक्तिगत विकास को बढ़ाता है। यह उन्हें सोचने की क्षमता, समस्याओं का समाधान करने की क्षमता, सहयोग करने की क्षमता, स्वतंत्रता, संगठन करने की क्षमता, और अधिक को विकसित करता है।

3. स्वास्थ्य और शारीरिक विकास

पाठ्यक्रम शारीरिक विकास को भी प्रोत्साहित करता है। यह छात्रों को विभिन्न शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने की प्रेरणा देता है और उनकी स्वास्थ्य को सुधारता है।

4. करियर विकास

पाठ्यक्रम छात्रों के करियर विकास को भी समर्थन करता है। यह उन्हें विभिन्न कौशलों का प्रशिक्षण देता है और उन्हें अधिक संभावित रोजगार के लिए तैयार करता है।

संक्षेप में

पाठ्यक्रम छात्रों के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह छात्रों को विषयों के बारे में ज्ञान प्रदान करता है और उनकी विभिन्न कौशलों का प्रशिक्षण देता है। पाठ्यक्रम छात्रों को व्यक्तिगत विकास, शारीरिक विकास, करियर विकास और अधिक के लिए तैयार करता है।

Photo of author
Published by

Related Posts

Leave a comment