कक्षाध्यापक या विषयाध्यापक
कक्षाध्यापक या विषयाध्यापक एक महत्वपूर्ण शिक्षा पेशेवर होता है जो विद्यार्थियों को विभिन्न विषयों में शिक्षा प्रदान करता है। उनका मुख्य कार्य होता है विद्यार्थियों को ज्ञान और समझ के साथ विषय के विभिन्न पहलुओं की समझ प्रदान करना।
एक कक्षाध्यापक या विषयाध्यापक को अच्छी शिक्षा योग्यता और विषय के गहन ज्ञान की आवश्यकता होती है। उन्हें विद्यार्थियों को पढ़ाने, उनके सवालों का उत्तर देने, उन्हें सही और गलत की पहचान करने में मदद करने के लिए अच्छी संचालना कौशल की आवश्यकता होती है।
शिक्षक को अपने विषय पर अधिकार होना चाहिए अर्थात उसे अपने विषय का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। इस सिद्धांत के अनुसार उसे कक्षाओं में केवल अपना ही विषय पढ़ाना चाहिए, लेकिन विद्यालयों में कार्य विभाजन से संबंधित दो प्रणालियाँ देखी जाती हैं – पहली, शिक्षक अलग-अलग कक्षाओं में अपना विषय पढ़ाता है, दूसरी प्रणाली के तहत एक शिक्षक पढ़ाता है। सभी विषय एक ही कक्षा में। एक प्रणाली को विषय शिक्षक प्रणाली तथा दूसरी प्रणाली को कक्षा शिक्षक प्रणाली कहा जाता है। इन दोनों प्रणालियों की अपनी-अपनी खूबियाँ और खामियाँ हैं। उनका उल्लेख दृष्टव्य है-
विषयाध्यापक प्रणाली (Subject Teacher Pattern)
विषयाध्यापक प्रणाली के पक्ष में निम्नांकित तर्क प्रस्तुत किये जा सकते हैं-
(1) विषयाध्यापक सम्पूर्ण कक्षाओं को एक ही विषय पढ़ाता है। वह उस विषय का पण्डित होता है। फलतः वह उस विषय को विश्वास के साथ पढ़ा सकता है। उसक सारा धन तथा प्रयास एक ही विषय के शिक्षण पर केन्द्रित रहते हैं।
(2) वह अपने विषय के शिक्षण से सम्बन्धित सहायक सामग्री के निर्माण तथा प्रयोगों पर चिन्तन कर सकता है। उनकी सहायता से शिक्षण को आकर्षक तथा रोचक बनाया जा सकता है।
(3) विषयाध्यापक अपने विषय को कई वर्षों तक छात्रों को पढ़ाता है। क्रमोन्नति होने पर भी उन छात्रों को वही अध्यापक पढ़ाता है। परिणामस्वरूप, विषयाध्यापक का छात्रों से कई वर्षों तक सम्पर्क बना रहता है। अतः वह छात्रों की स्थिति तथा आवश्यकताओं को नली प्रकार समझ सकता है।
(4) विषयाध्यापक अपने विषय के शिक्षण के सम्बन्ध में वर्ष भर के लिए सुनियोजित योजनाएँ बना सकता है।
(5) विषयाध्यापक प्रणाली के अन्तर्गत विभिन्न विषयों की प्रयोगशाला की स्थापना करना सम्भव होता है। विषयगत प्रयोगशालाओं के द्वारा वैज्ञानिक तथा व्यावहारिक शिक्षण सम्भव होता है।
(6) विषयाध्यापक अपने विषय के शिक्षण के लिए उपयुक्त विभिन्न शिक्षण पद्धतियों का विस्तृत ज्ञान प्राप्त कर सकता है और विषय शिक्षण के लिए अनेक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सर्वोत्तम पद्धति का पृथक-पृथक छात्र समूहों के शिक्षण में प्रयोग कर सकता है।
(7) इस प्रणाली के अन्तर्गत छात्रों को अनेक विषय विशेषज्ञों द्वारा शिक्षण प्रदान किया जाता है अतः छात्र कई अध्यापकों के सम्पर्क में आते हैं उससे उनके दृष्टिकोण में व्यापकता का संचार होता है।
इस प्रणाली के विपक्ष में सामान्यतया निम्नलिखित तर्क दिये जाते हैं–
(1) एक ही विषय को पढ़ाते पढ़ाते शिक्षक ऊब जाता है। अतः उसमें नवीनता, सरसता तथा उत्साह का अभाव हो जाता है।
(2) इस प्रणाली में विषयाध्यापक शिक्षण प्रक्रिया में प्रमुख स्थान ग्रहण करता है और विद्यार्थी को अधिक महत्वपूर्ण स्थान नहीं मिल पाता है। इस दृष्टिकोण से यह पद्धति आधुनिक विचारधाराओं के विपरीत है कि शिक्षण में छात्र को प्रमुख स्थान दिया जाना चाहिए।
(3) कोई भी शिक्षक छात्रों के व्यवहार, आचरण, आदत इत्यादि के विकास की ओर ध्यान नहीं देता है वह तो केवल अपने विषय के शिक्षण को ही महत्व देता है।
(4) विषयाध्यापक प्रणाली में सभी विषय एक दूसरे से पृथक होते हैं, उनमें पारस्परिक समन्वयः नही हो पाता है। अध्यापक अपने विषय की ओर ही ध्यान देते हैं। ये भूल जाते हैं कि छात्र को अन्य विषय भी पढ़ने है।
(5) प्रत्येक विषयाध्यापक अपने विषय से सम्बन्धित गृहकार्य बालकों को देता है। इससे बालकों पर इतना अधिक गृहकार्य हो जाता है कि वे कार्य भार से अधिक दब जाते हैं।
एक अच्छे कक्षाध्यापक के गुण
एक अच्छे कक्षाध्यापक को विद्यार्थियों के साथ अच्छी संबंध स्थापित करने की क्षमता होनी चाहिए। वे विद्यार्थियों को समझते हैं और उनकी जरूरतों को समझते हैं ताकि वे उन्हें सही ढंग से पढ़ा सकें। एक अच्छे कक्षाध्यापक को विद्यार्थियों के प्रति समर्पण और संवेदनशीलता होनी चाहिए।
एक और महत्वपूर्ण गुण है अच्छी संचालना कौशल। एक अच्छे कक्षाध्यापक को विद्यार्थियों की ध्यान केंद्रित करने की क्षमता होनी चाहिए और उन्हें पढ़ाने के लिए उचित मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिए। वे विद्यार्थियों को अच्छी तरीके से समय प्रबंधन करना सिखाने में मदद करने चाहिए और उन्हें स्वयंसेवकता और स्वतंत्रता के महत्व को समझने में मदद करने चाहिए।
कक्षाध्यापक प्रणाली
कक्षाध्यापक प्रणाली के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं-
(1) कक्षाध्यापक प्रणाली के अन्तर्गत कक्षा का सम्पूर्ण भार एक ही अध्यापक पर होता है परिणामस्वरूप वह उत्तरदायित्व का अनुभव करता है तथा बालकों के विकास में रुचि लेता है।
(2) इस व्यवस्था में शिक्षक व बालक लम्बे समय तक एक-दूसरे के निकट रहते हैं। फलतः परस्पर सम्पर्क अधिक होता है वे सरलता से एक दूसरे को समझ लेते हैं।
(3) समन्वित शिक्षण (Co-ordinated Teaching)- इस प्रणाली में सम्भव है, क्योंकि सभी विषयों का शिक्षण एक ही शिक्षक द्वारा किया जाता है। इसमें सभी विषयों के बीच सुनियोजित समन्वय स्थापित किया जा सकता है।
(4) हम जानते हैं कि सभी विषयों का कठिनाई स्तर अलग-अलग होता है इसलिए कक्षाध्यापक प्रणाली में कठिनाई स्तर के अनुसार अलग-अलग विषयों को अलग-अलग मात्रा में समय एवं परिश्रम दिया जा सकता है।
(5) कक्षाध्यापक को अलग-अलग विषय पढ़ाने पढ़ते हैं इसलिए शिक्षक ऊब का अनुभव नहीं करते हैं।
(6) कक्षाध्यापक प्रणाली के अन्तर्गत विद्यालय की समय सारणी बनाने में सुविधा रहती है।
(7) कक्षाध्यापक पर सम्पूर्ण कक्षा का दायित्व रहता है अतः वह बालकों के सर्वागीण विकास की और सचेत रहता है।
कक्षाध्यापक प्रणाली के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं-
(1) प्रत्येक शिक्षक के शिक्षण की एक विशेषता होती है एक ही शिक्षक से एक जैसी विशेषताओं से युक्त शिक्षण पद्धति से लगातार 6 या 7 कालाशों तक पढ़ते-पढ़ते छात्र शिक्षा में ऊब तथा नीरसता का अनुभव करते हैं।
(2) एक शिक्षक को सभी विषयों का पर्याप्त ज्ञान हो, ऐसा सम्भव नहीं है।
(3) इस व्यवस्था के अन्तर्गत बालक अन्य शिक्षकों के सम्पर्क में नहीं आ पाता है।
एक कक्षाध्यापक की भूमिका
कक्षाध्यापक की भूमिका विद्यार्थियों को विषय के प्रति रुचि और उनके अध्ययन में सहायता करना होती है। वे विद्यार्थियों को नए और रोचक ढंग से सोचने की प्रेरणा देते हैं और उन्हें स्वतंत्रता के साथ सोचने की क्षमता विकसित करने में मदद करते हैं।
कक्षाध्यापक को विद्यार्थियों की समझ को मापने और मूल्यांकन करने की क्षमता होनी चाहिए। वे विद्यार्थियों को विषय के विभिन्न पहलुओं की समझ करने में मदद करते हैं और उन्हें उनके प्रदर्शन के आधार पर गुणांकन करते हैं। कक्षाध्यापक को विद्यार्थियों के विभिन्न शैली और धारणाओं की समझ होनी चाहिए और उन्हें उनके अध्ययन में उनकी शक्ति के अनुसार मार्गदर्शन करना चाहिए।
संक्षेप में
कक्षाध्यापक या विषयाध्यापक विद्यार्थियों को विषय के गहन ज्ञान और समझ के साथ पढ़ाने का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। एक अच्छे कक्षाध्यापक को विद्यार्थियों की समझ को मापने और मूल्यांकन करने की क्षमता होनी चाहिए और उन्हें उनके अध्ययन में उनकी शक्ति के अनुसार मार्गदर्शन करना चाहिए। कक्षाध्यापक की भूमिका विद्यार्थियों को विषय के प्रति रुचि और उनके अध्ययन में सहायता करना होती है।