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भाषा शिक्षण की आवश्यकता | Need of Language Teaching B.Ed Notes

Published by: Ravi Kumar
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यदि शिक्षा-क्रम के गुण आ जाएँ तो उसके द्वारा एक सन्तुलित व्यक्तित्व का विकास हो सकता है परन्तु प्रश्न यह है कि इस प्रकार शिक्षा क्रम को वहन करने का माध्यम क्या हो?

भली-भाँति मनन करने से स्पष्ट हो जाता है कि भाषा ही राष्ट्र के विचारों तथा भावनाओं को व्यक्त करने का अनुपम साधन है इसके द्वारा व्यक्ति अपना अभिप्राय दूसरों पर प्रकट करता है। भाषा एक ऐसा माध्यम है जो समाज या राष्ट्र के रंगमंच पर होने वाले विविध क्रियाकलापों, घात-प्रतिघातों तथा घटनाक्रमों से उद्वेलित मानव मन के उद्गारों को वाणी प्रदान करती है।

भाषा हमारी सम्पूर्ण अभिव्यक्ति का माध्यम है। इसी से सभ्य असभ्य की पहचान होती है। इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र आदि कोई भी विषय क्यों न हो भाषा के अभाव में उसका प्रकटीकरण सम्भव नहीं है। इसीलिए हमारे शिक्षाक्रम में भाषा का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। इसी कारण सभी देशों में स्नातक स्तर तक भाषा की शिक्षा अनिवार्य है।

जहाँ एक और भाषा अभिव्यक्ति का प्रमुख साधन है वही दूसरी ओर भाषा अपने देश एवं संस्कृति का परिचय प्राप्त कराती है। भाषा ही एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा हम अपने ज्ञान-विज्ञान को संचित रख सकते हैं। जीवन की यात्रा में भाषा ही हमारा सच्चा साथी है। हम कहीं भी यात्रा कर रहे हों, कहीं भी भाषण दे रहे हाँ भाषा ही हमारा सहारा बनती है। क्या घर में, क्या बाजार में, क्या एकान्त में, क्या समाज में हमें सभी स्थान पर भाषा चाहिए।

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जिस राष्ट्र या जाति की अपनी भाषा नहीं, उसकी संस्कृति जीवित नहीं रह सकती। जिस देश या जाति के पास अपनी समृद्ध भाषा नहीं, वह समय की दौड़ में पिछड़ जाएगा।

भाषा शिक्षण के उद्देश्य (AIMS AND OBJECTIVES OF TEACHING LANGUAGE)

राष्ट्र के पुनर्निर्माण के कार्य में भाषा की शिक्षा का विशेष महत्व है। भाषा के माध्यम से छात्र ज्ञान विज्ञान के अनेकानेक विषयों का अध्ययन करता है। यदि छात्र का अधिकार भाषा पर नहीं होता तो वह ज्ञान के अन्य क्षेत्र में भी प्रगति नहीं कर पाता। भाषा ही हमारे चिन्तन का आधार है। किसी भी जनतंत्र की सफलता उसके नागरिकों के चिन्तन पर निर्भर करती है और इस चिंतन में भाषा की सबल भूमिका रहती है। भारतीय गणराज्य के सात राज्यों में छात्रों की मातृभाषा हिन्दी है और अन्य राज्यों में इसका स्थान राष्ट्रभाषा एवं राजभाषा के रूप में द्वितीय भाषा का होता है। जिस राज्य में हिन्दी मातृभाषा के रूप में व्यवद्धत है, वहाँ के लोगों का यह कर्तव्य है कि वे छात्रों के भाषा ज्ञान को बढ़ाएँ और उन्हें इस बात की प्रेरणा दें कि वे हिन्दी पर अधिकार प्राप्त कर सकें।

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नीचे मातृभाषा शिक्षण के कुछ ऐसे सामान्य सूत्र दिए गए हैं, जिनको ध्यान में रखने से हमें मातृभाषा के प्रति छात्रों की रुचि के विकास में सहायता मिल सकेगी- –

  • मानव भाषा जीवन की एक बहुत ही सहज प्रक्रिया है। इसे बच्चा अनायास खेल-खेल में सीखने लगता है और समय व परिस्थिति के अनुसार उसकी भाषा का विकास होता चला जाता है। सीखने वाले पर कोई भाषा थोपी नहीं जा सकती। इसका विकास उसके अन्दर से स्वयं होना चाहिए। शिक्षक उस विकास में सहायता पहुँचा सकते हैं।
  • भाषा का शिक्षण यथा सम्भव अनौपचारिक होना चाहिए। पढ़ाने में बहुत अधिक औपचारिकता आ जाने से पढ़ाई जाने वाली भाषा का स्वरूप कृत्रिम हो जाने की सम्भावना है। भाषा को सीखते और सिखाते समय छात्र और अध्यापक दोनों को ही आनन्द की अनुभूति होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो भाषा विकास में अवश्य ही कहीं कमी है।
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Ravi Kumar is a content creator at Sarkari Diary, dedicated to providing clear and helpful study material for B.Ed students across India.

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