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मनोविज्ञान क्या है? जानें शिक्षा में इसके प्रभाव और योगदान के बारे में

Published by: Ravi Kumar
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मनोविज्ञान का परिचय

मनोविज्ञान, मानव और पशु व्यवहार के अध्ययन का विज्ञान है, जो व्यक्ति के मानसिक प्रक्रियाओं, भावनाओं, सोच, और व्यवहार को समझने का प्रयास करता है। यह विज्ञान व्यक्ति की मानसिक स्थिति, उसके मानसिक विकास, सोचने की क्षमता, भावना और उसकी विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के बीच के संबंधों का गहन अध्ययन करता है।

मनोविज्ञान क्या है?

रायबर्न के अनुसार, मनोविज्ञान ने अपनी शुरुआत अरस्तू के समय में दर्शनशास्त्र के अंग के रूप में की थी। सैकड़ों वर्षों तक मनोविज्ञान का विवेचन दर्शनशास्त्र के तहत होता रहा, लेकिन आधुनिक समय में यह धीरे-धीरे दर्शनशास्त्र से अलग होकर एक स्वतंत्र विज्ञान बन गया।

मनोविज्ञान के बारे में प्रमुख वैज्ञानिकों और दार्शनिकों के विचार इस प्रकार हैं:

  • वाटसन के अनुसार: “मनोविज्ञान, व्यवहार का निश्चित विज्ञान है।”
  • वुडवर्थ के अनुसार: “मनोविज्ञान, वातावरण के संबंध में व्यक्ति की क्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन है।”
  • स्किनर के अनुसार: “मनोविज्ञान, जीवन की सभी परिस्थितियों में प्राणी की प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है।”

इन परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो व्यक्ति और प्राणी के विभिन्न मानसिक और शारीरिक क्रियाओं को समझने का प्रयास करता है।

मनोविज्ञान की परिभाषाएँ

मनोविज्ञान के क्षेत्र में कई प्रमुख वैज्ञानिकों ने इसे विभिन्न रूपों में परिभाषित किया है। इनमें से कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं:

  • स्किनर के अनुसार: “मनोविज्ञान, व्यवहार तथा अनुभव का विज्ञान है।”
  • बोरिंग, लैंगफेल्ड, और वेल्ड के अनुसार: “मनोविज्ञान, मानव-प्रकृति का अध्ययन है।”
  • गैरिसन और अन्य के अनुसार: “मनोविज्ञान का संबंध प्रत्यक्ष मानव-व्यवहार से है।”
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इन परिभाषाओं से यह भी स्पष्ट होता है कि मनोविज्ञान का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक व्यवहार का अध्ययन करना है।

मनोविज्ञान की प्रकृति

मनोविज्ञान एक विज्ञान के रूप में यह सुनिश्चित करता है कि इसके अध्ययन की विधियाँ वैज्ञानिक और प्रमाणिक हों। इसके प्रमुख तत्व इस प्रकार हैं:

  1. वैज्ञानिक विधियाँ: मनोविज्ञान में विभिन्न वैज्ञानिक विधियाँ जैसे प्रयोगात्मक विधि, निरीक्षण विधि, सांख्यिकीय विधि आदि का उपयोग किया जाता है।
  2. प्रामाणिकता: मनोविज्ञान के अध्ययन में प्रामाणिकता का होना आवश्यक है, अर्थात यह अध्ययन प्रमाणित और विश्वसनीय होना चाहिए।
  3. वस्तुनिष्ठता: मनोविज्ञान में अध्ययनकर्ता द्वारा किए गए निष्कर्ष वस्तुनिष्ठ होने चाहिए, यानी सभी अध्ययनकर्ता एक ही निष्कर्ष पर पहुंचें।
  4. भविष्यवाणी की योग्यता: किसी व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करने के आधार पर भविष्यवाणी करना भी मनोविज्ञान के अध्ययन का हिस्सा है।
  5. सार्वभौमिकता: मनोविज्ञान के सिद्धांत और नियम सार्वभौमिक होने चाहिए, यानी सभी प्राणियों पर लागू होने वाले होने चाहिए।

इन सिद्धांतों के आधार पर मनोविज्ञान को एक प्रमाणिक और वस्तुनिष्ठ विज्ञान माना जाता है।

मनोविज्ञान का क्षेत्र

मनोविज्ञान का अध्ययन केवल मानव तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें पशु और अन्य प्राणियों के व्यवहार का भी अध्ययन किया जाता है। मनोविज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में अध्ययन किया जाता है, जिनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं:

  1. सामान्य मनोविज्ञान: इसमें सामान्य परिस्थितियों में मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।
  2. असामान्य मनोविज्ञान: इसमें असामान्य या मानसिक विकारों से जुड़ा व्यवहार अध्ययन किया जाता है।
  3. बाल मनोविज्ञान: इसमें बच्चों के शारीरिक, मानसिक, और संवेगात्मक विकास का अध्ययन किया जाता है।
  4. शारीरिक मनोविज्ञान: इसमें शारीरिक क्रियाओं और मानसिक प्रक्रियाओं के बीच के संबंध का अध्ययन किया जाता है।
  5. समाज मनोविज्ञान: इसमें समाज और समूह में व्यक्तियों के व्यवहार के अध्ययन पर जोर दिया जाता है।
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मनोविज्ञान का शिक्षा में योगदान

मनोविज्ञान ने शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण योगदान किए हैं। यह बालकों की शिक्षा की पद्धतियों, उनके मानसिक विकास, और उनकी शिक्षण प्रक्रिया को बेहतर बनाने में सहायक रहा है। निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से हम मनोविज्ञान के शिक्षा में योगदान को समझ सकते हैं:

  1. बालक का महत्व: पहले शिक्षा में बालक की कोई भूमिका नहीं थी, लेकिन मनोविज्ञान ने यह सिद्ध किया कि शिक्षा को बालक के केंद्र में रखकर उसे प्रभावी बनाया जा सकता है।
  2. बच्चों की विभिन्न अवस्थाओं का महत्व: मनोविज्ञान ने यह बताया कि बच्चों की मानसिक और शारीरिक आवश्यकताएँ उनकी आयु के साथ बदलती हैं, और इसलिए शिक्षण विधियाँ भी बदलनी चाहिए।
  3. बच्चों की रुचियाँ और मूल प्रवृत्तियाँ: मनोविज्ञान ने यह सिद्ध किया कि बच्चों की रुचियों और प्रवृत्तियों के आधार पर शिक्षा को अनुकूलित किया जाना चाहिए।
  4. पाठ्यक्रम में सुधार: मनोविज्ञान के सिद्धांतों ने पाठ्यक्रम को और अधिक बालक-केंद्रित, जीवनोपयोगी और व्यवहारिक बनाने में मदद की है।
  5. शिक्षण विधियों में सुधार: मनोविज्ञान ने “करके सीखना” जैसी शिक्षण विधियाँ विकसित की हैं, जो बच्चों को सक्रिय रूप से शिक्षा में शामिल करती हैं।
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निष्कर्ष

मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो मानव और पशु व्यवहार के अध्ययन से संबंधित है। इसके द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जिससे शिक्षा को अधिक प्रभावी, वैज्ञानिक, और बालक-केंद्रित बनाया जा सका है। यह न केवल बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास को समझने में सहायक है, बल्कि यह उनकी शिक्षण प्रक्रिया को भी अधिक समझदार और उपयोगी बनाता है।

मनोविज्ञान का शिक्षा में योगदान अतुलनीय है और यह न केवल शिक्षकों को, बल्कि शिक्षा नीति निर्धारणकर्ताओं और बच्चों के अभिभावकों को भी उनकी भूमिका को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है।

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Ravi Kumar is a content creator at Sarkari Diary, dedicated to providing clear and helpful study material for B.Ed students across India.

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