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ए.के. झा जी की जीवनी – खोरठा साहित्यकार

Published by: Ravi Kumar
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खोरठा साहित्यकार ए.के. झा जी की जीवनी

नाम – ए.के. झा
पुरा नाम – अजीत कुमार झा
उपनाम – ‘झारपात’, वेदरवाइज
पिता – लक्ष्मी नारायण झा
माता – कुसुम बाला झा
जन्म – 20 जून, 1939
मृत्यु – 29 सितंबर, 2013
जन्म स्थान – ग्राम- चंडीपुर, कसमार, बोकारो
वर्तमान पत्ता – पेटरवार, बोकारो
नौकरी – पतरातु थर्मल पावर स्टेशन (पी.टी.पी.एस. रामगढ़)
शिक्षा – बी.एस.सी.

उपाधि

श्री निवास पानुरी सम्मान, सपूत सम्मान, डॉक्टरेट (मानद उपाधि), महादेशोत्तम शताब्दी रत्न (मौसम विज्ञान)

डॉ ए.के. झा जी की साहित्यिक जीवन

डॉ. ए.के. झा की बहुभाषिक, वैज्ञानिक दृष्टि संपन्न साहित्यकार रहे हैं ।वैज्ञानिक दृष्टि रहने के कारण ही साहित्य को सिर्फ मनोरंजन की वस्तु न मानकर साहित्य को समाजविज्ञान के रूप में माना है। वैज्ञानिक दृष्टि के कारण ही इनकी रचनाएं कपोलकल्पना से रहित तर्कपूर्ण एवं वैज्ञानिक दृष्टि सम्मत रही है ।

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इनकी रचनाओं में कहीं भी हल्कापन और फूहड़ता की गुंजाइश नहीं रही है। हितेंन सह सहितम तरथ भाव साहित्यम या सहित्यस भाव साहित्यम की परिभाषा में खरा उतरने वाली रचना को ही साहित्य माना है और तब अपने को साहित्यकार मानने के पक्षधर रहे हैं। अर्थात जिस रचना विशेष में मानव हित, अविकल, अबाधित सम में समाहित हो, जो रचना ‘सहित’ अर्थात सबों को साथ-साथ लेकर की भावना से ओत-प्रोत हो वही साहित्य है ।

उन्होंने अपने जीवन काल में साहित्य सृजन का एक सूत्र गढ़ा था ।“माय, माटी, मानुस और मातृभाषा ।” इन्होंने जीवनपर्यंत इस सूत्र का इस्तेमाल अपने साहित्य सृजन में किया ।बाद में यही सूत्र परवर्ती खोरठा साहित्यकारों का प्राणतत्व बन गया। अर्थात आज जो खोरठा में लिखा जा रहा है वह झा जी इसी सूत्र का अनुसरण कर लिखा जा रहा है। ये खोरठा ही नहीं वरन झारखंडी भाषा-संस्कृति आंदोलन की अग्रिम पंक्ति की योध्दा रहे हैं।

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इन्होंने जीवन पर्यंत बिना रुके, बिना थके, अनवरत खोरठा भाषा को स्थापित करने के लिए सड़क से संसद तक संघर्ष करते रहे और अपने जीवन काल में खोरठा के पढ़ाई यूजीसी मान्यता दिलवाकर यूनिवर्सिटी स्तर पर आरंभ करवायी । झा जी खोरठा भाषा का अनार्य मुलक भाषा मानते रहे हैं फलतः इसकी कई अनार्य मूलक विशेषताओं एवं अन्य मानववादी विशेषताओं का चिन्हित कर भारतीय विज्ञान कांग्रेस संगठन के सम्मेलनों में भाषाविदों के मानववादियों के सामने रखा।
‘लुआठी’ पत्रिका के संपादक गिरधारी गोस्वामी ने खोरठा आधुनिक काल में पुनर्जागरण युग को ‘झा युग’ कहा है।

ए के झा जी की प्रमुख साहित्यिक कृतियाँ

– खोरठाक काठें पइदेक खंडी (एकल कबिता संग्रह)

– खोरठाक काठें गइदेक खंडी (एकल निबंध संग्रह)
– समाजेक सरजूइत निसइन (काइब)
– कबिता पुराण (छउआ कबिता- बाल कबिता)
– सइर सगरठ (उपन्यास) –
– मेकामेकी न मेटमाट (नाटक)
– खोरठा रस, छंद, अलंकार

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निबंध

– खोरठा भाषा विज्ञान
– मंगल पर (हिंदी-मौसम विज्ञान की पुस्तक)

संपादन

1. खोरठा लोक साहित्य
2. खोरठा लोक
3. दू डाइर जिरहुल फुल एवं दू डाइर परास फुल
4. खोरठा गइद्द-पद्द संग्रह
पत्र-पत्रिका – तितकी – तीन मसिया, कोठार, खोरठा ढाकी छेतर कमेटी, कोठार, रामगढ़

संस्थाओं का गठन

1. खोरठा ढाकी छेतर कमेटी, कोठार, रामगढ़ – अध्यक्ष
2. खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद – पूर्व अध्यक्ष मौसम विज्ञान के रूप में उपनाम – ‘वेदरवाइज

सिद्धांत – धरा गगन सिद्धांत

साहित्य सिद्धांत

माय, माटी, मानुस, मातृभाषा सिद्धांत

प्रमुख निबंध रचनाएं

1. साहित्य ना समाज विज्ञान (खोरठा काठे गइदेक खंडी में प्रकाशित)
2. भगवानेक बापेक मुंहा मुंही

तितकी पत्रिका के दो विशेषांको का संपादन

1. एक टोकी फूल – बड़
2. एक टोकी फूल – छोट

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Ravi Kumar is a content creator at Sarkari Diary, dedicated to providing clear and helpful study material for B.Ed students across India.

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