कविताएँ | ||
क्र• सं• | कविता के नाम | कविता के लेखक |
1 | आइझ एकाइ खोरठा | ए• के• झा |
2 | तबें हम कबि नाय | |
3 | महुआ मनिता | श्री अतुल चन्द्र मुखर्जी |
आइझ एकाइ खोरठा – श्री ए• के• झा
आगुक सभे कबिते, सभे गइदें – गीतें
गोटे सदानिक दोहाइ देलिओ
एकताक सुर बोहाइ देलियो ।
मुदा आइझ एकाइ खोरठाक
भेंट दहिअइ ई कविता टाक!
काहे ना एते बोड खोरठा छेतर
तवो एकर नाँद्र बाढेक बतर
लाख-लाघ मु-s रहइथु काका
बड – बोड़ बुजरुक बिआइ के बोका
आकाशवाणी गीत नां, इ पढेक राँची थित नांइ ?
कखनो बोका लोके ठकि देलइ काहां,
एम. ए. में खोरठा काहां ?
बस ठेकइन तथि आइ-बाइ
अइला गीदर घर पाराइ!
चाइरो बाटे भेल गोहाइर, सुने परलक हमरो गाइर
केउ – केउ कहला
“चेगा क्लासें खोरठे नांइ
बोका घँखे एम. ए. क पढ ई।”
छोट बातेक बोड बनल बात फेचाँगे – फेचाग के बरियात।
मेंनेक आयाँ बात ?
आयाँ बतवो तो हलइ निठा
लिखलोहो हलय काटल खोरठा
आगु तो पतियार करलो नॉइ पर,
कइ गो छउवें देखउला गाइ
एहे सब में कइ बछरें
गनल – गुथल गीदर सब
करवे पारला एडमिसन
पढल्हूँ पढ़ला जइसने – तइसन !
जे होवोक बिहिन तो बुनाइल हइ
जदियो टोपरे में, ढाकी नखइ ।
मेंनेक बात कि एतने हइ ?
नॉ नॉइ, आरो देइरे टनतइ
आगुवे बिहीन बनल हला
व्याकुल जी व्याकुल भेल हला
आर पानुरी जी “तितकी” बराइ के
छठवा – पूता के रगवल हल
कहे पारा, रागला काहे ?
तो छोडिवा पुते कहलथिन
ठुनकी-ठुनकी पानुरीजी ठिन
खोरठा के खिआइ – खिआइ के
हामनिक तो खिआइ देलें
भात लुगाक भारी अभावें
भुसे पटपटाइ टउआइ देखे
पानुरीजी हाहनिसार तभु किछोडला से डहर
तखन उनखा जोर देलथी
जुगतीतवा विदुवान राहुलजी ! कहलथि
हाइनि सारेक डाँडी परिहा नॉइ
आर कवि सरकारी रनिहा नाँइ ।
महजूत हइ ले डुबेक चिठियो ?
जकरा देखे पारा तोहनियो
तितिन ठिने छापाइ देल हियो
फइर प्राड प्राड सइए बेरें ?
चल हला एहे डहरवे
सदियो सनी कमे कमें
कहाइ जादव गोलवार जी
तिजू महतो रनवीर आदि
तबे हमें कवि नाँइ – श्री ए. के. झा
जदि कबि माने सुधे भाट, तबे हमें कबि नाइ !
जदि कबिक काम नटुआ नाच, तावो हाम, कबि नाइ
जदि कबि माने किल्वि करवइया तभू हामें कबि नांइ
जदि कबि माने हवे गवइया, तावो हाम, कबि नाइ
किले ना
जदि कबि माने गवइया
सवे सेरा कबि लता मंगेशकर !
जदि कबि माने बस नचवइया
तबे महानकबि उदय शंकर !
तबे !
जदि कबि माने साहितकार-
जदि कबि माने साहितकार !
आर कबिता माने
भाभेक- गुनेक विचारेक घार!
सबे हामहूँ एगो छोट मोट कबि
जाने नांइ जे काय – किल्बि!
हामें आपन कबिता पढ़वो
मानुस महतेक भनिता गढ़वो!
पारबो नाइ पिदके नाचे भाई
पारबो नांइ पिदके नाचे भाई
जदि कबिता माने नाच गान
तबे हमें कबि नाँइ।।
महुआक भनिवा – श्री अतुल चंद्र मुखर्जी
महुआ- रे तोर में जो कते ना गुन होव,
तो गुणे सब बात कहे नाञ पारबोव ।
तोर गाछ टाक नाम हीरा,
जेकर से पावही गुर – घीव- बंगन जीरा ।
तोरा सिझावल परें, खाय में बड़ी मजाघरे,
खुशी-खुशी बांटी खात लोक घरें बाहरें ।
तेतइ रचिंआ देले पारे, सवादे बाढ़ड़ चमत्कार
तोर गुनेक कथा कहब कतेक बार ।
तोर गाछ टाक नाम महुल, फायदा सबके अति बहुल। तोर फर टाक नाम कचरा, गीदर बुसक जनि मर्द सभे छोछरा ।
तोर गोटा से तेल हवेहे अति चमत्कार, कमियां सब मालिस करत दरद से भइ लाचार ।
तोर तेल से छांकाय घाटरा आरबारा रोटी, छोटानगपुरेक सोंगत पइठवेक परिपाटी ।
बेटी घरे पारतायं देले समधिन हके टहटह गरब,
तोर गुनेक कथा कते जे हम कह
तोर काठ से बनइ खेतीक जुवाइठ- हार
जेकर बिना किसान हवथ लाचारि
कालाली में गेल परे महक से नाक- मुंह भरे
मारा-मारी – गारागारी होवइ बड़ी बेसहब,
तोर गुनेक कथा कते जे हम कह
अतुल मासटरेक एहे भनिता
तोर लकड़ी से बनाई दिहा चिता
अंत काले सेइ चिता में सुखे सुतल रहक
महुआरे ! तोर गुनेक काथा कते जे हम कहब