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हुब सोंध माटी खोरठा कहानी (Author – Dr. Vinod Kumar) || JSSC CGL Khortha Notes

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हुब सोंध माटी खोरठा कहानी (Author – Dr. Vinod Kumar)

‘हुब’ सोंध माटी खोरठा कहानी (Author – Dr. Vinod Kumar)
‘हुब’ सोंध माटी खोरठा कहानी (Author – Dr. Vinod Kumar)

‘पुस महिनाक दिन, अँधरेक बेरा कनकन सिलोही बोहे लागल हेलइ। चार के पेछुवाइंर में दामोदर बोरसी ताइप-ताइप बइसल हेल सेहे घरी गुनेसर . बाबु डाँकलथिन, ऐ-रे दामोदर घारे हँय। आवाज आइल – हाँ घारे ही, हिंदे बइसल ही, कि काम हेलय ? एक रे तनि बारि चासेक हलइ। तनि जाँय हारा जोइत दे, गुनेसर बाबु कहलथिन आर घार घुइर गेलथिन। घार घुइर के तोसक लागल पलंग पर नेहाली ओइढ़ पसइर गेलथिन। पथरलेहें सिताराम-सिताराम जपे लागला! घड़ी बितल, दू घड़ी बितल, घंटो बित गेलइ मुदा दामोदर नाञ् आइल! आब तो गुनेसर बाबुक एडीक लहइर. कपार चइघ गेलक। पलंगे – पर बड़बड़ाय लागला – सार भुंइया के दू चाइर सेर घरामें हय तकरे पर F फुटनिया करे लागल हैं। बड़का पढुवा भेल है। कॉलेज ने पढ़े लाग़ल तो बड़ला नेहाल करे लागला किंसान घर कमाइल बिना गुज़ारो चलतइ। (घार में भुंजल भाँग नाञ् एने-ओने टाँगा) चाइर गो कुरय पहिलेहें उधार खइलक आर चलल हे बाबु बनइले। हार जोतेक नावें कलपतर जोरे हे। अच्छा बछा बुझइबठ। तुलसीदासो आपन रामाइन में ठीके लिखलथी है – ‘ढोल गंवार .सुद्र पसु नारी ई सब ताड़न के अधिकारी। एहे बड़बड़इते घर से निकल के दामोदर घार दने मोहेड गेला।

दामोदर घर जइसमें गेलथ देख्ने हथ कि दामोदर कॉलेज जाय ले संपरल है। दामोदरेक संपरोही. देख के उनखर मास जरे लागलइन। ढोढ़इस : उठलथ – सरम लागे हर कि नाञ् हार जोतेक छोइड़ कॉलेज जाय लागल हँया कॉलेजें पढ़ीहाँ; पहिले पेट के जोगाड़ कर ले, लहाँ तोय खड़ा हे ‘ओहे. हमरे जमीन है।.ई जमीन में हमर पुरखा तोर बापेक बसउलथुन। जो जादि हमीन घारें नाय  काम-धामः करबे  तो हामर जमीन छोइड़ दें, कुरय ‘करजा तोइर राख आर उइड़ जो-ताबे तो बेस आर ना तो निकाल-बाहर  करी देव। असल भुंइया हे ते हाड़-कुइट के कमो-धमा आर अजवइर  दिन ले मछरियो- खोखरा मार। पढाइ कोनो हाँसी ठठा नाञ्। माइनस-पलस पढ़लें तो गोदी पगलाइ जितउ। आरे कुछ कहतलथी लकर पहिलेहें दामोदर घर से वहराय गेल आर चुइर के गाँव नात्र आवेक किरिया खाइलेलक।

दामोदर सात भाई में सोब ले छोट रहे। ओकर बाप गुरदयाल राम गाँवेक जमींदार घर जिनगीभइर खइट मोरल। ओकर मोरल बाद छवो बेटवइन (चन्दननगर)काम के खोजहाइ रे चइल गेलथिन। एकेले दामोदर घारे रहीगेल | रहे। दामोदर गाँवेक बोड़ किसान गुनेसर बाबु घारें कमिया रूपें बहाल भेल | रहे। इस रूपिया) रोजाना पर खटे हेल। रहे दस रूपिया रोजाना से कोनो | नियर आपन आर आपन मायके पेट चलवे हेला पेट काइट के गा-बेगाह कागज कलम किन पढाइयो-लिखाइ करतला पढेक ओकर सुरूवे से साध हेलया सेले कोनो रकम मैट्रिक करी लेल रहे। आव ऊ कॉलेजें नामो लिखाइ लेलक। हरिजन होवेक चलते सातवीं से मेंटरीक तइक छात्रवृतियो) पावला। एहे छात्रवृतिक पइसा से अंगो पेंट कहर ले हेल! घार में असग बुढ़िया माव घार ओगरे हेलिका

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जे दिन दामोदर घर से(हजारीबागोजाएक ले अकचके निकलल रहे से घरी ओकर माय कहलें रहई – बेटा तोया हमर खातिर फिन जल्दी घुरिहाँ। पाकल आम के कोनो बिसवास ना कखन जे गिर जाइ वा माय के मुँह से | ई बात सुइन के दामोदर के भइर-भईर आइख लोर हो गेल रहे। मुदा गुनेसर बाबुक ढोढ़सल बात के ईआइद कइर के, पढ़ लिख के एग इस अदमी बनेक हुब के चलते मन मसोस कर के रही गेल। मने-मने माय के परनाम

कइर चलल रहे से दिन।

हजारीबाग पहुँचल ते काम के खोजहारी करे लागल। मुदा ओकर ..लाइक कहीं. काम नाञ् भेटड लइ तब रिक्सा चलवेक काम शुरू करलक। साइझे से आधा राइत तइक रिक्सा चलवंक आर दिन में कॉलेज करेक ओकर रोजिनाक रूटीन वइन गेलइ। अंधरेक बेराउ ले दू गो टिसनी पढ़बेक पकइर. लेलं रहे। अबरी बछर ऊ बी० ए० ‘ऑनर्स’ प्रथम श्रेणी से पासो करला

अपन रिजल्ट के लइ घार घुरल तो ओकर मायक खुसीक ठेकाना नात्र । परेमेक जोरें लोर बहराइ गेल रहे। माय कहलइ बेटा! आब एकेगो साध है जे तोय बेस नउकरी पकइर ले।

माय के आसिरवाद लेके दामोदर फिन सहर चइल आइल आर आपन धुवा धंधा मं लाइग गेल। दिन के समय दरोगाक कम्पीटसनेक तइयारी करे लागला मार्च महीना में परीछा में बइसियो गेल रहे, सेकरे रिजल्ट के आसरा में कहीं नउकरी खातिर दउरा-दउरी नाञ् करल। मायेक चिन्ता मुँड़े राइख कुछ पइसा जमा करे लागल। संजोगेक बात, एक दिन रिक्सा लइ के धर घुरेक ले चललक। डहरे माय खातिर 2 किलो लड्डू आर सारी-झूलो किन लेल रहे ताल-पेपर वाला भेटाय गेल रहे। पेपर किनेक ले डॉकल, तो पेपर . वाला आइल-आर पेपर दे देलक। पेपर उघाइर के जइसेहें देखेहे. दरोगाक बनेक कप्पीटसन के रिजल्ट पर नजइर पइर गेलइ। आपन रो० न० देखलक तो दामोदर मारे खुसी से नाचे लागल मने कहल आब मायके आखिरी साध |टा पुरा हतया

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घार घुरल तो देखे हे जे ओकर माय खाटी पर परल घर घरी करे … लागल हिक। माय के गोड़ लाइग चाल करल तो माय चाले ना करलिक। ‘ आँइख खोइल देखलिक तो चिन्ह लेलिक कि ओकर बेटा दामोदर ओकर नजीकें खड़ा है। हाथेक इसाड़ा से कहलिक बेटा हाम आब जाइ रहल हियो, निके सुखे रहियाँ। माय के ई दसा देइख के दामोदर कपसे लागलको मुदा मन के धउर बँधाई माय के कान तर कहलक-माय! हाम दारोगाक नउकरी खातिर चुनाइ गेलहियो। माय के आँइख खुसी से लोर बहवे लागलइ। आपन हाथ दामोदरेक उपरे राइख माय सिराइ गेलिक।

घर में दामोदर असकरूवा हइ गेल रहे। दरोगाक नउकरी पकरल तो गाँव से देइरे दूर हो गेलक। सोब करजा महाजन से निपटल तो घुइर बछर आपन बिहो करलक। आव तो आपन परिवार संग नउकरीए पर धनबादे  रहे लागल।

दु:ख सुख अदमीक जिनगी में बराबर लागले रहे है। कखना दुख तो कखनो सुख दुख में जे अदमो काम. आवे ओकर से बढ़ के बड़ आदमी आर. कोई नाञ्। गुनेसर बाब अपन परिवार सँग तिरिथ करे ले गंगा सागर गेल रहथा उनखर माय तिरिथ से घुरे घारी बेमार पइर गेल रहथी। हालइत एतन, खराप हइ गेलइन कि वुढ़ि आब पर ताब हइ गेलिका ध इनवादें आइ के गुनेसर वावु डाक्डर से देखइला आर अस्पताले भरतियो कहर देलथी। चाइरे दिन में चाइर हजार टके खरच हइगेलइ। डाक्डर कहल जे पेटेक ऑपरेशन करे पारतइ। जल्दी ऑपरेसन नाञ् भेले बुढ़ियाक बचवे नाञ् पारवाया आवतों बड़का समसिया भइ गेल रहे। ऑपरेसन में पाँच हजार आरो खरच बइठतइ। आर कुछ पइसा तो पहिले हे जमा करे पारतइ। कहाँ से तुरतें । अतना पइसा अवतइ? एहे सोंचे लागला गुनेसर वाबु। एतनेहें में ददा …. ददा करले दमोदर पहुंच गेलका पहुंचतहें पुछल, कि बात हय? किले ओखनी हियाँ ई हालइत में वइसल हथ ? गुनेसर बावु तोब बात कही देलथी आर समसियो राखला। दामोदर ढाढ़स बँधोलइ आर झट रूपियोक जोगाड़ कर देलया ओतने नाञ् उनखर परिवार सोव के आपन डेरा लाइन खुब खातिर भाव करलका डाक्डर के ऑपरेशन सफल रहल। बुढ़ी माय बाँइच गेलिका दस दिन तइक अस्पताल में रहल बाद गुनेसर बाबु परिवार समेत घर घुरल। जब तइक उनखर माय अस्पतालें रहलिक तव तइक उनकर खातिर दामोदर आपन माय नियर फल-फूल खिअउले रहल दामोदरेक ई उदारता गुनेसर बाबुक एकदम से बदइल देलका गाँवे पहुँच के गुनंसर बाबु आपन मानसिकता पर बहुत अफसोस करला। जेकरा छोट जाइत कहीके तिरस्कार करेहेला, दुर दुरावे हेला ओहे उनखर इज्जइत बँचवलक। ऊ मने भाँफला, जे जाइत से कोई बड़-छोट नाञ् हेवे सोबले परधान करम है। गाँवे जेतना पढ़ल-लिखल छउवा बढ़ता गाँव ओतने ‘तरक्की’ करता

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निष्कर्ष – दामोदर जो कि भुइया जाति का है वह गुणेशर बाबू  जो कि एक बड़ा किसान है के पास काम करता है.उसे प्रतिदिन का 10 रुपया मिलता है।  दामोदर के 6  भाई हैं लेकिन सभी शहर चले गए हैं। वह काम के साथ साथ पढता भी है।  उसे सातवीं क्लास से छात्रवृति मिला है। एक दिन गुणेशर बाबू दामोदर को घर पर काम के लिए बुलाते हैं लेकिन दामोदर नहीं जाता है. गुणेशर बाबू उसके घर जाकर उसे खरी-खोटी सुनाते हैं. दामोदर गांव छोड़कर हजारीबाग शहर चला जाता है. शहर में पढ़ता लिखता है और सरकारी नौकरी दरोगा बन जाता है। नौकरी के बाद उसका पोस्टिंग धनबाद होता है. उधर गुणेशर बाबू तीर्थ करने परिवार संग गंगा सागर जाता है.वापस लौटने पर इसी दौरान गुणेशर बाबू की मां बीमार हो जाती है गुणेशर बाबू अपनी मां को धनबाद हॉस्पिटल में भर्ती करवाता है लेकिन इलाज के लिए गुणेशर बाबू के पास पैसों की कमी होती है लेकिन दामोदर को जब पता चलता है तो वह पिछली बातों को भूल कर गुणेशर बाबू की मदद करता है

इस तरह गुणेशर बाबू को एहसास होता है कि व्यक्ति जाति से बड़ा नहीं बल्कि कर्म से बड़ा होता है

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