राज्य में जेंडर संबंधी भूमिका
राज्य समाज का वह सबसे महत्वपूर्ण संस्थान है जो न केवल जेंडर आधारित भेदभाव को समाप्त करने के लिए कानून बनाता है, बल्कि महिलाओं के सशक्तिकरण और सुधार के लिए भी योजनाएं बनाकर उनका पालन-पोषण करता है। भारत के संविधान में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और समानता सुनिश्चित करने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान मौजूद हैं।

उदाहरण के तौर पर, संविधान का अनुच्छेद 14 सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है, जिसमें महिलाओं और पुरुषों को राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक क्षेत्र में बराबरी के अधिकार मिलते हैं। अनुच्छेद 15 विशेष रूप से महिलाओं को भेदभाव से मुक्त रखने की बात करता है, जबकि अनुच्छेद 16 रोजगार में समान अवसर प्रदान करता है। इसके अलावा, अनुच्छेद 39 के अंतर्गत समान कार्य के लिए समान वेतन का प्रावधान भी है। ये सभी प्रावधान जेंडर आधारित असमानताओं को कम करने में सहायक हैं।
भारत सरकार ने वर्ष 2001 में राष्ट्रीय महिला उत्थान नीति घोषित की, जिसका उद्देश्य महिलाओं के लिए एक ऐसा वातावरण तैयार करना था जहाँ वे आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक निर्णयों में सक्रिय रूप से भाग ले सकें। इस नीति के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:
- महिलाओं को मानवाधिकारों का पूर्ण उपयोग करने के लिए सक्षम बनाना।
- राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करना।
- महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा को बढ़ावा देना।
- लैंगिक असमानता को समाप्त करने के लिए कानूनी और सामुदायिक उपाय विकसित करना।
- समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव लाना।
- महिलाओं के विरुद्ध अपराधों पर सख्त रोक लगाना।
हालांकि भारत में ये नीतियाँ और कानून मौजूद हैं, फिर भी जेंडर अंतराल (Gender Gap) के मामले में देश की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी 2013 के ग्लोबल जेंडर गैप सूचकांक में भारत को 136 देशों में से 101वें स्थान पर रखा गया था। यह सूचकांक महिलाओं की आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य क्षेत्रों में स्थिति को दर्शाता है, जिससे पता चलता है कि महिलाओं की स्थिति में अभी भी कई कमियाँ हैं।
समाधान और आगे के कदम
राज्य को चाहिए कि वह महिला सशक्तिकरण के लिए निम्नलिखित कदम तेज़ी से उठाए:
- महिला कल्याण की विभिन्न योजनाओं जैसे कामधेनु योजना, किशोरी बालिका योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, पंचधारा योजना, बालिका साक्षरता प्रोत्साहन योजना आदि को प्रभावी रूप से लागू करना।
- महिलाओं के लिए संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा को मजबूत बनाना।
- महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराधों की रोकथाम के लिए प्रभावी कदम उठाना।
- महिलाओं का शैक्षिक, आर्थिक और राजनीतिक सशक्तिकरण सुनिश्चित करना।
- चुनावों में महिला आरक्षण लागू कर राजनीतिक भागीदारी बढ़ाना।
सिर्फ कानून और नीतियां ही पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि परिवार, जाति, धर्म, संस्कृति, मीडिया और सामाजिक संस्थाओं में भी महिलाओं के प्रति सकारात्मक बदलाव लाना होगा। महिलाओं को घर की चारदीवारी तक सीमित न रखकर उन्हें समाज की मुख्यधारा में समान भागीदार बनाना आवश्यक है।
निष्कर्ष
21वीं सदी की वैश्विक प्रगति में महिलाओं को पीछे नहीं छोड़ा जा सकता। राज्य और समाज दोनों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि महिलाओं को बराबरी के अधिकार, अवसर और सम्मान मिले। तभी हम जेंडर भेदभाव की चुनौतियों को पार कर एक समृद्ध और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना कर पाएंगे।