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घरेलू जिम्मेदारियों में लिंग पूर्वाग्रह (Gender Bias in Household Responsibilities) B.Ed Notes

Published by: Arpita Kumari
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घर में लिंग आधारित भेदभाव, शिक्षा संस्थानों में भेदभाव का ही एक विस्तार है। यह भेदभाव उस मानसिकता का परिणाम है जो परिवार, समाज और समुदाय में व्याप्त है। जब तक परिवार में आपसी सहयोग, सम्मान और साझेदारी का वातावरण नहीं होगा, तब तक स्कूल में ऐसी संस्कृति को स्थापित करना और उसपर टिके रहना कठिन होगा। बच्चों की जीवनशैली में लोकतांत्रिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए घर में लोकतांत्रिक वातावरण होना आवश्यक है। इस प्रकार के लिंग आधारित भेदभाव को समाप्त करने के लिए शिक्षा संस्थानों में चलाए जाने वाले कार्यक्रमों को माता-पिता और अभिभावकों को भी शामिल करना होगा, और साथ ही शिक्षक (पुरुष और महिला दोनों) को भी, जिनके लिए समानता के विचार और व्यवहार को लेकर निरंतर प्रशिक्षण और शिक्षा आवश्यक है।

समाज और मीडिया के लोग भी इस पहल में शामिल होने चाहिए, क्योंकि यह कार्यक्रम स्कूल के बाहर बच्चों के जीवन को प्रभावित करता है। अगर इसे केवल स्कूल में लागू करने की कोशिश की जाए तो यह सफल नहीं हो सकता।

घरेलू जिम्मेदारियों में लिंग पूर्वाग्रह (Gender Bias in Household Responsibilities) B.Ed Notes

परिवार में लिंग आधारित भेदभाव का प्रभाव

मर्द और औरत समाज के दो पंख होते हैं। समाज का विकास तब तक संभव नहीं है, जब तक इनमें संतुलन न हो — यानी समान विकास, समान अवसर आदि। एक के लगातार उपेक्षित होने से दूसरे का विकास भी प्रभावित होता है। भारतीय संविधान के तहत सभी को समान अवसर प्राप्त करने का अधिकार है, फिर भी परिवारों में बेटियों को उतने समान अवसर नहीं मिलते हैं।

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यहां पर बात की जाती है उन कारणों की जो परिवार में लिंग आधारित भेदभाव का कारण बनते हैं। और इसका मुख्य कारण है माता-पिता का “स्वार्थ”। अक्सर यह देखा जाता है कि परिवारों में लड़कों को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है, जबकि लड़कियों को कम अवसर मिलते हैं। यह मानसिकता या तो सामाजिक धारा के कारण उत्पन्न होती है या फिर आर्थिक परिस्थितियों के कारण।

आत्मकेंद्रित मानसिकता और भेदभाव

पारिवारिक स्तर पर लिंग आधारित भेदभाव का मुख्य कारण एक स्वार्थपूर्ण मानसिकता है। कई बार माता-पिता यह मानते हैं कि लड़कियों को ज्यादा शिक्षा या अवसर देने से कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि उन्हें एक दिन शादी कर अपने ससुराल जाना होगा। इस सोच का नतीजा यह होता है कि लड़कियों को घरेलू कामों में लगाया जाता है और उन्हें बाहर के अवसरों से वंचित कर दिया जाता है।

यह मानसिकता केवल शिक्षा तक ही सीमित नहीं रहती, बल्कि घर के कामकाजी हिस्से में भी यही भेदभाव देखने को मिलता है। लड़कियों से घर के काम करवाए जाते हैं, जैसे सफाई, खाना बनाना, छोटे भाई-बहनों की देखभाल करना, जबकि लड़कों को बाहरी गतिविधियों और स्कूल से जुड़े कामों में भाग लेने की स्वतंत्रता दी जाती है।

लड़कियों के लिए घरेलू जिम्मेदारियाँ

लड़कियों को अक्सर घर के कामों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, जिससे उनकी शिक्षा में भी बाधाएँ आती हैं। जब घर के कामों में समय और ऊर्जा लगती है, तो लड़कियों के पास पढ़ाई के लिए समय कम बचता है। इसके अलावा, घर के कामों को उनके “प्राकृतिक कर्तव्य” के रूप में देखा जाता है, जबकि लड़कों को यह जिम्मेदारी नहीं दी जाती। इससे बच्चों में असमानता की भावना पैदा होती है और यह भेदभाव उनके पूरे जीवन में जारी रहता है।

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यह भेदभाव लड़कियों के आत्मविश्वास और सामाजिक स्थिति पर भी असर डालता है। समाज में यह संदेश जाता है कि लड़कियाँ केवल घरेलू कामकाजी भूमिका तक सीमित हैं, और उन्हें बड़े लक्ष्यों की ओर बढ़ने की संभावना नहीं है।

शिक्षा और विकास में असमानता

घर में लड़कियों के साथ भेदभाव का सीधा असर उनकी शिक्षा पर पड़ता है। जब एक लड़की को अपनी प्राथमिकताएँ तय करते समय घर के कामों में व्यस्त किया जाता है, तो वह अपने शिक्षा और अन्य सामाजिक अवसरों को पीछे छोड़ देती है। यह असमानता केवल लड़कियों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि समाज में यह पूरी पीढ़ी के विकास में बाधा डालती है।

यहाँ पर यह सवाल उठता है कि क्या लड़कियों को इस असमानता को दूर करने के लिए समाज और परिवार में समान अवसर मिल रहे हैं? क्या वे पुरुषों के समान अवसरों का सामना कर सकती हैं, या फिर उन्हें हमेशा घरेलू भूमिका में ही कैद किया जाएगा?

समाधान की दिशा में कदम

इस समस्या के समाधान के लिए यह आवश्यक है कि समाज में लिंग समानता के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाए। परिवारों को यह समझाना होगा कि लड़कियों को भी समान अवसर मिलने चाहिए, और उनका भविष्य सिर्फ शादी और परिवार की देखभाल तक सीमित नहीं है। इसके लिए जरूरी है कि:

  1. माता-पिता को समान शिक्षा का महत्व समझाया जाए।
    माता-पिता को यह समझने की आवश्यकता है कि लड़कियों को शिक्षा और समान अवसर देने से न केवल उनका भविष्य बेहतर होगा, बल्कि समाज में उनकी भूमिका भी सशक्त होगी।
  2. समान जिम्मेदारी का वितरण।
    लड़कों और लड़कियों को घर के कामों में समान रूप से भागीदार बनाना चाहिए। घर की जिम्मेदारियों में भेदभाव समाप्त करने से बच्चों में समानता का भाव पैदा होगा।
  3. शिक्षकों और समुदाय का समर्थन।
    शिक्षा संस्थानों में समानता को बढ़ावा देने के लिए, शिक्षकों को यह सिखाना होगा कि वे किस तरह से बच्चों में भेदभाव से बच सकते हैं। साथ ही, समुदाय को भी इस दिशा में सक्रिय रूप से योगदान देने के लिए प्रेरित किया जाए।
  4. संचार और जागरूकता अभियान।
    समाज में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाना अत्यंत आवश्यक है। इससे माता-पिता, समुदाय और बच्चों में समानता के बारे में समझ बढ़ेगी और भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकेंगे।
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निष्कर्ष

घर में लिंग आधारित भेदभाव, समाज की मानसिकता का हिस्सा होता है और यही मानसिकता शिक्षा संस्थानों में भी फैलती है। लड़कियों को घरेलू कामों में व्यस्त करना और उनके भविष्य के लिए सीमित अवसर देना, समाज में असमानता को बढ़ावा देता है। इस असमानता को समाप्त करने के लिए आवश्यक है कि समाज में समान अवसरों और जिम्मेदारियों का वितरण किया जाए। इसके लिए परिवार, स्कूल और समाज को मिलकर काम करना होगा ताकि भविष्य में लड़कियों को समान अवसर मिल सकें।

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