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चिन्तन की अवधारणा, अर्थ व परिभाषाएँ | Concept, Meaning and Definition of Thinking

Published by: Ravi Kumar
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मनुष्य को संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा गया है। इसका कारण उनका चिंतनशील होना है. जीवित प्राणियों में मनुष्य सबसे अधिक विचारशील है और यही सोच मनुष्य और उसके समाज के विकास का कारण है। शिक्षा से मनुष्य की सोचने-समझने की शक्ति का विकास होता है।

इंसान को कभी-कभी किसी न किसी समस्या का सामना करना स्वाभाविक है। ऐसे में वह उस समस्या को सुलझाने के उपाय सोचने लगता है। वह सोचने लगता है कि समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है। इस प्रकार सोचने या मनन करने की प्रक्रिया को मनन कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो सोच एक मानसिक प्रक्रिया है, जो किसी समस्या के कारण शुरू होती है और अंत तक चलती रहती है।

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हम चिन्तन के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं-

रॉस के अनुसार- चिन्तन, मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पहलू है या मन की बातों से सम्बन्धित मानसिक क्रिया है।”
“Thinking is mental activity in the cognitive aspect, or mental activity with regard to psychical objects.” –Ross

वेलेन्टाइन के अनुसार- “चिन्तन शब्द का प्रयोग उस क्रिया के लिए किया जाता है, जिसमें श्रृंखलाबद्ध विचार किसी लक्ष्य या उद्देश्य की ओर अविराम गति से प्रवाहित होते हैं।”

“It is well to keep the term “thinking’ for an activity which consists essentially of a connected flow of ideas which are directed towards some end or purpose.” –Valentine

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रायबर्न के अनुसार- चिन्तन, इच्छा-सम्बन्धी प्रक्रिया है, जो किसी असन्तोष के कारण आरम्भ होती है और प्रयास एवं त्रुटि के आधार पर चलती हुई उस अन्तिम स्थिति पर पहुँच जाती है, जो इच्छा को सन्तुष्ट करती है।”

“Thinking is a conative process, arising from a felt dissatisfaction, and proceeding by trial or error to an end-state which satisfies the conation.” –Ryburn

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वारेन के अनुसार- चिन्तन एक प्रतीकात्मक स्वरूप की विचारात्मक प्रक्रिया है। इसका आरम्भ व्यक्ति के समक्ष उपस्थित किसी समस्या या कार्य से होता है। प्रयत्न तथा मूल से युक्त समस्या प्रवृत्ति से प्रभावित क्रिया होती है। इसके अन्त में समस्या का समाधान मिलता है।

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इन परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि चिन्तन मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पथ है। यह प्रक्रिया किसी विशेष उद्देश्य की ओर परिलक्षित होती है। इसमें इच्छा तथा असंतोष का महत्त्व है। इच्छा तथा असंतोष मनुष्य को चिन्तन करने के लिए विवश करते हैं।

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